खेल नहीं, युद्ध ही होगा!
पाकिस्तान के साथ खेल संबंध, खास कर क्रिकेट का, तोड़ लेने की मांग का मैं समर्थन नहीं करता. तोड़ना है, तो पहले राजनीतिक संबंध तोड़ो. मगर कल के फायनल को लेकर जिस तरह उन्माद का माहौल बन रहा या शायद सायास बनाया जा रहा है, उसे देखते हुए मान गया हूं कि ऐसे में मैच न होना बेहतर है. सानिया मिर्जा (जसने एक पाकिस्तानी शोएब मल्लिक से शादी की है और जो पकिस्तान की टीम में शामिल भी है) की देश निष्ठा पर तो सवाल उठ ही रहे हैं, मैच खत्म होने तक भारत के तमाम मुसलिम संदेह के घेरे में आ जायेंगे. नतीजा कुछ भी हो. वे भारत की जीत पर ताली पीटें या पराजय पर दुख जतायें, हममें से बहुतेरे मानेंगे ही नहीं कि वे अपनी सच्ची भावना व्यक्त कर रहे हैं. और शायद.. शायद कहीं ‘हमारा बेटा’ जीत गया तो? प्रसंगवश, पता नहीं कैसे और कब हम बाप बन गये! एक तो कल तक भारत ‘माता’ होती थी, अब….. और यदि पाकिस्तान सचमुच भारत का बेटा है, तब भी हम भारत की संतानों का तो भाई ही हुआ. फिर घर परिवार का बंटवारा भाइयों के बीच होता है, बाप-बेटे में नहीं. और यदि पाकिस्तान बेटा है, तब सेमी फायनल में तो हमने अपने पोते को ही हराया होगा!
ऐसे हालात में अपने ‘चिर शत्रु’ को खेल के मैदान में पराजित करने कि संतोष भले मिल जाये- हालांकि इसकी भी क्या गारंटी है-, सही मायनों में न इससे भारत को कुछ हासिल होगा, न पाकिस्तान का कुछ बिगडेगा. फिर उलट नतीजे से लगनेवाले आघात का खतरा तो है ही. ऐसे में पहले से अंतरकलह और एक दूसरे के प्रति संदेह के वातावरण को और विषाक्त बनाने की कोशिशों में लगे तत्वों और क्रिकेट के धंधेबाजों की तो चांदी होगी, हम आप मैच के हीरो या गद्दार की चर्चा करते रहेंगे. हमारे ट्विटर-वीर तीखे तीर चलते रहेंगे. जीत गये, तो मीडिया में ‘धो डाला’, ‘फादर्स डे पर बेटे का गिफ्ट’ टाइप चलते रहेंगे. और हार गये तो…तौबा! रहने दीजिये..
खेल को खेल की तरह लेना और नतीजे को खेल भावना से स्वीकार करना चाहिए, ये कहने-सुनाने में तो अच्छी लगती हैं, पर ये कहने की ही बातें हैं. कम से कम भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच के संदर्भ में तो एकदम बेमानी है. मैं खुद क्रिकेट पसंद करता हूं. क्रिकेट विरोधियों के बीच रहते हुए बेशर्मी से कई बार देर रात तक भी देख लेता हूं. खास कर नजदीकी मुकाबलों का रोमांच इसे और अनोखा बनाता है. मगर मेरी समस्या अंतिम पलों के संभावित तनाव को झेलने की है. भारत की जीत पर मगन होता हूं और हार पर निराश भी. लेकिन न तो जीत पर उछलता हूं, न हार पर बाल नोचता हूं. फिर भी चाहता रहा हूं कि भारत और पाकिस्तान के बीच मैच हो. लेकिन इससे जुड़े सामाजिक तनाव को देखते हुए अब लगने लगा है कि स्थिति सहज होने तक इन मुल्कों के बीच क्रिकेट के मैच न ही हो तो बेहतर.