यह इतिहास की कैसी विडंबना कि जिस तिरंगे झंडे को आरएसएस ने कभी ‘ओन’ नहीं किया, जिसका कभी ‘सम्मान’ नहीं किया, उस तिरंगे झंडे को उस ‘लाल किले’ से मोदी फहरायेंगे जो ‘मुग़लों’ के द्वारा बनवाया गया था. यह भी विडंबना कि जिस भारतीय स्वाधीनता संग्राम में आरएसएस ने कभी भाग नहीं लिया, उसको लेकर मोदी गाल बजायेंगे. विडंबना तो यह भी कि जिस संविधान की शपथ लेकर मोदी सत्ता के शीर्ष पर पहुंचे और स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से तिरंगा फहराने का गौरव प्राप्त किया, उस संविधान का संघ ने कभी सम्मान नहीं किया.
यह इतिहास सम्मत सच्चाई है कि आरएसएस ने कभी भी स्वतंत्रता संग्राम में भाग नहीं लिया. संघ के दोनों वरिष्ठ नेता चाहे वे हेडगेवार हों या गोवलकर, इस बात के लिए हमेशा सचेष्ट रहे कि स्वतंत्रता संग्राम के किसी कार्यक्रम में भाग लेकर वे ब्रिटिश हुक्मरानों को नाराज न कर दें. इसलिए हेडगेवार ने व्यक्तिगत रूप में गांधी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन के कुछ कार्यक्रमों में हिस्सा जरूर लिया, लेकिन आरएसएस कैडरों को हमेशा स्वतंत्रता कार्यक्रम से दूर रहने की ताकीद की. न सिर्फ संघ ने बल्कि कई अन्य संगठनों ने खुद को स्वतंत्रता संग्राम से दूर रखा जिसमें जिन्ना का मुस्लिम लीग, अंबेदकर का आईएलपी, सावरकर का हिंदू महासभा, इवी रामास्वामी की जस्टिस पार्टी और अधिकांश समय कम्युनिस्ट पार्टी ने भी खुद को स्वतंत्रता संग्राम से दूर रखा.
15 अगस्त को मोदी खुद बड़े गर्व से तिरंगे झंडे को फहरायेंगे, लेकिन यह कैसी विडंबना कि आरएसएस ने कभी तिरंगे झंडे का हृदय से सम्मान नहीं किया. आरएसएस का माउथपीस द आर्गेनाईजर ने 17 जुलाई 1947 के अपने अंक में भगवा ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज बनाने की मांग की थी. संविधान सभा ने 22 जुलाई 1947 को तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज की मान्यता दे दी. 14 अगस्त 1947 के अंक में आर्गेनाईजर ने लिखा - जो लोग भाग्य से सत्ता में आ गये, उन लोगों ने हमे तिरंगा थमा दिया, लेकिन यह तिरंगा हिंदुओं के द्वारा कभी सम्मानित नहीं होगा. शब्द ‘थ्री’ अशुभ है और इसका देश के मानस पर बुरा असर पड़ेगा और यह देश के लिए घातक होगा.
विडंबना तो यह भी कि जिस संविधान की शपथ लेकर मोदी प्रधानमंत्री बने और लाल किले पर झंडा फहराने का सौभाग्य प्राप्त किया, उस संविधान की भी कभी संघ ने इज्जत नहीं की. संविधान सभा में संविधान पारित हो जाने के बाद अंबेदकर ने मुंबई में घोषणा की थी कि नया संविधान सभी जातियों को बराबरी का मौका देगा. इस भाषण के कुछ दिनों बाद 6 फरवरी 1950 को आर्गेनाईजर ने लिखा- ‘मनु रूल्स अवर हर्ट’ यानि हमारे हृदय पर तो मनुस्मृति का राज है. इस आलेख को लिखने वाले थे हाईकोर्ट के एक अवकाश प्राप्त जज शंकर सुब्बा अैयर.
…इतिहास ऐसी विडंबनाओं से भरा है..