देश में आज एक लहर बना दी गई है जिसे हिन्दू. मुस्लिम सांप्रदायिकता कह सकते है. देश के छोटे से ले कर बड़े वर्ग के लोगों के दिल ओ दिमाग़ में आज एक बात कूट कूट कर भरी जा रही है कि आप हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई या दूसरे किसी भी सम्प्रदाय से हो, आपको और आप के आने वाली पीढ़ी को ख़तरा है और इसे बचाने का ठेका हमने ले लिया है. आप हमारे साथ हो जाओ, आप बच जाओगे. समाज में कोई भी किसी भी धर्म का हो, उनमें कुछ ऐसे लोग बनते जा रहें है जो धर्म के नाम से खा.पी फल.फूल रहें हैं. इसमें ख़ास भूमिका समाज के आला दर्जा के लोग निभा रहें हैं. कुछ ऐसे लोग है जिन्हें हम जानते है यह अपने एलाके शहर या गाँव के बड़े तीस मार खां होंगे या वहाँ के छंटे हुए बदमाश या भाईया लाल या कोई ढोंगी मौलवी या पंडित या बड़ा रसूख़दार या फिर पढ़ा लिखा तबक़ा भी ऐसे कामों में जुड़ गया है. जिन पर हम थोड़ा यक़ीन रखते हैं किसी भी बिना पर. और ऐसे लोगों की पहुँच कुछ राजनीतिक पार्टियों से, पार्टियों के लोगों से होती हैं और इन पार्टियों के नेता विधायक सांसद लोग तक भी इनकी पहुँच होती है जो इन जैसे लोगों को कुछ फ़ायदा अपने पद के ज़रिए पहुँचते है. कुछ ठेके दिला कर या कुछ समाज के कार्य के लिए इन्हें चंदे दे कर इन लोग को अपने फ़ायदे के लिए प्रयोग करते है।

ऐसे लोग समाज में रह रहे लोगों को मनुष्य के रूप में नहीं, बल्कि हिन्दू और मुस्लिम की नज़र से दिखातें है. क्योंकि आज छोटी बड़ी हर एक पार्टियों की राजनीति इन्हीं बातों से चल रही है. आज छोटे छोटे त्यौहार ऐसे मनाने का चलन हो गया है जैसे मानो कल क़यामत हो और यह हमारे जीवन का आख़री दिन हो और ऐसे उत्सव का फ़ायदा उठा कर कुछ राजनीतिक पार्टी के नेता भीड़ में दूसरे धर्मों के लोगों को गालियाँ देते है, भीड़ को आपस में भड़का देते हैं, ताकि भीड़ में तनाव हो और भीड़ लड़ने भिड़ने को तैयार हो जाए.

समाज में ऐसा तनाव पैदा कर के राजनीति होती है जैसे कुछ कट्टर हिन्दू हिन्दू उमीदवार को ही वोट देता है और कुछ मुस्लिम मुस्लिम उमीदवार को ही वोट देता है और कुछ दूसरे धर्म जाती के लोगों का भी वोट बाँट दिया जाता है और किनारे से कोई पार्टी अपना काम कर जाती है. चूँकि मुस्लिमए समाज अल्पसंख्यक की भूमिका में है, तो आज की स्तिथि में केवल मुस्लिम उम्मीदवार मुस्लिम वोट के बल पर कभी नही जीत सकता. पर समाज में ऐसा भ्रम बना दिया जाता है कि वो अल्पसंख्यक जीत रहा है, परन्तु ठीक इसके विपरीत हिन्दू का वोट विभाजित होने के बाद भी कोई सम्प्रदायिक पार्टी अपना परचम लहरा लेती है.

पर इन सबका कहाँ किसको फ़ायदा, यह गहन विचार विमर्श वाली बात है. इसमें दो लोगों को भरपूर फ़ायदा होता है. पहला तो वो जो जीत कर विधायक, सांसद या मंत्री बनता है. दूसरा वियक्ति कोई बड़ा उद्योगपति बड़ा व्यापारी या कारपोरेट जगत वाला हो सकता है जो नेता लोगों को मदद कर अपना उल्लू बाद में सीधा करता है.

पर हमे यह बात ना समझ में आती है, ना हम समझना चाहते हैं. नेताओं ने हमारी आँखो पर धर्म की पट्टी बाँध रखी है जिससे हमें हमारे मूल भूत अधिकार या सुविधा का ज़रा भी परवाह नही. हमें ज़रा भी यह ज्ञान नहीं कि हम से हमारा जंगल, ज़मीन, नदी, नाले छीने जा रहे हैं. हम से हमारा अधिकार छीने जा रहे हैं. रोज़ नए नए क़ानून बना दिए जा रहें हैं और हमें ख़बर तक नहीं, क्योंकि हमें इतनी गहन मुद्रा में धर्म के बारे में डाल दिया गया है कि धर्म के सिवा कुछ नही दिखता. कोई क्या खाता है, क्या पहनता है, कहाँ जाता है, किससे मिलता है, को धर्म से जोड़ दिया गया है और इसमें कुछ भी ऊँच नीच होने पर धर्म आहत होने का डंका पीटा जाता है और लोगों को आपस में लड़ा,भिड़ा दिया जाता है। समाज को एक जुट होना पड़ेगा. समाज के इन शैतानों को अपने बीच से निकाल फेंकना होगा. इनका बहिष्कार करना होगा. इनकी सभाओं में इनके साथ नही जाना होगा. हम इनके पीछे भीड़ नही बनेगे, तब कहीं जा कर हमें समझ आएगा हमने क्या खोया और अपनी नस्ल के लिए पीछे क्या छोड़ कर जा रहें है।