केंद्र की मोदी सरकार देश के 23 रेलवे स्टेशनों के आधुनिकीकरण के लिए उन्हें निजी हाथों में देने जा रही है. इससे सरकार को कम से कम चार हजार करोड़ का राजस्व मिलने का अनुमान है. केंद्र सरकार की योजना सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) के तहत देश के 400 रेलवे स्टेशनों को अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाने की है. रेलवे पुनर्विकास कार्यक्रम नाम की इस योजना के तहत सरकार को एक लाख करोड़ रुपये का निवेश मिलने की उम्मीद है. इसके पहले चरण में 23 स्टेशनों को नीलामी के लिए चुना गया है. इन स्टेशनों में कानपुर सेंट्रल, इलाहाबाद, उदयपुर, हावड़ा, मुंबई सेंट्रल, चेन्नई सेंट्रल, फरीदाबाद, भोपाल और इंदौर शामिल हैं. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक नीलामी के लिए कानपुर सेंट्रल स्टेशन का बेस प्राइस 200 करोड़ और इलाहाबाद का 150 करोड़ रुपये रखा गया है.

यह भारतीय रेलवे के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ा निजी हस्तक्षेप है, निजीकरण से उत्पन्न जटिल परिस्थितियों पर मंथन करने और इनके उत्तर तलाशने के लिए ब्रिटेन के ओलिवर हार्ट और फिनलैंड के बेंट होमस्ट्रॉम को संयुक्त रूप से 2016 में अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया है. दोनों अर्थशास्त्रियों को कांट्रैक्ट थ्योरी के लिए यह पुरस्कार दिया गया था.

विश्व के तमाम विकसित और विकासशील देशों के लिए उनकी यह खोज बेहद अहम मानी जा रही है. दरअसल, उनका यह सिद्धांत इस बात पर जोर देता है कि हमें आर्थिक विकास की रफ्तार तेज करने के लिए किस ओर और कैसे अर्थव्यवस्था को ले जाना चाहिए. अर्थशास्त्रियों ने इस सिद्धांत का प्रतिपादन करते समय लोक कल्याणकारी अर्थव्यवस्था को केंद्र में रखा है. वे

मानते हैं कि अर्थव्यवस्था को कुछ चुनिंदा लोगों और कंपनियों के हाथ में गिरवी नहीं रखी जा सकती है.

रेलवे का निजीकरण अधिकांश लोगों को आज समझ में नहीं आया. सच कहा जाए तो लोगो को अब यह महसूस करा दिया गया है कि निजीकरण बहुत अच्छी चीज है. क्योंकि सरकार अपना कार्य ठीक से नहीं कर पाती, इसलिए यह सबसे आसान है कि किसी भी सेवा-क्षेत्र (सर्विस सेक्टर) को उठाकर निजी हाथों मे दे दिया जाये. बहुत से लोग इसके लिए सहर्ष स्वीकृति दे देंगे.

ऐसा मानने वालों का कहना है कि यदि हमें अपने रेलवे स्टेशन पर विश्वस्तरीय सुविधाएं चाहिए तो यह तो होना ही चाहिए. लेकिन जरा रुकिये! भारतीय रेलवे के बारे मे कुछ मूलभूत जानकारी आपको होनी चाहिए. यह विशाल सरकारी कंपनी, जिसे हम भारतीय रेलवे कहते है ‘‘राज्य के अंदर एक राज्य’’ जैसा है. रेलवे के अपने स्कूल, अस्पताल और पुलिस बल हैं. इसमें करीब 13 लाख कर्मचारी काम करते हैं और इस लिहाज से यह दुनिया की सातवीं सबसे ज्यादा रोजगार देने वाली कंपनी है. हजारों किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन और करीब 8000 स्टेशनों के साथ भारतीय रेल अमेरिका, रूस एवं चीन के बाद चौथे स्थान पर है.

भारतीय रेल नेटवर्क के पास लगभग 9,000 इंजन हैं, जिनमें 43 अभी भी भाप से चलने वाले हैं. इंजनों का यह विशाल बेड़ा करीब पांच लाख माल ढोने वाले डिब्बों और 60,000 से अधिक यात्री कोचों को 1 लाख 15 हजार किलोमीटर लंबे ट्रैक पर खींचता है. रेलवे, प्रतिदिन 12,000 से अधिक ट्रेनों का संचालन करता है, जिसमें 2 करोड़ 30 लाख यात्री यात्रा करते है. यानी, कि

भारतीय रेलवे एक ऑस्ट्रेलिया को रोज ढोती है!

हबीबगंज स्टेशन ‘फिर से विकसित’ होने वाला पहला स्टेशन होगा. यह स्टेशन रेल मंत्रालय द्वारा आईआरएसडीसी को सौंपे गए 8 स्टेशनों में से एक है. खास बात यह है कि बंसल ग्रुप 450 करोड़ रुपये की लागत से भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन का पुनर्विकास व आधुनिकीकरण (रिडेवलपमेंट) करेगा और इसमें रेलवे स्टेशन के यात्रियों वाले हिस्से की लागत 100 करोड़ रुपये

रहेगी और व्यवसायिक-भूमि (कमर्शियल लैंड) को 350 करोड़ रुपये में विकसित किया जाएगा.

लेकिन क्या भारत की जनता के बीच रेलवे स्टेशन की जो धारणा रही है, वह बनी रह पाएगी?

मसलन, 160 से अधिक वर्षो के भारतीय रेल आज भी ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं का परदेश जाने पर, इम्तिहान देने जाने के वक्त एक आश्रय स्थल होता है. यह वो जगह होती है, जहाँ हर किसी के लिए जगह होती है और लोग भी अपने आप में एक अपनत्व का एहसास पाते हैं. लेकिन जब भारतीय रेल का स्टेशन भी दिल्ली मेट्रो की तरह एक लाभ का उपक्रम बन जाएगा तो भारतीय संविधान के ‘लोक-कल्याणकारी’ शब्द की महत्ता कहाँ तक यथार्थ के कसौटी पर खरा उतरेगी?

कोई भी निजी कंपनी जब पूंजी लगाती है तो उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ मुनाफा कमाना रहता है. आज जब सरकार प्लेटफॉर्म टिकट के मूल्य में 100 फीसद तक की बढ़ोतरी कर रही है, तो आप अनुमान लगा सकते है कि जब निजी कंपनी आएगी तो उसकी दर में कितना इजाफा हो सकता है? जिस देश में दाना मांझी को अपनी पत्नी का शव पैसों के आभाव में कंधे पर उठा कर ले जाना पड़ सकता है, उस देश में मुसाफिर-खाना और रेलवे के प्लेटफॉर्म भी जब बिक जाएंगे, तो उन गरीबो के लिए कौन-सी सार्वजानिक जगह बच पाएगी, जहाँ वो कुछ समय बिता सकें? मस्जिद में धोती वाले नहीं रह सकते, मंदिर में टोपी वाले नहीं जा सकते, ऐसे में एक रेलवे स्टेशन ही तो अनेकता में एकता दिखाता है!

दीये का उजाला प्रलय तक हो सकता है. निजीकरण, मदमस्त हाथी की तरह होता है. इसके ऊपर जिस दिन अंकुश खत्म होता जाएगा, वो विनाश का कारक बनेगा. सबकी एक निश्चित सीमा होती है. निजीकरण की भी होनी चाहिए? होनी चाहिए. लेकिन सीमाओं का निर्धारण कौन करेगा, बहस होनी चाहिए.