स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए सम्पूर्ण क्रान्ति काल मे भारत मे जबर्दस्त राजनीतिक चेतना की जागृति का काल था. इस समय में अनेक युवा सार्वजनिक जीवन मे उभरे और अहर्निश अपने संकल्प के लिए संघर्षरत रहे. ऐसे ही योद्धाओं की पंक्ति मे थे, पंचदेव. पञ्चदेव जी का स्मरण आते ही मेरी आंखों के सामने हिमालय जैसा उंचा, विशाल और उदात्त तथा चट्टान जैसा कोई ठोस व्यक्तित्व उभर कर आता है. उनके व्यक्तित्व और चिन्तन के निर्माण में बिहार की सामाजिक–आर्थिक परिस्थितियों का महत्वपूर्ण योगदान था. इसलिए उन्हे बिहार के “धरतीपुत्र” कहना मुझे सबसे अधिक उपयुक्त लगता है.
लोकहित का सिपाही
नाटा कद, मजबूत डील–डौल, जोश की चमक, किन्तु गम्भीर चेहरा. नेपाल के मित्र एवं सामाजिक न्याय के अप्रतिम योद्धा पञ्चदेव की यह सजीव छवि अब कभी साथ नही चल पाएगी, हम सब से बोल बतिया नही सकेगी. मुझे आज भी याद है अप्रिल २०१५ मे मुम्बई मे जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी का राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था जिसमे नेपाल की ओर से मै भी सहभागि था. पहली मुलकात मे ही, मै पञ्चदेव जी के व्यक्तित्व से प्रभावित हुआ. इसका कारण यह था कि वे अपनी बात बेहिचक कह सकते थे, अपनी अस्मिता और आत्मसम्मान के लिए वे किसी से भी लड़ सकते थे. कुछ वैसा ही उनकी प्रस्तुति उस सम्मेलन के दरम्यान भी रही. बाद मे अन्य साथियों से पञ्चदेव जी के सम्बन्ध मे विस्तृत जानने का मौका मिला. वे सामुदायिक नेतृत्व के लिए “भारतरत्न सी. सुब्रह्मण्यम फेलोशीप पुरस्कार” हेतु सन् २००४ मे चुने गये थे. सन् १९७४ के सम्पूर्ण क्रान्ति आन्दोलन के दौर मे गठित छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के वे सक्रिय सदस्य रहे हैं. आपातकाल के बाद के दौर मे वाहिनी के बोधगया एवं पचमनिया भूमि संघर्ष मे उनकी सक्रिय भूमिका रही है. बाद मे वे जनमुक्ति संघर्ष वाहिनी के कार्यों से जुडे रहे. मधुवनी (बिहार) के अपने क्षेत्र जहां उनका आश्रम था और जो उनकी कर्मभूमि थी, वहां सामाजिक बदलाव की प्रक्रिया मे सक्रिय रहे. सन् १९९१ मे मधुवनी मे वे लोहिया कर्पूरी इन्स्टीच्यूट औफ टेक्नोलोजी फौर सोशल चेन्ज से जुड कर सामाजिक आन्दोलन को सशक्त बना रहे थे. यह संस्था अपने आप मे बदलाव का केन्द्र बन चुका है. पञ्चदेव जातपात से मुक्ति, अन्तरजातीय विवाह को प्रोत्साहन, दहेज युक्त वैवाहिक समारोह का वहिष्कार, बाल मजदुरी का विरोधी, श्रमिको का सम्मान जैसे कामों से वे अनवरत पूरी निष्ठा के साथ अपने आपको जोडे रहे. पञ्चदेव जी अपने क्षेत्र के भी किसी सजातीय विवाह या वैदिक रीति से होने वाले श्राद्ध मे शामिल नही होते थे. दलितों एवं अत्यन्त पिछडों के वीच काम करने वाले उन्हे किसानों का मित्र भी कहा जाता था. गांव के विकास के लिए खेती मे सुधार के साथ साथ वे साम्प्रदायिक सौहार्द को भी जरुरी मानते थे. धर्मनिरपेक्षता में उनका अटूट विश्वास था.
नेपाल से रिश्ता
मुम्बई के बाद पटना मे भी नेपाल सम्बन्धी कई कार्यक्रमों में उनसे साक्षात होने का अवसर मिला. वे नेपाल में व्याप्त सामाजिक गैर बराबरी को लेकर चिन्तित रहते थे. उनका कहना था– “नेपाल मे पहाडी और मधेसी संस्कृतियों के बीच के रिश्ते का आधार तभी सही माना जा सकता है, जब उनका सम्बन्ध श्रेष्ठता या हीनता, किसी भी किस्म की मनोग्रन्थी से ग्रस्त न हो”. नेपाल को लोकतान्त्रिक गणराज्य बनाने और संघीयता सार्थक करने के लिए बदलाव पसन्द जमात को सदैव जागरुक रहने की जरुरत पर उनका जोर था. पहचान के संकट के खिलाफ मधेशियों के चल रहे संघर्ष में वे अपने को अनिवार्य हिसा मानते थे. वे कई बार मुझसे जोर देकर कहा करते थे— “लोकतन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति और समुदाय को अपनी बात कहने की पूरी आजादी होती है, लेकिन बात कहने का यह ढंग अहिंसक होना चाहिए. हिंसा से किसी समस्या का स्थायी समाधान नही हो सकता”. नेपाल मे सामाजिक न्याय के लिए चल रहे मधेशी आन्दोलन के समर्थन मे उन्होंने मधुवनी स्थित अपने आश्रम मे कार्यक्रम भी रखा था. पञ्चदेव जी जातीय गैर वराबरी, धार्मिक— सांम्प्रदायिक वैमनस्य तथा व्यवस्था मे फैले भ्रष्टाचार एवं लचर कानून व्यवस्था को लोकतन्त्र के लिए खतरा मानते थे. विश्व के किसी भी कोने मे अगर मानवीय सम्मान और अधिकार के लिए आन्दोलन होता है तो उसके लिए एकजुटता प्रकट करना वे अपना धर्म मानते थे. वे एक शोषणविहीन विश्व स्थापना के लिए संघर्षरत थे. वे चाहते थे, विश्व के किसी भी कोने मे हर प्रकार की विषमता न रहे, चाहे वह विषमता आर्थिक हो, सामाजिक हो अथवा सांस्कृतिक हो. मानव और मानव के बीच समानता में उनका अटूट विश्वास था और वे उसकी गरिमा की रक्षा के लिए जीवन भर जूझते रहे. मधेश आन्दोलन के प्रति एक्यवद्धता के लिए आयोजित कार्यक्रम मे शामिल होने के लिए जब मै मधुवनी स्थित उनके आश्रम मे कुछेक राजनीतिक साथियों के साथ पहुंचा तो मेरे साथ के लोग इनकी प्रस्तुति देख कर अचम्भित हुए. कारण पञ्चदेव जी सामान्य औपचारिकता के निर्वहन मे विश्वास नही करते थे. हम लोग पहुंचे तो हमे बताया कि आप लोग यहा सो जायेंगे, यहां रसोइ है– खाना खा लेंगे और सुबह नास्ते पर चना गुड का इन्तजाम है. फिर वे अपने काम में लग गये. आश्रम मे एक रात गुजारने और पञ्चदेव जी की दिनचर्या को नजदीक से देखने के बाद मेरे साथ के लोगों को लगा कि सामाजिक बदलाव के लिए संघर्ष इस तरह की जीवनशैली से ही सम्भव हो सकता है. आश्रम का सादगीपूर्ण जीवनशैली, रसायनमुक्त भोजन, खेती प्रणाली, मितव्ययी समारोह सञ्चालन जैसा पक्ष लोगों को प्रेरित कर रहा था. लोग कह रहे थे, नेपाल मे भी इसी तरह से सामाजिक संघर्ष की जरुरत है. विदेशी सहयोग से प्राप्त राशि से सामाजिक आन्दोलन को उत्कर्ष पर पहुंचाया नही जा सकता है. जमीन से जुड़ना है तो पञ्चदेव जी की कार्य पद्धति को आत्मसात करना पडेगा.
सच्ची श्रद्धांजलि
जब मुझे सामाजिक संचार के माध्यम से पता चला कि पञ्चदेव जी भौतिक रुप में नहीं रहे तो मुझे लगा कि मेरा एक वड़ा भाई गुजर गया. नेपाल और नेपालियों का एक मित्र चला गया. पञ्चदेव जी का कार्यक्षेत्र भारत–नेपाल सीमा क्षेत्र मे होने के कारण उनका नेपाल आना जाना लगा रहता था. नेपाल की जमिनी सच्चाई को नजदीक से जानने वाले बिहार के कुछेक लोगों मे वे भी थे. आज नेपाल और भारत दोनो तरफ संवैधानिक रुप से लोकतन्त्र तो है, लेकिन समाज मे आज भी गैर बराबरी है. इसके लिए दोनों तरफ से जनस्तर पर मिल कर काम करने की जरुरत है. निरन्तर संवाद से ही जनस्तर पर सहकार्य का रास्तानिकलेगा. पञ्चदेव जी नेपाल–भारत जनस्तर मैत्री के लिए एक अपवाद थे. अपवाद मैंने इसलिए कहा कि उनके जैसा सोंचने और काम करने वाले लोगों का दोनों तरफ अभाव है. व्यापक समाज हित मे रचनात्मक प्रतिरोध की संघर्षशील सक्रियता को जीने वाला पञ्चदेव जी अब स्मृति शेष है. नेपाल के मित्रों की ओर से उनको श्रद्धांजलि यही होगी कि नेपाल–भारत मैत्री रिश्ते पर हम निरन्त काम करते रहें. मेरा विश्वास है कि पञ्चदेव जी का व्यक्तित्व और उनके कार्य का सन्देश सीमावर्ती क्षेत्र के अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचेगा ताकि लोग उन्हे समझ सके और उन पर अमल कर सके. मै उनके प्रति श्रद्धा भाव व्यक्त करता हूं.