मैं फिलहाल कश्मीरियों से नहीं बल्कि उन भारतीयों से बात कर रही हूं जो दलित, आदिवासी और महिलाओं के अधिकारों का समर्थन करते हैं लेकिन कश्मीरियों पर सेना की ज्यादतियों के पक्ष में हैं. कश्मीरियों पर सेना के अत्याचार के उन वीडियो को ध्यान से देखें जिनमें सेना के लोग कश्मीरियों को नंगा कर रहे हैं, पीट रहे हैं, परेड करा रहे हैं या अपमानित कर रहे हैं. क्या नंगा करके घुमाना लोगों के एक तबके को अपमानित करने और गुलाम बनाने का पुराना तरीका नहीं है? क्या दलितों, आदिवासियों और महिलाओं के खिलाफ इन तरीकों का अक्सर इस्तेमाल नहीं होता? कोई भी सम्मान से वंचित और पराजित व्यक्ति के रूप में नहीं जीना चाहता. अपने आप से पूछिए कि 1857 के विद्रोह के दौरान भारतीयों पर होने वाले अत्याचार, अमरिकी सेना द्वारा वियतनाम या फिर अबू ग़रेब में होने वाले अत्याचार अब कश्मीरियों पर क्यों हो रहे हैं? इस तरह के अपमान और अत्याचार से पीड़ित लोग अपने सम्मान को वापस पाने और अत्याचारी के प्रति अवज्ञा को घोषित करने के रास्ते चुनते है। कुछ कश्मीरियों के लिए यह रास्ता पत्थरबाजी का है या शायद उनके पास यह सबसे आम रास्ता है क्योंकि दिल्ली, बिहार, कर्नाटक या तमिलनाडु के लोगों के पास जो रास्ते हैं वे इन कश्मीरियों के पास नहीं हैं. कश्मीरियों को सेमिनार करने, छात्रसंघ चलाने, रैलियां करने या विरोध प्रदर्शन की इजाजत कभी नहीं मिलती. यहां तक कि इतनी कम वोटिंग में भी वोट देने वाले एक कश्मीरी को सबसे बुरी तरह अपमानित किया गया ताकि कश्मीरियों को उनकी पराधीन हालत की याद दिलायी जा सके. कश्मीरियों के आत्मनिर्णय के ऐतिहासिक आधार को आप न भी जाने या माने, तो भी यह समझना बहुत आसान है कि यह मनुष्य का स्वभाव है कि वह अपने पराधीन, अपमानित और पराजित अस्तित्व से आजादी की मांग करे.