कुछ दिनों पहले अमेजोन, ब्राजील के लगबग 4 हजार आदिवासियों का समूह अपने पारंपरिक वेषभूषा में हाथों में तीर-धनुष, भाला, कुछ के हाथों में गुलेल और कुछ लोग अपने पूर्वजों की ममीओ (सुरक्षित लाशो) को लेकर प्रदर्शन करते हुए ब्राजील के संसद में घुसने की कोशिश कर रहे थे. उनकी मांग थी - ‘विकास के नाम पर विस्थापन बंद हो.’
यह तस्वीर दुनिए भर के सोशल मीडिया में शेयर हो रहा था. इन फोटुओं को देखकर लगा कि सिर्फ ओड़िसा, छत्तीसगढ़ और झारखंड के आदिवासी ही सत्ता के खिलाफ ओर अपने जल जंगल जमीन की रक्षा के लिए और मानवीय अधिकार के लिए संघर्ष नहीं कर रहे है, ब्राजील समेत दुनिया के तमाम आदिवासी समुदाय संघर्ष कर रहे हैं.
ब्राजील का जब भी नाम आता है तो हमारे दिमाग में झट से फुटबॉल का ख्याल आता है और अमेजोन, जो जैव विविधताओं से भरा वृहद जंगल क्षेत्र हुआ करता था, आज वह एक ऑनलाइन साइट बनकर रह गया है, जिस साईट पर लोग मनपसंद सामान की खरीद बिक्री करते हैं.
फुटबॉल, जंगल और ऑनलाइन साईट के अलावा न हमें ज्यादा बताया जाता है और न ही हम जानना चाहते हंै. तो चलिए वहां के बारे में कुछ बेसिक जानकारी प्राप्त कर लेते हंै.
दुनिका में सबसे अधिक वर्षा वाले अमेजोन क्षेत्र के लगभग 50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में आदिवासियों के 400 ज्ञात-अज्ञात समुदायों के लगभग ढाई से तीन करोड़ लोग रहते हंै. जिनमे से हरेक की अपनी भाषा और संस्कृति है.
सन 1964 से पहले सब ठीक ठाक चल रहा था. लोग अपनी जरूरत के हिसाब से उपजा, खा लेते थे. 64 में वहां की तत्कालीन सरकार ने विकास के नाम पर जमीन संबंधी कानून में परिवर्तन करते हुए अमेजोन के जंगलों में बड़े किसानों को खेती करने की छूट दे दी. यदि हम इसे तत्कालीन झारखण्डी संदर्भ में समझना चाहे तो रघुवर (भाजपा) सरकार द्वारा झारखण्डी जनों की जमीन की रक्षा के लिए बनाये गये कानून - सीएनटी व एसपीटी एक्ट- के संशोधन के संदर्भ में समझ सकते है. रघुवर सरकार का भी कहना है कि सीएनटी व एसपीटी एक्ट के कारण झारखंड का विकास नहीं हो पा रहा है. विकास रुका हुआ है.
तो, आइए जानते है अमेजोन में भूमि संबंधी कानून में परिवर्तन के लगभग पांच दशक बीतने के बाद वहां के आदिवासियों का कितना विकास हुआ है?
लंदन के गार्जियन अखबार 2008 में खबर छापी कि सिर्फ अगस्त के महीने में 756 वर्ग किमी में जंगल का सफाया कर दिया गया. इसे यदि अपने नजदीकी संदर्भ में समझा जाये तो उत्तराखंड में जिम कार्बेट के नाम पर जिस तरह जंगलों का सफाया कर दिया गया है.
गार्जियन ने 2011 में लिखा कि अमेजोन में जल, जंगल, और इंसान के अधिकारों के लिए लड़ने वालों में औसतन हर सप्ताह एक कार्यकर्ता मारा जाता है.
जमीन कानून में बदलाव के बाद अमेजोन के जंगलों में राष्ट्रीय एवं बहुराष्ट्रीय कार्पोरेट घराने के लोग पहले मांस ओर दूध के लिए गाय, बैल पाले, उसके बाद वहां सुअरों को खिलाने के लिए सोयाबीन की खेती करने लगे. ओर इनके साथ आती हंै आरा मशीनें, कंपनी वाले लोग, जो जंगलों को जंगल में लगी आग से भी तेज गति से साफ करते हंै. जैसे हमारे लिए नेशनल हाइवे है, ठीक उसी तरह वहां के लिए अमेजोन नदी नेशनल हाइवे है और अमेजोन की सहायक नदियां गली कूचा. सरकार अब लोगों के रास्तों को रोक कर डैम बनाने में लगी है. इससे कई आदिवासी समुदायों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया हंै.
जैसे झारखंड बनने के बाद बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बाढ़ आयी हुई है और झारखण्डी जनता के ऊपर विकास के साथ विस्थापन का दंश टूट पड़ा है, ठीक उसी तरह सन 2003 में अमेजोन के जंगलों में अमेरिका की सोयाबीन उत्पादन कंपनी कारगिल की स्थापना होती है और स्थानीय लोगों से वायदा किया जाता है कि उन्हें नौकरी दी जायेगी. लेकिन स्थापना के बाद कंपनी अपने रंग में आती है. ज्यादातर काम मशीन से लिया जाता है. उस कंपनी में अब तक मात्र 78 स्थानीय लोगों को रोजगार दिया गया है.
इन विकास परियोजनों में यदि किसी का विकास हुआ है तो इन कंपनियों का, जो वहां लग रहे हैं. वहां के संसाधनों को, खनिजों को कौड़ी के भाव लूट रहे हैं.
जो गलती अमेजोन में आज से 5 दशक पहले हुआ था, आज वही गलती झारखंड सरकार करने जा रही है. झारखंड के जमीन रक्षा के लिए बने कानून में परिवर्तन किया जा रहा है. जिस तरह से अमेजोन में जमीन कानून के परिवर्तन के बाद से वहां के आदिवासियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है, उसी तरह झारखंड के आदिवासियों का अस्तित्व संकट में है. क्योंकि आदिवासियों का अस्तित्व जमीन से जुड़ा है. उनका अस्तित्व तब तक है, जबतक उनके पास जमीन है, भाषा है और संस्कृति है.
हमें इतिहास की गलतियों से सीख लेनी चाहिये, यहां तो बिल्कुल उल्टा हो रहा है. इतिहास से सीख लेने के बजाय हम इतिहास की गलतियों को दोहराने जा रहे है. जरूरत इस बात की है कि दुनिया के आदिवासी अपने अस्तित्व की जिस आखरी लड़ाई को लड़ रहे हैं, हम भी उसके सहभागी बनें.