यूँ तो कहने को हम एक ऐसे देश मे रहते हैं जिसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र कहा जाता है, जिसका संविधान सभी धर्म जाति से ऊपर है, लेकिन हम सच में कितने धर्म निरपेक्ष हैं, ये हमारे यहाँ होने वाले दंगे हमें बाखूबी बताते हैं। हमारे राजनेता भले ही कितनी धर्मनिरपेक्ष राजनीति की बात कर लें, पर सबसे ज्यादा साम्प्रदायिकता वो खुद ही फैलाते हैं । वो उकसाते हैं आम लोगों को साम्प्रदायिक होने के लिए, सिर्फ अपने वोट बैंक के लिए । फिर चाहे उनके भड़काये दंगों में कितनी भी जानें जाये, कितना भी नुकसान हो। और ऐसा कभी नहीं होता और ना ही हो सकता है कि साम्प्रदायिक हिंसा हो और उसमें कोई भी एक वर्ग बिलकुल सही सलामत बच जाये। नुकसान हमेशा दोनों का ही होता है। और ये सब कुछ बार बार होने के बाद भी, परिणाम पता होने के बावजूद बजाय अपने विवेक से सोचे, लोग सिर्फ वही करते चले जाते हैं जो राजनेता या धर्मगुरु धर्म के नाम पर करवाना चाहते हैं। हम सभी किसी ना किसी धर्म के हैं जिसमें हमारी आस्था है और एक आदर्श जीवन के लिये होना भी चाहिए। लेकिन इसका मतलब यह हरगिज नहीं कि हम सिर्फ अपने धर्म को ही अच्छा माने, बाकि धर्मों को सिर्फ कमी निकालने या बुराई के लिए ही जाने। जब भी उनके बारे में बोलें, खराब ही बोलें। पर लोग सिर्फ यही करते हैं, अपने धर्म की अच्छाई और दूसरे धर्मों की बुराई।
भारत में ‘ओह माइ गाॅड’ और ‘पी के’ जैसी फिल्मे चाहे कितनी भी हिट हो जाये, पर चढाते वो फिर भी पत्थर पर दूध है। चाहे लोग कितने भी पढ लिख जाये, तब भी मानते वे वही सब है जो चला आ रहा है। इतने शिक्षित होने के बाद भी लोग अंधविश्वासी हैं । वे अपने धर्म, उसकी मान्यताओं को बिना सोचे समझे मानते चले जाते हैं । वे कोई सवाल नहीं करते हैं कि ऐसा क्यों है? इसके पीछे कारण क्या है? बस जो धर्म कहता है मानते चले जाओ। उस पर सन्देह मत करो। अगर लिखा है वेद में तो शत प्रतिशत सही होगा। जबकि ऐसा बिलकुल जरूरी नहीं. तब भी लोग यहाँ तक कि शिक्षित वर्ग भी उन पर आंख बंद कर भरोसा करते हैं । और अगर भरोसा नहीं भी करते तो तर्क तो नहीं करते । क्योंकि धर्म पर सवाल करना मना है और लोग बिना सोचे समझे मानते मानते कट्टर बन जाते हैं, चाहे फिर वो किसी भी धर्म के हों, हिन्दू मुस्लिम सिख कोई भी। और ये ही लोग साम्प्रदायिक हिंसा का कारण होते हैं । इसलिए लोगों को चाहिए कि जितना सम्मान वे अपने धर्म का करते हैं, उतना ही दूसरों का करे। साथ ही साथ ना ही खुद कट्टर बने और दूसरों को को भी बनने से रोके। धर्म में अंधे ना बने, अपने विवेक से काम करें, तार्किक बनें।