फैल चुके नासूर से
जान बचाने
कटाना पड़ता है कोई अंग
जब जाती है
मुंबई एक्सप्रेस
और अपनी लाचारी पर
सिसक पड़ता है
हजारीबाग रोड रेलवे स्टेशन।
जेठ के चूल्हे पर
तपती काली सड़क पर
नंगे पाँव चलते राहगीर को
मिल जाती है किसी पेड़ की छाँव
जब आती है
मुंबई एक्सप्रेस
और मोर-सा
नाच उठता है हजारीबाग रोड रेलवे स्टेशन।
इस आने-जाने से
मुक्ति की आकांक्षा लिए
जमती है भीड़, लगते हैं नारे
चुनावी रैलियों में
और नारों के संगीत से
झूम उठता है मंच
पर बैठ जाता है
गला भीड़ का
फिर बैठा गला
बोल पाता है सिर्फ यही
एचजेडडी (टू) सी एस टी,
जेनरल,
हावड़ा-मुंबई एक्सप्रेस।