हमारे अनेक साथियों को अभी भी भ्रम है कि माओवादी परिवर्तनकामी जमात के क्रांतिकारी सदस्य हैं. लेकिन जदयू के पूर्व नेता रमेश सिंह मुंडा की हत्या के रहस्यों के खुलासे और इस क्रम में झारखंड के ही एक अन्य राजनीतिज्ञ राजा पीटर की गिरफ्तारी से शायद उनके इस भ्रम का निवारण हो जाये. शायद इसलिए कि बहुत सारे बुद्धिजीवी मित्र इस तथ्य को जानते समझते हुए भी भ्रम में रहना चाहते हैं या उसे बनाये रखना चाहते हैं कि माओवादी क्रांतिकारी जमात के सदस्य हैं और बड़ी हसरत से उनकी तरफ देखते हैं.ेेेेेेेे
आपको पता होगा कि रमेश सिंह मुंडा के पहले माओवादियों ने झामुमो नेता सुनील महतो की हत्या की थी. माले नेता महेंद्र सिंह की हत्या के बाद कहा गया था कि क्रांति के रास्ते कभी-कभी गेहूं के साथ घुन भी पिस जाता है. रमेश सिंह मुंडा की हत्या के बाद किसी तरह की सफाई की जरूरत नहीं समझी गई. क्योंकि इस हत्या का कोई वस्तुगत कारण तत्काल दिखा भी नहीं. माना गया कि महज दहशत पैदा करने की नीयत से कार्रवाई हुई.
लेकिन अब मामला शीशे की तरह साफ है. तथ्य नई रौशनी में जिस तरह चमक रहे हैं, उसमें कोई संदेह नहीं रह गया है कि माओवादी अपने मूल सिद्धांतों से भटक चुके हैं और और कोई भी पैसे की ताकत से उनसे किसी तरह का भी काम करवा सकता है- किसी का अपहरण, चुनाव में हेरा फेरी, किसी की हत्या तक.
पूरा प्रकरण यह है कि गोपाल कृष्ण पातर उर्फ राजा पीटर 2005 का चुनाव स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में रमेश सिंह मुंडा से चुनाव लड़ते हैं और चुनाव हार जाते हैं. 2008 में रमेश सिंह मुंडा की हत्या उनके अपने इलाके बुंडू में माओवादी कर देते हैं. घटना के वक्त श्री मुंडा बुंडू उच्च विद्यालय में एक फुटबाॅल मैच देख रहे थे. उस हमले में माओवादियों ने मुंडा के अलावा उनके दो अंगरक्षकों और एक छात्र को भी गोलियों से भून दिया.
एक वर्ष बाद बुंडी के रिक्त विधानसभा सीट के लिए चुनाव होता है. उस वक्त शिबू सोरेन मुख्यमंत्री थे और उन्हें विधान सभा में पहुंचना था मुख्यमंत्री बने रहने के लिए. तो, एक तरफ वे मैदान में थे और दूसरी तरफ राजा पीटर. और रिजल्ट आया तो सभी स्तब्ध रह गये. राजा पीटर ने झारखंड के महानायक को चुनाव में पराजित कर दिया था. जो पीटर पूर्व में दो-दो विधानसभा चुनाव हार चुके थे, वे रमेश सिंह मुंडा के मर्डर के बाद चुनाव जीत गये. जाहिर है कि एक अपराधी की छवि रखने वाले पीटर अब जन नायक बन गये और अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में बनी भाजपा सरकार में मंत्री भी. 2010 में हुए विधानसभा चुनाव में भी वे जीते और एनडीए सरकार में मंत्री बने रहे.
लेकिन रमेश सिंह मुंडा की हत्या वाले मामले में उन पर शक की सूई बनी रही. और इसी वर्ष माओवादी कुंदन पाहन के समर्पण के बाद कई गुत्थियां खुली, जिसमें एक रमेश सिंह मुंडा की जघन्य हत्या का मामला भी है. माना यह जारहा है कि राजा पीटर ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदी रमेश मुंडा को रास्ते से हटाने के लिए सुपारी कीलर की तरह माओवादियों का इस्तेमाल किया. यही नहीं हत्या से उपजे इस आतंक और चुनाव के दौरान माओवादियों की मदद से ही वे शिबू सोरेन जैसे दिग्गज नेता को चुनाव में हराने में सफल हुए.
मओवादी झारखंड में राजनीतिक संरक्षण प्राप्त करने के लिए किसी राजनीतिक दल/नेता का समर्थन करते रहे हैं. लेकिन यह समर्थन विरोधी नेता की हत्या तक जायेगा, इस पर अचानक विश्वास करना कठिन है. लेकिन रमेश सिंह मुंडा हत्या कांड और उसके पटाक्षेप से तो यही लगता है कि माओवादियों और पेशेवर हत्यारों में अब कोई अंतर नहीं रह गया है.