राज्य एवं समाज की नि:स्वार्थ सेवा करना कितना मुश्किल काम है, इसका हम सिर्फ अंदाजा लगा सकते हैं बस,पर उसके लिए की गई तपस्या और बलिदान का हमें जरा भी अनुमान नहीं. हर सुविधा से परे, भूखे पेट, नंगे पैर, घर-परिवार का त्याग, तिरस्कार, रात की नींद और दिन का चैन गवांकर ही नि:स्वार्थ सेवा मुमकिन है.
आज के नव निर्मित नेताओं में वो बात कहाँ? उलटे पूर्व के कुछ नेताओं के नाम और कृत्य पर वे राजनीति करने में लगे रहते हैं। महान आत्माओ को उनके जन्म दिन और पुण्यतिथि पर माला चढ़ाकर वे यह साबित करते हैं कि हममें भी वही बात है जो उनमें थीं ! अपने ‘सर्किटों’ के साथ भावुक-भक्ति वाला फोटो खिंचवाने का कार्य प्रारंभ होता है, सोशल मीडिया से लेकर प्रिंट मीडिया तक खुद अपनी प्रशंसा का पुल बाँधते, ढेर सारी फोटो दिखाकर साबित करने की कोशिश करते हैं कि उनके अंदर भी समाज और राज्य की कितनी फिक्र है!
जो सत्ता के उच्च पद पर दीर्घकाल तक विराजमान रह कर समाज एवं राज्य के लिए कुछ भी न कर पाये, उनसे अब क्या उम्मीद कर सकते हैं हम! हाँ, समाज के नाम पर राजनीति जरूर कर सकते हैं वे. यह तो उनकी पुरानी आदत है. कभी विशेष राज्य के लिए मानव श्रृंखला, तो कभी पोस्टकार्ड लेखन. अब “स्टेच्यू ऑफ_रिवोल्यूशन”.
हर बार की तरह सुदेश महतो इस बार भी कुछ नया तिकड़म करके वोट बटोरने एवं अपनी कुर्सी बचा के रखने का फंडा जुगाड़ कर रहे हैं!
बिनोद बाबू का स्टेच्यू (स्टेच्यू आँफ रिवोल्युशन) हो, ये हम सभी चाहेंगे. पर क्या वास्तव में बिनोद बाबू के दिखाये रास्ते पर कोई चला है आज तक?
सुदेश महतो की राजनीति पूरी तरह बर्बाद हो गई, इसलिए आज 16 साल बाद उनको बिरसा मुंडा,सिंधो-कान्हो, चाँद-भैरव, बिनोद बाबू,और निर्मल महतो नजर आ रहे हैं. और उनके नाम पर राजनीति कर रहे हैं. आजसू का विरोध सिर्फ अखबारों तक सिमट कर रह गया है।
सुदेश महतो की आजसू भाजपा सरकार के साथ गठबंधन में रहकर सरकार की नीतियों का विरोध करती है.सवाल उठता है, कि यदि आप सरकार में शामिल हैं,फिर इस विरोध का क्या मतलब? चर्चा है कि उनके कार्यकाल में खेल गांव के निर्माण में 200 करोड़ का घोटाला हुआ है, जिसके कारण उन पर दबाव है कि वे सरकार को समर्थन देते रहें.
सीएनटी कानून झारखंडियों का सुरक्षा कवच है. इस सुरक्षा कवच को तहस नहस कर दिया गया। भेदभाव से भरे डोमिसाइल नीति लागू करके झारखंडियो की रोजी रोटी को छीनने की पूरी व्यवस्था कर दी गईं। भाजपा अपना वोट बैंक तैयार करने के लिए झारखंड मे झारखंडियो की जमीन छीनकर अतिक्रमणकारियों (बाहरी)को बसा रही है। झारखंड के मूलनिवासियो के नाम खुले वैध जमाबंदी को बंद कर जमीन छीन रही है, वही भूमिहीनों के नाम पर बहिरागतों को झारखंड में बसा ही नहीं रही है, झारखंड के संसाधनों की लूट कर रही है. जो पार्टी या दल झारखंडियो को बर्बाद करने पर तुली हुई है, उसके साथ गलबाही करना कौन सा झारखंड प्रेम है? सुदेश महतों को इस प्रश्न का जवाब देना होगा.