झारखण्ड अलग राज्य के गठन और सीएनटी की बात की जाए तो केंद्र में बिरसा मुंडा के जल, जंगल और जमीन के संरक्षण का संघर्ष दिखाई पड़ता है. जिस अदम्य साहस और दूरदर्शिता के साथ उन्होंने संघर्ष किया और जिसके परिणाम स्वरूप छोटानागपुर पठार में रहने वाले झारखण्डियों के जमीन की रक्षा के लिए सीएनटी जैसा कानून बना. और उनके नेतृत्व का कमाल ही था कि कालांतर में एक झारखंडी यौद्धा देश भरके आदिवासियों के संघर्ष का प्रतीक बन गए. और इसी कारण जब सन 2000 में झारखण्ड अलग राज्य का गठन हो रहा था, तब उनके जन्म दिवस को ही झारखंड स्थापन दिवस के रूप में चुना गया.
इस साल बिरसा मुंडा के शहादत दिवस के अवसर पर यानि 9 जून को जहां एक ओर सरकार जलसा कर रही थी, वही झारखंडी समुदाय अपनी जमीन की रक्षा के लिए बने कानून में हो रहे संशोधन के खिलाफ रांची की सड़को पर रैली निकाल रहे थे.
झारखंड बनने के पहले भी कई सरकारों एवं न्ययालय ने सीएनटी,एसपीटी एक्ट में संशोधन कर एक्ट को कमजोर करने का काम किया है. परंतु किसी भी सरकार ने अब तक एक्ट की मूल भावना के साथ छेड़छाड़ नहीं किया है, जैसा कि तत्कालीन रघुवर दास की सरकार करने जा रही है. एक समय था, जब हमलोग सीएनटी एक्ट को शक्ति से लागू करने के लिए लगातार आवाज उठाते रहते थे. आज भी उठा रहे हैं. लेकिन अब हालात यह बना दिया गया है कि यदि आप एक्ट में संशोधन के खिलाफ है, यदि आप एक्ट को शक्ति से लागू करने की मांग करते हं,ै तो लोग आपको विकास विरोधी करार देगें. सरकार का कहना है कि झारखंड का विकास इसलिए रुका है क्योंकि झारखंड में सीएनटी एक्ट लागू है. तो हम सरकार से सवाल करते है कि महोदय आपके विकास का मतलब यदि बड़े - बड़े कारखानों से है, डैम से है, तो बता दीजिये, आपका विकास कहाँ रुका हुआ है? सरकार जी आप हमे यह बता दीजिए कि टाटा कंपनी, बोकारो स्टील प्लांट, एचईसी जैसी कंपनियां किसकी जमीन में बसा हुआ है? सुवर्णरेखा डैम किसके जमीन पर बना है? है कोई जवाब?
सरकार जी, आप कहते है एक्ट की वजह से स्कूल कॉलेज नहीं खुल पा रहे हैं. झारखण्डियों को ठीक से शिक्षा नहीं मिल पा रही है. तो, सरकार जी, आप पूरे झारखंड में एक सर्वेक्षण करा के पता कर लीजिये की झारखण्ड में जितने भी सरकारी स्कूल और ज्यादातर प्राइवेट स्कूल बने हैं, वे किसकी जमीन पर बने हैं? और हां, आपकी जानकारी के लिए एक बात बता दें, झारखण्ड के ज्यादातर सरकारी स्कूलों के लिए झारखण्डियों की जमीन को अधिगह्रण करने की जरूरत नहीं पड़ी है, लोगों ने स्वेच्छा से दान में दी है जमीन.
और आप यह जो विकास के लिए एक्ट में संशोधन की रट लगा रखे हैं, इसके पीछे का कॉरपोरेट की गंध हमे हमे पहले से आ रही है. और कॉरपोरेट जन का नहीं होता. इसलिए एक्ट में संशोधन की आपकी कोशिश भी जनपक्षीय नहीं हो सकती.
सरकार से कुछ सवाल:
सरकार ने जमीन के संबंध में देवाशीष गुप्ता की अध्यक्षता में विशेष जांच दल बनायी थी. वह उसकी प्रगति रिपोर्ट एवं परिणामों को जनता के सामने क्यों नहीं रखती?
सीएनटी एक्ट 1908 कानून का संरक्षण जिला उपायुक्त होता है. क्या सभी उपयुक्त सही एक्ट के संरक्षण के संदर्भ में सही ढंग से काम कर रहे हंै? और क्या सरकार इनके काम से संतुष्ट है?
वर्तमान में भी एक्ट का उलंघन हो रहा है. सरजमी की स्थिति को समझने के लिए सरकार के पास क्या उपाय है?
क्या सरकार एक्ट में संशोधन से पहले कभी भी एक्ट को शक्ति से लागू करने के लिए कोई कदम कभी भी उठाया है?
विभिन्न न्यायालयों में सीएनटी, एसपीटी एक्ट के संदर्भ में हजारों भू-वापसी केस लंबित पड़े हैं. यह केस पीढ़ी - दर - पीढ़ी चलती रहती है. इसकी वजह से बीच मे ही कई याचिकादाता मर जाते हैं. कई थक हारकर समझौता कर लेते हैं. क्या सरकार इस तरह के केसों के लिए एक फास्ट ट्रक कोर्ट बनाकर इसका निपटारा जल्द से जल्द नहीं कर सकती है?
भू-वापसी केस जीतने के बाद भी सरजमीं में दखल दिहानी नहीं मिल पाता है. इसके पीछे कौन जिम्मेदार है?
सीएनटी,एसपीटी एक्ट लागू जमीन के संदर्भ में किसी प्रकार की योजना नीति बनने से पहले ग्राम सभा से अनुमति क्यों नहीं लिया जाता है? सरकार सीएनटी, एसपीटी एक्ट की मूल भावनाओं के साथ छेड़छाड़ करने पर उतारू है. दूसरी ओर दिगभर्मित करने के लिए कई तरह के तर्क दिये जा रहे हैं. अब सरकार कृषि भूमि का उपयोग व्यवसाय कार्य के लिए करना चाहती है. इसके लिए जमीन की प्रकृति बदल जाएगी. वैसा होने पर वह सीएनटी एक्ट से मुक्त जमीन समझी जाएगी. इस तरह की जमीन पर वर्तमान में भू-वापसी कानून लागू नहीं होता है. अर्थात इससे मालिकाना कानून हक बदल जाता है.
परन्तु सरकार का तर्क है कि मालिकान हक नहीं बदलेगा. लेकिन कैसे? इसपर सरकार चुप्पी साध लेती है.
आपको याद होगा कि सन 2001 में जब यह बात सामने आया कि सीएनटी एक्ट 1908 एससी तथा ओबीसी की जमीनों में भी अपने शुरुआती दिनों से ही लागू है, जिसे 196 ओ में कोर्ट के गलत तर्क और दिगभर्मित करके कानून को ही बदल दिया था. इस पर सरकार ने भी चुप्पी साध रखी. इसी बीच लाखों एकड़ जमीन अवैध तरीके से हस्तांतरण विधिवत तरीके से हो गया. इस पर सरकार अब भी चुप्पी साधे हुए है. कोर्ट कोई संज्ञान ले ही नहीं रहा है.
इसलिए सीएनटी, एसपीटी एक्ट के संदर्भ में सरकार या कोर्ट पर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता है. जरूरत है, झारखण्डी जनता को अपने हक के प्रति सचेत रह कर एक्ट में हो रहे संसोधन को रोकने के लिए संघर्ष करने की. क्योंकि झारखण्डी का पहचान जमीन से है. जमीन ही नहीं रहेगा, तो झारखंडी भी नहीं रहेगा. और इसे ही आज मिटाने का साजिश चल रही है.