130 करोड़ की जनसंख्या वाले भारत को एक उन्नतिशील देश बनाना है तो यहां की भावी पीढी की नस्ल को सुधारना है. यह उन्नत विचार संघ परिवार की मातृ संस्था राष्ट्रीय सेवक संघ ने व्यक्त किया है. उन्होंने केवल विचार ही व्यक्त नहीं किया है बल्कि इस नस्ल सुधार का पूरा कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया है जो कि उनके अनुसार आयुर्वेद पर आधारित है. आरएसएस की स्वास्थ शाखा आरोग्य भारती की इस महत्वाकांक्षी योजना का नाम है- गर्भ विज्ञान संस्कार. इस संस्कार का पालन करने वाली महिला उत्तम संतान या संतति पैदा कर सकती हैं. आरोग्य भारती के प्रवक्ता का कहना है कि गुजरात में एक दशाब्दी पूर्व से ही यह योजना चलाई जा रही है और राष्ट्रीय स्तर पर यह योजना 2015 से शुरु हुई है. गुजरात तथा मध्य प्रदेश में इसकी दस-दस शाखाएं हैं. उत्तर प्रदेश तथा बंगाल में जल्द ही इसकी शाखाएं खोली जायेगी.

इस योजना के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि उत्तम संतति की पैदाइश के द्वारा एक समर्थ भारत का निर्माण करना है. इस तरह 2020 तक हजारों की संख्या में उत्तम शिशुओं को प्राप्त करना ही उनका लक्ष्य है. उत्तम संतति का अर्थ है कि गर्भ विज्ञान संस्कार का पालन कर गर्भधारण करने वाली माता गोरा, लंबा, स्वस्थ एवं कुशाग्र बालक को जन्म देगी. उनके विचार से इस संस्कार का पालन करने वाले कम शिक्षित या कम बुद्धि वाले माता पिता को कुशाग्र बुद्धि वाली संतान हो सकती है. नाटे कद के या काले माता पिता को भी गोरा, लंबा संतान मिल सकता है. उनका दावा है कि इस संस्कार का पालन कर अब तक 450 उत्तम संतति प्राप्त हुई है. 2020 तक प्रत्येक राज्य में गर्भ विज्ञान अनुसंधान संस्थान खोलने का भी उनका लक्ष्य है.

गर्भ विज्ञान संस्थान को दो भागों में बांटा गया है. गर्भ धारण करने के पहले का कार्यक्रम और दूसरा गर्भ धारण के बाद का कार्यक्रम. पहले भाग में संतान प्राप्त करने को इच्छुक स्त्री-पुरुष की नाड़ी शुद्धि और देह शुद्धि का काम नब्बे दिन तक होता है. इस शुद्धिकरण के द्वारा माता पिता के जीन्स में जो भी दोष होंगे, उन्हें दूर किया जायेगा. 90 दिन के बाद उनके जन्म तिथि के अनुसार ग्रह, नक्षत्र और दिन समय का निर्धारण किया जायेगा, जिस दिन स्त्री पुरुष के समागम से स्त्री गर्भ धारण कर सके. दूसरे भाग में गर्भधारण के बाद स्त्री के खान-पान पर ध्यान दिया जायेगा. उसे ऐसा पौष्टिक आहार दिया जायेगा कि गर्भस्त शिशु का स्वास्थ ठीक हो और बुद्धि का समुचित विकास हो. गर्भवति महिला को यह भी बताया जाता है कि उसे श्लोक और मंत्रों का उच्चारण करते रहना है जिससे बच्चे का मानसिक विकास हो.

गर्भ विज्ञान संस्कार की प्रेरणा आरएसएस को जर्मनी से मिली जिसने अपने यहां द्वितीय विश्व युद्ध के बाद बीस वर्षों के अंदर ही आयुर्वेद के सिद्धांतों को अपना कर अपने यहां नस्ल सुधार का कार्यक्रम चलाया था. आरएसएस की इस महत्वाकांक्षी योजना पढने सुनने में तो बहुत अच्छी लगती है, लेकिन क्या भारत जैसे विशाल देश में इतनी बड़ी आबादी के बीच इस तरह की कोई योजना चलाई जा सकती है? या जरूरी है? भारत विशाल ही नहीं प्राकृतिक तौर पर भी कई विभिन्नताओं को लिये हुए है. इस भिन्नता के चलते भी लोगों के रंग, रूप, कद काठी में बहुत अंतर आता है. अब यह कैसे मान लिया जायकि औसत लंबाई तथा श्याम वर्ण के माता पिता की संतान भी उसी की तरह होगी और ऐसे लोगों में बुद्धि कौशल भी कम होगा. इस दृष्टि से देखा जाये तो दक्षिण भारत के अधिकतम लोग काले और औसत कद के होते हैं. लेकिन उनकी बुद्धिमत्ता में कोई कमी नहीं देखी गई है. दक्षिण भारत कई दृष्टियों से उत्तर भारत की तुलना में उन्नतिशील है. आदिवासी लोग भी काले और औसत कद के होते हुए भी गौर वर्ण लंबे लोगों की तुलना में कहीं से भी कम तर नहीं हैं.

भारत में गरीबी रेखा के नीचे लगभग 30 फीसदी आबादी रहती है. इतनी बड़ी आबादी तो किसी तरह अपने भोजन की तो व्यवस्था कर लेती है, लेकिन दूसरी बुनियादी जरूरतें पूरी नहीं हो पाती. भारत सरकार अपने सकल घरेलु उत्पाद का मात्र 3.65 फीसदी शिक्षा पर और 1.2 फीसदी स्वास्थ पर खर्च करती है. वैसी स्थिति में जब देश की एक बड़ी आबादी को भरपेट भोजन नहीं मिलता हो, रहने को घर नहीं हो, उनके शिक्षा स्वास्थ की गारंटी भी सरकार नहीं लेती हो, ऐसे देश में गर्भ विज्ञान संस्कार जैसी योजना चला कर उत्तम संतति प्राप्ति की कल्पना करना भी एक दिवास्वप्न है. यदि सरकार सामान्य लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा कर दे, उन्हें मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार भर दे दे तो आने वाली संतति सुधर जायेगी. अलग से इस तरह की किसी योजना की जरूरत ही नहीं पड़ेगी.