ईव टीज़िंग, या छेड़खानी, एक बेहूदा चीज़ है. जो लड़कियां इसका शिकार होती हैं वही जानती हैं कि छेड़खानी कितनी अपमानजनक हो सकती है. मगर क्या कोई विशेष दस्ता (रोमियो जैसे कालजयी पात्र का इस संदर्भ में नाम लेना भी बुरा जान पड़ता है) इसका हल हो सकता है?
और क्या यह कोई विशेष पुलिस बल है या वही बजरंगी दस्ता है जो वैलेंटाइन डे पर जोड़ों को अपमानित करता है? पुलिस चोरी, छिनतई, और लूट पाट तो रोक नहीं पाती, छेड़खानी कैसे रोक लेगी? छेड़खानी तो कहीं भी होती है, मेरे गांव के मेले में भी, तो क्या आप पुलिस बल को दस गुना बीस गुना करने जा रहे हैं कि चप्पे चप्पे पे आपकी स्क्वाड फैली हो?
बेहतर हो कि आप सड़कों पर समुचित रौशनी की व्यवस्था करें, अधिक से अधिक महिला थाने बनायें, बल्कि पूरे पुलिस तंत्र को ही वीमेन फ्रेंडली बनायें जिससे लड़कियां अपने साथ हुई छेड़खानी की शिकायत दर्ज कर सकें, और उन शिकायतों पर बजाये लड़कियों को नसीहत देने के सचमुच कार्यवाई हो. और सबसे बढ़कर लड़कियों को सक्षम बनायें, छेड़खानी अगर मौके पर ही रोकी जा सकती है तो वो लड़कियों के साहस से ही रोकी जा सकती है.
नहीं तो छेड़खानी रोकने के नाम पर हमें अकसर ही युवा जोड़ों को अपमानित किये जाने की घटनाएं सुनाई पड़ेंगी, लड़के लड़कियों के आपसी मेलजोल पर बंदिशें लगेंगी. जी हां, यह मेलजोल ज़रूरी है, आप सेक्स एजुकेशन को कोर्स में शामिल करिये और कम उम्र लड़के लड़कियों को जागरूक करिये. इसकी चिंता छोड़िये कि लड़के लड़कियां आज इसके और कल उसके साथ घूम रहे हैं. उनके बीच के स्वाभाविक आकर्षण को मारना ही कुंठा से भरी ऐसी पीढ़ी पैदा करता है जो सड़कों पर, बसों में, सिनेमा हॉलों के अंधेरे में लड़कियों को छूने को आतुर हाथ फैलाये घूमती है. क्योंकि जब मन में प्रेम का भाव नहीं रहेगा तो बस शरीर ही शरीर होगा.
दूसरी बात कि पितृसत्तात्मक व्यवस्था में स्त्रियों की रक्षा के नाम पर हमेशा से उन्ही पर पाबंदियों का इतिहास रहा है. इसीलिये यह डर निराधार नहीं है कि छेड़खानी के खिलाफ अभियान भी इसी ओर जायेगा और मोरल पुलिसिंग का काम करेगा. और जहां सचमुच कुछ गलत हो रहा हो उसे रोकने के लिए पुलिस को किसी अलग नाम से विशेष दस्ते की क्या ज़रूरत है. पुलिस का यही काम है, वो बस अपना काम करे. अगर सचमुच लफंगों को पकड़ा जाये तो इसमें क्या ग़लत है?