झारखंडियों के चौतरफा विरोध के फलस्वरूप आखिरकार झारखंड सरकार को सीएनटी/एसपीटी एक्ट संशोधन मामले में अपने हाथ वापस खींचने पड़े और संशोधन वापस करने पर बाध्य होना पड़ा. संघर्षों और बलिदानों की धरती व आंदोलन की उपज झारखंड राज्य की इतिहास की जानकारी रखने वाले जानते हैं, झारखंडी अपने हक-अधिकार के लिये किसी भी हद तक जा सकते हैं और इसके लिये शहादतों से भी पीछे नहीं हटते. असंख्य बलिदान इसके गवाह हैं. गौरतलब है कि 23 नवंबर 2016 को विधानसभा में विपक्ष के भारी विरोध के बीच महज तीन मिनट में पारित हुई सीएनटी/एसपीटी एक्ट संशोधन विधेयक राज्यपाल महोदया द्वारा पिछले दिनों वापस कर दिया गया, जो 24 व 25 जून की अखबारों के माध्यम से जनता को पता चली. यहाँ ट्रेजेडी ये रही कि इस संंबंध में मंत्रालय तक को आभास तक नहीं हुआ, जबकि राज्यपाल महोदया के द्वारा ये बिल एक महीने पहले 23 मई को ही सरकार को वापस कर दिया गया था. एक महीने तक खबर को क्यों दबाकर रखा गया, ये भी संशय का विषय है.

23 नवंबर ‘16 को संशोधन विधेयक पारित होते ही पूर्व घोषित खामी भरी स्थानीय नीति से पहले से ही बौखलाये हुये झारखंडियों का गुस्सा फूट पड़ा. अगले दिन 24 नवंबर को विभिन्न सामाजिक संगठनों ने इसके खिलाफ प्रेस रिलीज जारी कर भारी विरोध जताया एवम् स्थानीय नीति की ही तरह इस दिन को भी काला दिवस घोषित किया. झामुमो ने भी 25 नवंबर को सम्पूर्ण झारखंड बंद का ऐलान किया, जिसका बाकी विपक्षी दलों ने भी नैतिक समर्थन किया. बंदी सभी झारखंडियों के सहयोग से अभूतपूर्व सफल रहा. इसके बाद तो जैसे विरोध प्रदर्शनों की झड़ी ही लग गई. सम्पूर्ण विपक्ष के अलावे विभिन्न सामाजिक संगठनों व पारंपरिक ग्राम सभाओं ने लगातार आँदोलन जारी रखा. विपक्ष ने जहाँ एक भी दिन सदन की कार्यवाही चलने नहीं दी, वहीं आदिवासी संघर्ष मोर्चा व आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के बैनर तले आयोजित राजधानी राँची के मोरहाबादी मैदान में विशाल आक्रोश महारैली प्रदर्शन में उमड़ी हजारों की भीड़ ने सरकार को अचम्भित कर दिया. इस दौरान शांतिपूर्ण रैली को बाधित करने का सरकार का प्रयास दमनात्मक रहा, जिसमें रैली में आने से लोगों को रास्ते पर ही रोका गया. इसी सिलसिले में खूंटी में एक व्यक्ति की पुलिस की गोली से शहीद हो जाना झारखंडी जनभावनाओं को और भड़का गया. 01 जनवरी ‘17 को खरसावाँ के शहीद बेदी पर आयोजित शहीद दिवस समारोह में उपस्थित झारखंडी जनमानस द्वारा मुख्यमंत्री को काला झंडा दिखाकर घोर विरोध करना एक ऐतिहासिक परिघटना रही. इसके बाद 08 जनवरी को करनडीह, जमशेदपुर में ‘आक्रोश महाजुटान’ का आयोजन हुआ, जिसमें सीएनटी एक्ट के सूत्रधार भगवान बिरसा मुंडा के परिजन भी शामिल हुये और धरती आबा के खून से लिखे एक्ट में संशोधन किये जाने की कड़ी निंदा की एवम् इसे शहीदों को अपमानित करने वाली दुस्साहसिक कार्य बताई.

इसी बीच 16-17 फरवरी को झारखंड सरकार द्वारा आयोजित ‘मोमेंटम झारखंड’ में सरकार ने देश-विदेश से आये कंपनियों के मालिकों केे साथ कई एमओयू साईन कर जता दिया, कि वो एक्ट में संशोधन करना क्यों चाहती है. मगर झारखंडी भी हार मानने वालों में से नहीं थे. झारखंड की सड़कों से निकलकर अब ये आंदोलन राजधनी दिल्ली की सड़कों तक पहुँच चुका था. 09 मार्च को आदिवासी जनपरिषद् द्वारा जंतर मंतर से संसद मार्च किया गया. 21 मार्च को चाईबासा के गांधी मैदान में महाजुटान हुआ. 17 मई को आदिवासी सेंगल अभियान का विशाल रैली मोरहाबादी, राँची में हुआ, जिसमें बिहार के मुख्यमंत्री भी शामिल हुये और संशोधन को जनविरोधी करार देते हुये वापस लेने की मांग का समर्थन किया. इसी तरह झारखंड के हर हिस्से में विरोध प्रदर्शन व रैली के माध्यम से सरकार के फैसले का कड़ा विरोध किया गया. भाजपा विधायकों का सामाजिक बहिष्कार की घोषनाएं की गई और इसी कड़ी में एक और ऐतिहासिक निर्णय लिया गया. 24 मई को पोटका, पूर्वी सिंहभूम के राजदोहा में लो बीर दोरबार में धरम डाक के माध्यम से तीन बार हरी बोल्लो देकर विधायक लक्ष्मण टुडु व मेनका सरदार का पूर्ण सामाजिक बहिष्कार किया गया. 28 मई को जमशेदपुर में झारखंड बचाओ आंदोलन द्वारा संविधान की नौवीं अनुसूची में दर्ज एक्ट में संशोधन को गैर संवैधानिक करार देते वापस लेने की मांग की गई. 09 जून को बिरसा मुंडा उलगुलान मंच द्वारा मोरहाबादी, राँची में प्रतिरोध सभा की गई. आश्चर्यजनक रूप से सभा में शामिल होने आये लोगों पर केस दर्ज किये गये, जिसमें पहली बार प्रशासन द्वारा दर्शाया गया कि लोग बाईक और स्कूटर की छतों पर सवार होकर आये थे. 29 जून को भूमि अधिकार आंदोलन की राँची में तृतीय राष्ट्रीय सम्मेलन में झारखंड के अलावे देश के अन्य राज्यों से शामिल प्रतिनिधियों ने भी संशोधन को झारखंडी हितों के खिलाफ बताते हुये सरकार के फैसले की भर्त्सना की. 30जून को हूल दिवस पर आयोजित भूमि अधिकार आंदोलन की राँची रैली मेें शामिल हजारों की भीड़ सेे संशोधन रद्द करने के नारे लग रहे थे. संशोधन पूर्णतया रद्द नहीं किये जाने पर लगातार आंदोलन व संसद घेराव का ऐलान किया गया.

सामाजिक संगठनों के जहाँ 192 आपत्तियाँ राज्यपाल महोदया के पास जमा हुये, वहीं सम्पूर्ण विपक्ष ने भी मिलकर राज्यपाल महोदया के साथ साथ महामहिम राष्ट्रपति को भी एक्ट में संशोधन से होने वाले दुष्प्रभावों से अवगत कराया एवं रद्द करने की मांग की. समय समय पर सत्ता पक्ष एवं सहयोगी दल के कुछ नेताओं द्वारा भी विरोध के स्वर उभरे. फलस्वरूप राज्यपाल ने झारखंडी हितों का खयाल रखते हुये संशोधन विधेयक सरकार को वापस कर दिया. तत्पश्चात् सरकार ने भी 03 जुलाई को पार्टी एवं टीएसी की बैठक बुलाकर सीएनटी की धारा 21 व एसपीटी की धारा 13 में प्रस्तावित संशोधन को निरस्त करने का फैसला किया. मगर वो अब भी सीएनटी की धारा 49 व 71 में संशोधन करने की जिद पर अड़ी है, जिसके तहत 11-17 जुलाई को होने वाले मानसून सत्र को रद्द कर 03 अगस्त को बुलाई गई टीएसी की बैठक के बाद करने का निर्णय लिया गया है. सवाल ये है, कि जब एक्टधारी समुदाय नहीं चाहते एक्ट में संशोधन हो, तो फिर जबरदस्ती क्यों. जहाँ तक विकास की बात है, एक्ट के रहते भी सरकारी प्रयोजनों एवम् विकास के काम पूरे हुये हैं और कहीं नहीं हो पाये हैं, तो ये सरकारी तंत्र की विफलता है ना कि एक्ट की बाध्यता. इसके लिये अलग कानून की व्यव्स्था पहले से है. झारखंड में रोजगार, कृषि, शिक्षा, विस्थापन सरीखे कई समस्याएं हैं, विकास के लिये इनपर ध्यान दिया जाना चाहिये. विकास के लिये एक्ट में संशोधन करने की जरूरत नहीं.