2013 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने यूनियन बजट में 10 बिलियन के एक कारपस (फण्ड) की स्थापना की. इस तरह महिलाओं की सुरक्षा के लिए समर्पित एक कोष बनाया गया. महिला की सुरक्षा की दृष्टि से इस तरह के अनेक सकारात्मक फैसले हुए. लेकिन बीते लगभग पांच वर्षों में उन फैसलों पर अमल की सच्चाई देख कर तो यही कहा जा सकता है कि हमने ‘निर्भया हादसे’ से कुछ नहीं सीखा! सरकारी प्रशासन तंत्र ने उन फैसलों को जरा भी गंभीरता से नहीं लिया. निर्भया फंड एक उम्मीदों भरी पहल थी, जिसमें 2013 के बाद अभी तीन हजार करोड़ रूपये का फंड है. इस वर्ष, 2017 में इसमें काफी राशि आ चुकी है. मगर केंद्र व राज्य सरकारों में इसके इस्तेमाल के लिए न इच्छाशक्ति है, न ही कोई योजना है.

झारखंड सरकार और राज्य की महिला कल्याण मंत्री तक को इस बारे में या तो पर्याप्त जानकारी नहीं है; या फिर वे इस ओर से उदासीन हैं. झारखंड में ही हर रोज महिलाओं के साथ उत्पीडन की घटनाएँ सामने आ रही है मगर इसे रोकने और पीड़ित को समुचित मदद की व्यवस्था में निर्भया फंड की मदद ली जाये, इसके लिए योजना तैयार हो, मीडिया तक को यह जानकारी नहीं है. 7 दिसंबर ’16 को नव भारत टाइम्स में छपी रिपोर्ट के अनुसार तीन हजार करोड़ के फंड से मात्र 600 करोड़ ही खर्च हुए. सुप्रीम कोर्ट में निर्भया फंड की राशि खर्च न होने को लेकर याचिकाएं दायर हुई हैं, जिन पर सुनवाई चल रही हैं. कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से सवाल भी किया है कि इस फंड का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जा रहा है.

निर्भया फंड की नोडल अथारिटी के तौर पर महिला एवं बाल विकास मंत्रालय को पूरी छुट है कि देश के किस राज्य को महिला उत्थान व सुरक्षा के लिए कितनी रकम दी जाये. राज्य सरकारों को अपनी योजनाएं देनी है. और इस काम में घोर उदासीनता है.

लोकसभा में पेश ब्योरे के मुताबिक, केंद्रीय महिला एवं बाल विकास आयोग का इस फंड में ‘सखी’ के लिए फिलहाल 119.71 करोड़ रुपये का प्रस्ताव है, जिसके तहत दूसरे चरण में 150 केंद्र खोले जाने हैं। वहीं महिला हेल्पलाइन को पूरे देश में विस्तार देने के लिए 69.49 करोड़ रुपये का प्रस्ताव है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से लगभग 1172 करोड़ रुपए का प्रस्ताव है जिसमें केंद्रीय पीड़िता मुआवजा फंड (200 करोड़), महिलाओं के प्रति अपराध के लिए जांच इकाई (324 करोड़), महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध की रोकथाम परियोजना (244.32 करोड़), राष्ट्रीय आपात प्रतिक्रिया प्रणाली (नेशनल इमरजेंसी रिस्पॉन्स सिस्टम) (321.69 करोड़) और संगठित अपराध जांच एजंसी (83.20 करोड़) संबंधी परियोजनाएं शामिल हैं।

दिल्ली पुलिस की ओर से लगभग 30 करोड़ रुपये का प्रस्ताव शामिल है, जिसमें जिला और उपखंडीय पुलिस चौकी के स्तर पर प्रोफेशनल सलाहकार बहाल किया जाना (6.20 करोड़) और महिला, बच्चों व उत्तर-पूर्व क्षेत्र के लोगों के लिए विशेष इकाई बनाया जाना शामिल है। वहीं दिल्ली सरकार की तरफ से डीटीसी और क्लस्टर की 6655 बसों और बसों के लिए 100 आधुनिक जमावड़ों की जगह पर सीसीटीवी कैमरों व जीपीएस उपकरण के लिए कुल 141.87 करोड़ रुपये का प्रस्ताव शामिल हैं। हालांकि केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी ने बसों में सीसीटीवी कैमरे को नाकाफी बताते हुए कहा है कि इस फंड का आबंटन नहीं किया जा रहा है।

कहने को या कागज़ पर योजनायें तो अनेक बनी हैं, पर उन पर ढंग से अमल भी हो रहा है और उनका कितना असर/लाभ हो रहा है, इसका ठीक ठीक पता नहीं चल पाती. रेल मंत्रालय की ओर से 500 करोड़ रुपये की समेकित आपात प्रतिक्रिया प्रबंधन प्रणाली (इंटीग्रेटेड इमरजेंसी रिस्पांस सिस्टम) की परियोजना शामिल है। वहीं ‘पैनिक बटन’ के लिए इलेक्ट्रॉनिक व सूचना प्रौद्योगिकी विभाग की तरफ से कारों और बसों में ‘पैनिक स्विच’ आधारित सुरक्षा उपकरण के लिए 3.499 करोड़ रुपये की परियोजना है। आंध्र प्रदेश परिवहन विभाग की तरफ से सार्वजनिक परिवहन के साधनों में ‘अभया प्रोजेक्ट’ के लिए 138.49 करोड़ रुपये का प्रस्ताव है। हरियाणा सरकार की तरफ से महिला पुलिस वालंटियर के लिए 1.29 करोड़ का प्रस्ताव है, इस प्रोजेक्ट का उद्घाटन हो चुका है और इन वालंटियर्स को केंद्रीय मंत्रालय की तरफ से मासिक राशि दी जाएगी. झारखण्ड सरकार की क्या योजनायें है यह जानकारी भी सामने आनी चाहिए.

इन सब में सबसे महत्वपूर्ण है ‘वन स्टाप सेंटर’ की स्थापना और उनके सही कार्यान्वयन की व्यवस्था और उसका प्रचार. रांची में भी संभवतः यह चलाया जा रहा है. मगर महिलाओं के साथ हो रहे अपराध की बढ़ती घटनाओं से यह संदेह तो होता ही है कि कहीं यह सब केवल खानापूर्ति तो नहीं है. स्त्रियों के साथ होने वाले अपराध में कमी हो, पीड़िता को तत्काल और समुचित मदद मिले, उनके पुनर्वास की कोशिश हो; और अंत में, अपराधी को एक तय समय सीमा में सजा मिले, तो वर्मा कमीशन की सिफारिशों और ‘निर्भया फण्ड’ का कुछ मकसद पूरा हो. मगर इतना भी तभी होगा, जब जनता जागरूक रहे और सरकारों से सवाल करती रहे, उन पर दबाव बना रहे. और यह हम सबकी जवाबदेही है, जिसमें हम भी पीछे रह जाते हैं.