• 1920 में गांधीजी ने गुजरात विद्यापीठ की स्थापना की. यह विद्यापीठ आश्रम की जीवन पद्धति पर आधारित था, इसलिए वहां शिक्षकों, छात्रों और अन्य स्वयं सेवकों और कार्यकर्ताओं को प्रारंभ से ही स्वच्छता के कार्य में लगाया जाता था. यहां के रिहायशी क्वार्टरों, गलियों, कार्यालयों, कार्यस्थलों और परिसरों की सफाई दिनचर्या का हिस्सा था. गांधीजी यहां आने वाले हर नये व्यक्ति को इस संबंध में विशेष पढ़ाते थे। यह प्रथा आज भी कायम है.
  • कई लोगों ने गांधीजी को पत्र लिखकर आश्रम में उनके साथ रहने की इच्छा जाहिर की थी. इस बारे में उनकी पहली शर्त होती थी कि आश्रम में रहनेवालों को आश्रम की सफाई का काम करना होगा, जिसमें शौच का वैज्ञानिक ढंग से निस्तारण करना भी शामिल है. गांधीजी ने हमारा ध्यान इस ओर खींचा… 21 दिसंबर 1924 को बेलगांव में अपने नागरिक अभिनंदन के जवाब में उन्होंने कहा था, ‘हमें पश्चिम में नगरपालिकाओं द्वारा की जाने वाली सफाई व्यवस्था से सीख लेनी चाहिए…पश्चिमी देशों ने कोरपोरेट स्वच्छता और सफाई विज्ञान किस तरह विकसित किया है, उससे हमें काफी कुछ सीखना चाहिए…’ (गांधी वाङ्मय, भाग-25, पृष्ठ 461)
  • जोहांसबर्ग (दक्षिण अफ्रीका) के आस-पास के क्षेत्र में सोने की खादानों वाले इलाके में प्लेग फैला था. गांधीजी ने अपनी पूरी शक्ति के साथ, स्वेच्छा से और स्वयं के जीवन को खतरे में डालकर रोगियों की सेवा की. नगर चिकित्सक और अधिकारियों ने गांधीजी की सेवाओं की बहुत तारीफ की. गांधी जी चाहते थे कि लोग उस घटना से सबक लें. उन्होंने एक जगह लिखा था : ‘…हमें स्वच्छता और सफाई का मूल्य पता होना चाहिए…गंदगी को हमें अपने बीच से हटाना होगा…क्या स्वच्छता स्वयं ईनाम नहीं है?’ (गांधी वाङ्मय, भाग-4 पृष्ठ 146)।
  • गांधीजी ने भारतीय समाज में सफाई करने और मैला ढोने वालों द्वारा किये जाने वाले अमानवीय कार्य पर तीखी टिप्पणी की. उन्होंने कहा- ‘हरिजनों में गरीब सफाई करने वाला या ‘भंगी’ समाज में सबसे नीचे खड़ा है जबकि वह सबसे महत्वपूर्ण है. अपरिहार्य होने के नाते समाज में उसका सम्मान होना चाहिए… जो काम एक भंगी