नारीवाद पर दुनिया की सबसे ज़्यादा पढ़ी जाने वाली किताब स्त्री उपेक्षिता इन्ही पंक्तियों से शुरू होती है.औरत के निर्माण की यह प्रक्रिया जन्म के साथ ही शुरू हो जाती है और सदियों से चली आ रही है. न जाने कब से स्त्री देह के लिए सौंदर्य के मानक गढ़े जाने लगे. लड़कियों के पैर ऐसे होने चाहिए, कमर ऐसी, बाल ऐसे, आंखें ऐसी, त्वचा ऐसी, होठ ऐसे..लंबी लिस्ट. इसी का हिस्सा है श्रृंगार. ऐसा कि औरत की कल्पना ही नहीं हो पाती बिना श्रृंगार के.

और धीरे धीरे बन गया सौंदर्य का बाज़ार, अरबों खरबों डॉलर के साथ जिसका दायरा दिन— दिन बढ़ता जा रहा है. गली — गली में ब्यूटी पार्लर हैं, पिछले 20 से 25 साल में पार्लर जाना, और मेकअप भी धीरे धीरे नॉर्म बन गया है. हमें यह बताया जाता है कि ऐसा ऐसा दिखना ही नॉर्म है. बहुत सी लड़कियों के लिए मेकअप के बिना लोगों के सामने जाना असंभव सा हो गया है. ऐसे में दिल्ली में रहने वाली गीता यथार्थ ने 19 जुलाई को अपनी बिना मेकअप के तस्वीर टाइमलाइन पर #NaturalSelfie हैशटैग के साथ डाली तो फेसबुक पर एक ट्रेंड शुरू हो गया

बिना मेकअप

बिना काजल कुंडल

बिना लिपस्टिक

चिपके तेल लगे बालों में

हम ऐसे दिखते है.

बाज़ारवाद तेरा क्या होगा अब…!!

इन शब्दों के साथ शुरू हुई मुहिम में अगले दिन, और उसके अगले दिन भी दिन भर में अलग अलग जगहों से लड़कियों ने बाज़ारवाद पर चोट करती अपनी तस्वीरें इस हैशटैग के साथ लगाई, कुछ ने बिना हैशटैग के भी. और जैसा कि होता है, थोड़ी ही देर में इसका विरोध भी होने लगा, खिल्ली भी उड़ाई जाने लगी.

बेकार की चीज़, फालतू कैंपेन, फ़ेसबुकिया नारीवाद, सेल्फ़ी ही असल बाज़ार है, सजने में हर्ज भी क्या है, मेकअप वाली तस्वीरें बुरी नहीं होतीं, मेकअप भी बुरा नहीं होता अगर मर्ज़ी से किया जाए…..मर्ज़ी…. यह भी खूब तर्क है, सब कुछ तो मर्ज़ी से ही है यहां, घूंघट बुरका सब मर्ज़ी से, चूड़ी सिंदूर सब मर्ज़ी, तीज मर्ज़ी, करवाचौथ मर्ज़ी, लंबे लंबे बाल मर्ज़ी!

2014 में ईरान में बिना हिजाब के सेल्फी लगाने का एक कैंपेन चला था, ईरान में लड़कियों का सर ढंकना अनिवार्य है, बहुत सी लड़कियों ने तब अपनी खुले सर वाली तस्वीरें पोस्ट की थी. यह शायद उतना बड़ा प्रतिरोध भी नहीं है, मगर जिन लड़कियों के लिए मेकअप नॉर्म है उन्होंने अगर बिना मेकअप के तस्वीर लगाई तो अच्छी बात है. हांलाकि एक दिन बिना मेकअप के फोटो लगाने के किसी ट्रेंड में शामिल होना और हमेशा के लिए बाज़ार को ना कहना, सौंदर्य के तय मानकों को तोड़ना दो अलग चीजें हैं. असल चीज़ है यह समझना कि औरत पुरुष के लिए, उसकी खुशी के लिए, उसकी ज़रूरतों की पूर्ति के लिए नहीं है. इस मान्यता को तोड़ना ज़रूरी है कि औरत का मूल ध्येय है पुरुष की पूरक बनना, मूल कर्तव्य है पुरुष को अर्जित करना, एक अच्छा पति पाना और उसे बनाए रखना, और इसके लिए सारे जतन करना. खैर हिन्दू मान्यता में तो अलगाव का कोई प्रोविज़न नहीं है, फिर भी औरत का काम है पति को रिझाये रखना, उसकी, और दुनिया की नज़र में भी आकर्षक बने रखना. उसे बताया जाता है कि उसे हमेशा चकाचक ही दिखना चाहिए.

इस मुहिम का इन चीजों पर कितना असर पड़ेगा यह तो बाद की बात है, मगर विमर्श की शुरुआत किसी बहाने से हो अच्छा ही है.

और हाँ, मेकअप अच्छी चीज नहीं है, नुकसानदेह तो है ही, यह समझना होगा, कृत्रिमता बेकार चीज़ है, दुनिया ने खूबसूरती की जो एक खास पुरुष और बाज़ार केंद्रित परिभाषा आप पर लाद दी है उसे उतार फेंकिये और देखिए दुनिया वैसे ही कितनी सुंदर है.