अभी मेडिकल प्रवेश परीक्षा ‘नीट’ का रिजल्ट आया है. छानबीन में पता चला कि 86 अभ्यार्थी एक साथ बिहार और झाऱखंड दोनों राज्यों से उत्तीर्ण हुए है. कुछ लोग सोच रहे है कि यह कैसे संभव है? आपलोगों को भी यह जानना चाहिए कि झाऱखंड में लाखों लोग ऐसे हंै जिनके पास झारखंड का भी वोटर कार्ड है. और बंगाल, बिहार और यूपी का भी. यह कोई नई बात नहीं है और न ही किसी से छुपा हुआ है. रघुवर सरकार से पहले भी फर्जी तरीके से आवासीय प्रमाण पत्र बनता था, लेकिन इतनी आसानी और धडल्ले नहीं बनता था.और न ही लोग बनवाने की हिम्मत करते थे. यदि कोई कही कमाने खाने के लिए जाना चाहे, तो उसे भारत का संविधान भी नहीं रोकता है. सबको रहने खाने और जीने का अधिकार है. कहीं जाएं, कहीं रहें.
अब रहते- रहते लोगों का वहां की मिट्टी, हवा पानी से लगाव हो जाता है. अपने गांव घर से अच्छा माहौल भी मिलता है. फिर वह सोचता है कि इतने दिनों से रह रहे है, बच्चे भी यही पढ़ते है. तो, क्यों न यही का पहचान पत्र भी बना लिया जाय. फिर यहां पहले से बसे अपने जिले के लोगों से, जाति बिरादरी के लोगों के संपर्क में आता है, जिनका यहां की राजनीति में अच्छी खासी पकड़ होती है. वे इनका जाति से लेकर, आवासीय, वोटर कार्ड, यहां तक कि राशन कार्ड भी बनवा देते हंै. मेहनत मजदूरी करके कमाने खाने वालों के लिए जाति, आवासीय पत्र की कोई जरूरत भी नहीं होती है. उनको जरूरत होती है वोटर कार्ड. बाकी सारी चीजों की जरूरत होती है उनके बच्चों को, जो पढते- लिखते हंै. उच्च शिक्षा में जाना चाहते हंै. नौकरी पाना चाहते हैं. अब सरकारी नौकरियां दिनों दिन घटने के कारण नौकरी के लिए मारा मारी हो रही है.
तो, जो झारखंड में बाहर से आ कर बसे हंै, उनलोगों का मूल गांव कही और होता है. वहां शादी विवाह में, पूजा-पर्व आदि कामों के अवसर पर साल में एक दो बार जाते भी हैं. मतलब गांव से अब उनलोगों का रिश्ता सिर्फ रिस्तेदारी और अपने पुश्तैनी जमीन के कारण रहता है. अब कही भी स्थायी जाति और आवासीय प्रमाण पत्र बनवाने के लिए जमीन का खतियान चाहिए होता है. झारखंड के बाहर जहां के वे मूलवासी होते हंै, वहां तो यह आसानी से बन जाता है. झारखंड में या संयुक्त बिहार में भी इनलोगों की जाति बिरादरी के लोग शासन प्रशासन में बैठे होने के कारण यह सारे प्रमाण पत्र आसानी से बन जाते हंै. इस तरह ये लोग अपने गृह राज्य के अलावा झारखं डमें भी आसानी से डोमेसाईल का लाभ प्राप्त कर लेते हैं.
यदि ठीक से जांच पड़ताल हो तो झारखंड की आधी से ज्यादा नौकरियों पर ऐसे ही लोगों का कब्जा है. और यही रहस्य है मेडिकल परीक्षा में 86 छात्रों का दो राज्यों में सफल होने का. इससे झारखंड के छात्रों का हक मारा जाता है और उसके लिए रघुवर सरकार की दोषपूर्ण डोमेसाईल नीति पूरी तरह जिम्मेदार है.