दिल्ली की लोकगीत गायिका तथा नर्तकी हर्षिता दहिया को उसके बहन के पति ने गोली मार कर हत्या कर दी, क्योंकि हर्षिता ने उस पर बलात्कार का आरोप लगाया था. इसी तरह कुछ वर्ष पहले कुलबिंदर कौर नामक नर्तकी की हत्या उस समय हुई जब वह किसी शादी के समारोह में मंच पर नाच रही थी. सपना चौधरी भी एक ख्याति प्राप्त स्टेज डांसर है, जिसको ‘बिग बाॅस’ जैसे शो में भी जगह मिली थी, ने आत्महत्या करने की कोशिश की. क्योंकि, सोशल मीडिया में उसे लेकर बहुत ही भद्दे ढंग से लिखा गया था. सपना हरियाणा के एक मध्यवर्गीय परिवार से आई हुई लड़की है. पिता की मृत्यु के बाद परिवार के भरण— पोषण के लिए उसने नृत्य का पेशा अपनाया. ‘साॅलिड बाॅडी’ गाने पर नृत्य कर उसने बहुत कम समय में ख्याति पाई. यू ट्यूब पर उसके वीडियो को देखने वाले लाखों में हैं. पटना की सोनू सोनी की भी यही कहानी है. स्टेज पर ठुमके लगा कर अर्जन करना.
इस पेशे की लड़कियों में कुछ बातें आम हैं. ये लड़कियां पिछड़े राज्यों से आयी हुई मध्यम वर्गीय परिवार की लड़कियां होती हैं. कम पढ़ी लिखी. पिता के मृत्यु के बाद परिवार के भरणपोषण का भार. शास्त्रीय नृत्य या गायन की कोई शिक्षा नहीं. स्टेज पर सस्ते फिल्मी गीतों पर ठुमके लगा कर दर्शकों का मनोरंजन करना. इस पेशे को अपनाने के पीछे आसानी से प्राप्त लोकप्रियता तथा पैसा भी है. इसीलिए सुंदर देहयिष्टी वाली लड़कियां इस पेशे को चुन लेती हैं. लेकिन यहीं पर इनकी कहानी का अंत नहीं होता है. इनके ठुमकों का आनंद लेने वाले मुख्यतः पुरुष होते हैं, जो इनके ठुमकों पर पैसे तो लुटाते ही हैं, साथ ही उनके शरीर का उपभोग भी करना चाहते हैं. इन नर्तकियों को फोन पर या आयोजकों के माध्यम से पटाने की कोशिश होती है. कभी-कभी मंच पर ही अश्लील हरकतें शुरु हो जाती हैं. फूहड़ दोअर्थी गानों पर ठुमके लगाने की मांग होती रहती है. दर्शकों के जायज या नाजायज मांगों की पूर्ति होती रहे, तभी वे अपने पेशे में बनी रह सकती हैं. वरना, मारी जायेंगी, पीटी जायेंगी या भद्दी गालियों का शिकार होंगी.
यही बात बार में नाचने वाली या शराब परोसने वाली लड़कियों के साथ भी होता है.
इनल लड़कियों के बारे में सोनिया फलेरियो ने अपनी किताब में लिखा है कि डांस बार में आने वाले पुरुष यहां नाचने वाली या शराब परोसने वाली लड़कियों पर अपना अधिकार मानते हैं. इसीलिए वे उन्हें तंग करते हैं. उनकी नजरों में निम्न जाति या निम्न आयवर्ग की स्त्रियां उनकी संपत्ति होती हैं.
भारतीय पुरुषों के नजरों में स्त्री केवल एक उपभोग की वस्तु है. यही दृष्टि विज्ञापनों में भी दिखता है जहां पुरुष उपयोगी वस्तुओं के प्रचार में भी स्त्रियां दिखती हैं. इक्कीसवीं सदी में एक उन्नतशील प्रजातांत्रिक व्यवस्था में रहते हुए भी पुरुषों की मानसिकता में कोई परिवर्तन नहीं आया है. आज भी वे सामंतों की तरह शादी विवाह में लड़कियों के नाच का आनंद लेते हैं. पैसे लुटाते हैं. और अश्लील बातें करते हैं. यदि लड़कियां इस उपभोक्तावादी संस्कृति में रोजी रोटी के लिए नाच गाने का पेशा अपनाती हैं, तो उन्हें तरह-तरह से अपमानित होना ही पड़ता है. यदि वे यह आशा करती हैं कि पुलिस और प्रशासन उनकी रक्षा करेगा, तो यह उनका भ्रम ही होगा. क्योंकि वहां भी पुरुष ही हैं.
भारतीय संविधान में स्त्रियों को अपनी योग्यता के अनुसार पेशा चुनने और धनोपार्जन का हक मिला है. यदि स्त्रियां इस अधिकार का उपभोग करना चाहती हैं, तो उन्हें अपनी सुरक्षा और सम्मान की जिम्मेदारी खुद लेनी होगी. उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेने की परिपक्वता अभी समाज में नहीं आई है. उन्हें यह भी समझना है कि औरत पुरुष के मनोरंजन का साधन नहीं है. अपमानित होकर या असम्मानजनक जीवन जी कर बराबरी का हक हासिल नहीं होगा. हजारो स़्त्रयां अपने भरण पोषण के लिए और काम करती हैं और अपने आत्म सम्मान की रक्षा करती हैं. इसलिए पेशा चुनते समय हर स्त्री को अपने सम्मान का ध्यान रखना ही होगा.