संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती शूटिंग से ही विवादों में रही. फिल्म पूरी हो जाने के बाद भी प्रदर्शित नहीं हो पा रही है. कारण है, इसके प्रदर्शन से भारत के राजपूतों के अभिमान, सम्मान और शौर्य को चोट पहुंचेगी. इतिहास का कोई ज्ञान नहीं रखने वाले राजपूत भी मुरेठा बांध कर सड़क पर उतर आये हैं. भंसाली का पुतला जलाया. टीवी चैनलों पर बैठ कर भंसाली, उसकी मां तथा दीपिका पादुकोण को गालियां दी.
राजपूतों ने अपनी जाति तथा शौर्य के प्रदर्शन तथा प्रतिनिधित्व के लिए श्री करनी सेना नाम से एक संगठन बनाया है. इस सेना का मुख्य काम है, अपनी जाति के अभिमान की रक्षा के नाम पर तोड-़फोड़ करना, लोगों को डराना- धमकाना और जहां पैसा की उगाही संभव हो, वहां उगाही करना. राजस्थान में इस फिल्म के शूटिंग के समय ही चित्तौड़ के महल के आईने को लेकर विवाद खड़ा कर दिया. कहा जाता है कि पद्मावति की सुंदरता को इसी आईने में देख कर खिलजी मोहित हो गया और चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया. लेकिन राजपूत भाईयों को उस प्रसंग से ही आपत्ति थी कि राजपूत रानी का चेहरा आईने में भी कोई पर पुरुष देख सकता है. वैसे, वह आईना अभी भी चित्तौड़गढ़ के महल में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है.
इसी तरह की आपत्ति उन्होंने फिल्म में पद्मावति के नृत्य पर उठाया जो वह अपने पति तथा महल की दूसरी महलिाओं के सामने नाच रही होती है. उनके विचार से राजपूत रानी घूंघट हटा कर इस तरह नृत्य नहीं कर सकती हैं. इसलिए उन्होंने फिल्म के सेट पर तोड़ फोड़ कर फिल्म की शूटिंग को बंद कर दिया और भंसाली को थप्पड़ मार कर अपने शौर्य का प्रदर्शन किया. लेकिन बाद में यह भी खबर आई कि निर्माताओं से कुछ पैसा लेकर मामले को रफा—दफा किया और अपने अभिमान की रक्षा भी कर ली. राजपूतानी रानी के सम्मान को लेकर एक और दृश्य पर उन्होंने आपत्ति जतायी, जिसमें पद्मावति के एक स्वप्न का दृश्य है. इसमें वह अलाउद्दीन खिलजी के साथ प्रेम करते चित्रित की गई. जिस रानी ने अपनी इज्जत की रक्षा के लिए आग में कूद कर अपने प्राणों को त्याग दिया, वह राजपूतों के लिये देवी तुल्य है. इसलिए उसका अपमान कर भंसाली ने उनके धर्म पर भी चोट किया है. इस तरह करनी सेना ने इतिहास और धर्म को मिलाकर अपने बुद्धिमत्ता और ज्ञान का भी परिचय दे दिया.
यहां यह प्रश्न उठना वाजिब है कि जब फिल्म पूरा होकर प्रदर्शित नहीं हो पाई है, किसी ने उसे देखा नहीं तो इन दृश्यों को लेकर करनी सेना कैसे इतना बवाल मचा रही है? केवल अफवाहों, सुनी सुनाई बातों को लेकर हंगामा करना, तोड़—फोड़ करना, गालियां देना ही करनी सेना का काम रह गया है. हरियाणा बीजेपी प्रवक्ता सूरजपाल अमु ने तो भंसाली तथा दीपिका के सर काट कर लाने वाले को दस करोड़ देने की बात कही है. इससे यही साबित होता है कि करनी सेना को राजनेताओं का पूरा संरक्षण प्राप्त है. राजस्थान, उत्तरप्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश, गोवा, बिहार तथा तेलंगाना की सरकारों ने अपने राज्य में इस फिल्म के प्रदर्शन पर रोक लगाकर इस बात की पुष्टि ही की है. पद्मावति फिल्म के ऐतिहासिक पक्ष पर कई इतिहासकारों का कहना है कि पद्मावति कोई ऐतिहासिक पात्र नहीं है. लोक कथाओं या मिथिकीय कथाओं के कई पात्र धीरे-धीरे इतिहास के रूप् में प्रचलन में आ जाते हैं. इतिहास हमे यह बताता है कि 14 वीं शताब्दी में रतन सिंह राय चित्तौड़गढ के राजा थे. उस समय दिल्ली का शासक अलाउद्यीन खिलजी था जिसने राज्य विस्तार की दृष्टि से चित्तौड़ पर आक्रमण कर उस पर विजय पायी. 15 वीं शताब्दी में अवध के एक कवि मलिक मोहम्मद जायसी ने अपने काव्य पद्मावत में इस दृश्य का उल्लेख किया है कि रानी पद्मिनी की सुंदरता पर मुग्ध हो कर खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया. पति के मारे जाने के बाद रानी पद्मिनी ने दूसरी रानियों के साथ आग में कूद कर जौहर किया. इस तरह पद्मावति के ऐतिहासिक साक्ष्य तथा जायसी के काव्य में एक शताब्दी का अंतर है. इसलिए यह काल्पनिक है.
संसदीय समिति के सामने प्रस्तुत हो कर संजय लीला भंसाली ने यह सफाई दी कि उनकी नायिका का चित्रण जायसी के काव्य के आधार पर की गई है. हालांकि, करनी सेना के प्रमुख काल्वी का कहना है कि वे रानी पद्मावति के वंश के सैतीसवें वंशज हैं. यदि रानी पद्मावति कल्पित पात्र हैं, तो वे कैसे वास्तविक बन गये?
पद्मावति रानी हो या साधारण स्त्री, उसकी नियति तो एक ही होती है, पुरुषों के अधीन होना या उसके संरक्षण में रहना. पुरुष का संरक्षण हट जाये तो आग में कूद कर प्राण त्याग देने के अलावा उसके पास कोई रास्ता नहीं बचता है. अपने तथा अपने पुरुष के सम्मान के लिए वह प्राण त्याग दे तो वह देवी बन जाती है, अन्यथा वह अपवित्र कलुषित और कुलटा ही होगी. रानी सती का मंदिर बना कर उसको पूजनेवाले लोग इसी तरह के लोग हैं. सरकारी तंत्र में काम करने वाले अधिकारी हों या नेता, इसी सोच से पीड़ित हैं. यहां तक कि सेंसर बोर्ड ने भी मुट्ठी भर लोगों के स्वाभिमान की रक्षा के लिये बहाने बना कर इसे प्रमाण पत्र देने से बचता रहा है. हमारे ये राजनेता अपनी टुच्ची राजनीतिक स्वार्थ के लिए कुछ भी कर सकते हैं.
कुछ बौद्धिक जन करनी सेना तथा सरकार के इस रवैये का विरोध किया है. उनके अनुसार इस तरह किसी फिल्म के प्रदर्शन को रोकना असंवैधानिक है,अभिव्यक्ति की आजादी पर चोट है. किसी भी फिल्म के प्रदर्शन को रोकने का अधिकार सेंसर बोर्ड को नहीं है. दूसरी ओर संजय लीला भंसाली अपने भव्य और महंगे फिल्मों के जिरिये कहना तो कुछ विशेष नहीं चाहते हैं, बहुधा वे स्त्री को एक सजावटी वस्तु की तरह ही पेश करते हैं. बावजूद इसके हम करनी सेना के इस हिंसक विरोध को अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला मानते हैं और इसका विरोध करते हैं.