मैं बुराई पर अच्छाई की जीत वाली कहानी को सच नहीं मान सकता. बुद्धि से और आंख खोल कर बिना भावुक हुए देखते हैं तो साफ़ दिखाई दे जाता है कि झगड़ा तो नस्लों के बीच में था. अगर आप एक ही नस्ल का बताया हुआ वर्णन सुनेंगे तो आपको उसमें दूसरी नस्लों के बारे में गलत और भ्रामक बातें बताई जायेंगी, क्योंकि आपका इतिहास जीतने वाले का इतिहास है इसलिए जो हार गया उसे बुरा कहा गया और आपने खुद के लोगों को अच्छा कहा. जीत और हार से अच्छे बुरे का फैसला नहीं होता क्योंकि अच्छे भी हारते हैं और बुरे भी जीत जाते हैं. हम बहुत समय से अपनी जीत और दूसरों की हार का जश्न मनाते रहे हैं और उन्हें हम अपना त्यौहार कहते हैं, लेकिन जब तक हमारे पास सत्ता थी और पैसा था और हम अलग अलग रहते थे तब तक तो इसे किसीने चुनौती नहीं दी, लेकिन अब लोकतंत्र आ गया है. अब सभी नस्लों के लोग एक साथ साथ रहने लगे हैं. अब सबके अधिकार भी बराबर मान लिए गये हैं. संविधान लागू होने के बाद अब दूसरी हारी हुई नस्लें भी पढ़ लिख रही हैं पैसा कमा रही हैं. अब यह हारी हुई नस्लें अपना इतिहास खोज रही हैं. असुर, राक्षस, दानव जातियां खोज ली गई हैं. यह सभी आदिवासी लोग हैं. यह भी खोज हुई है कि शुरू में यज्ञ जंगल जला कर घास के मैदान और बस्तियां बसाने को कहा जाता था. आर्यों के इस यज्ञ की अग्नि को आदिवासी यानी असुर बुझा देते थे क्योंकि आदिवासी जंगलों पर आश्रित थे.

तो यह संसाधनों के लिए लड़ाई थी. इसमें आदिवासी हार गये और ऊबड़ खाबड़ पहाड़ों में जंगलों में रहने चले गये, समतल ज़मीनों पर जीते हुए लोगों ने कब्ज़े कर लिए, युद्धों में हरा कर जिनको पकड लिया गया उन्हें दास बना कर शूद्र बना दिया गया. उनकी अलग बस्तियां बना कर उनका धर्म सेवा बना दिया गया. ज़मीनों पर विजेता जातियों का कब्ज़ा हो गया इसीलिए आज भी भारत के अस्सी प्रतिशत दलित भूमिहीन हैं.

अब पुरानी बातों को याद करके नए झगड़े नहीं बढाने चाहियें, लेकिन आप अगर आज भी कहेंगे कि यह नीच है या छोटा है तो झगड़ा तो फिर बढने वाला है. और अगर आप झगड़ा बढ़ाएंगे तो सारी पुरानी बातें ज़रूर खुलेंगी.

आपके बड़े होने के पुराने कारण खोज कर उनका खुलासा किया जाएगा. उन्हें चुनौती दी जायेगी. जो लोग सच और न्याय की तरफ हैं वे लोग आपकी गलती का विरोध भी करेंगे. आप यह नहीं कर सकते कि इतिहास से आपको मिली ऊंची हैसियत का तो मज़ा लूटें लेकिन जब कोई उसका असली इतिहास आपको बता दे तो आप कहें कि यह तो झगड़ा बढ़ा रहा है.

आप अपनी तरफ भी तो देखिये. बंद कीजिये युद्ध में जीत के त्यौहार और पुतले जलाना त्यौहार को अपनी जाति के विचार को छोड़ने के रूप में मनाइए. सभी इंसानों की समता की शपथ लेने के रूप में नाचिये गाईए.

दलित बस्तियों में जाकर उनके आंगन में बैठिये उनकी तकलीफें सुनिए. उनके साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाइये.स्वीकार कीजिये कि आपके पुरखों से अन्याय हुआ था, लेकिन अब आप उस अन्याय को मिटायेंगे. अगर आप यह करते हैं तब तो समाज की शान्ति, लोकतंत्र और समानता व न्याय बचेगा वरना असमानता, नफरत लूट और अशांति ही बढ़ेगी. मैंने बहुत सालों पहले ही जीत की खुशी मनाने वाले त्यौहारों को पुराने रूप में बंद कर दिया है.

मैं तो खैर दिल्ली छोड़ कर आदिवासियों के बीच रहने ही चला गया था,लेकिन भाजपा सरकार ने मुझ पर ज़ोरदार हमला करके मुझे आदिवासियों के बीच से हटा दिया. देश के निर्माण में बहुत समय लगता है. भारत अभी बन ही रहा है.इसे बनाना या टुकड़े कर देना आपके हाथ में है. आपकी सोच और आपके काम ही इस देश की किस्मत का फैसला करेंगे.