संघ परिवार अपने जन्म के बाद से ही आदिवासी समुदाय को यह समझाने की कोशिश करता रहा है कि सरना और सनातन एक हैं. आदिवासी और गैर आदिवासी एक ही धार्मिक समूह का हिस्सा हैं. उन्हें लगता है कि ऐसा करके वे उनका राजनीतिक इस्तेमाल हिंदू राजनीति के पक्ष में कर सकेंगे. विडंबना यह कि आदिवासी समुदाय में भी एक तबका, जिसने भौतिक तरक्की कर ली, रिजर्वेशन का फायदा उठा कर नौकरी और संपन्नता हासिल कर ली, अब खुद को आदिवासी कहते शर्माता है. उसे यह तीव्र एहसास होता है कि आदिवासी पिछड़ेपन की निशानी है, सभ्य समाज में जंगली समझा जाने वाला जीव. मैं ऐसे कई आदिवासी परिवारों को जानता हूं जो तेजी से हिंदूकरण की प्रक्रिया में हैं. हालांकि वे यह नहीं जानते कि हिंदू जन्मना ही हिंदू हो सकता है, हिंदू बनने का कोई विधान नहीं. आदिवासी आबादी पूरी दुनियां में करीबन छह फीसदी है. भारत में कुल आबादी का करीबन 12 फीसदी, जो मध्य और पूर्वोत्तर भारत में घनीभूत हो कहीं कहीं पचास फीसदी तक हैं. जाहिर है, इन क्षेत्रों में राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने में वे मददगार हो सकते हैं. भाजपा के रणनीतिकारों ने इस तथ्य को बहुत पहले समझ लिया, इसलिए वे एक अभियान लेकर इन इलाकों में वनवासी कल्याण केंद्रो के माध्यम से सक्रिय हैं. उनके अभियान को आसान बनाते हैं ईसाई मिशनरियां जो अपने सेवा कार्य से प्रभावित कर आदिवासियों को ईसाई बनाने की कोशिश करते हैं. संघ परिवार आदिवासी समाज की सेवा तो नहीं कर पाता, उसे यह डर सताता रहता है कि ईसाईयों के सेवा भाव से कहीं आदिवासी ईसाई न बन जायें.

बावजूद इसके सच यही है कि ईसाई मिशनरियां आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करती. फिर भी एक साजिश के तहत वनवासी कल्याण केंद्र ने हाल में ईसाईयों को ललकारा है कि वे बतायें कि सरना और सनातन में क्या भेद है? प्रकारांतर से वे यह जताने की कोशिश कर रहे हैं कि सरना आदिवासियों को वनवासी कल्याण केंद्र और आदिवासी ईसाईयों को मिशनरियां रिप्रजेंट करते हैं.

खैर, हमारा सवाल मिशनरियों से नहीं, संघ परिवार और वनवासी कल्याण केंद्र से है. सवाल पूछने के पहले हम यह स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि हमारा लिखित और प्रामाणिक इतिहास ईसा पूर्व छह सौ वर्षों से, यानी गौतम बुद्ध के जन्म से शुरु होता है. उसके पूर्व का जो भी इतिहास है वह दरअसल मिथ है, कल्पना है, घुंध में लिपटा इतिहास है. लेकिन हम मान कर चलते हैं कि मिथ या कल्पना का जन्म भी यथार्थ से ही होता है. तो, आईये सवालों की शुरुआत करें, घुंध में लिपटे इतिहास से लेकर आज के जलते इतिहास तक से.

  • समुंद्र मंथन तो देवताओं और दानवों ने, सुर और असुरों ने मिल कर किया था. जो बहुमूल्य वस्तुयें समुद्र मंथन से निकलीं- मसलन, अमृत, कामधेनु गाय, लक्ष्मी, ऐरावत आदि, उसे तो देवों ने हड़प लिया, असुर या दानव ठगे गये. अब सुर तो आपके पूर्वज या देवता हुये, ये असुर या दानव कौन थे?
  • विश्वामित्र, राजा दशरथ से राम और लक्ष्मण को वनों में किसे मारने या किससे यज्ञ आदि को सुरक्षित करने के लिए मांग कर ले गये थे? यह अलग सवाल है कि वन क्षेत्र पर अतिक्रमण किसने किया था, सवाल यह है कि राम और लक्ष्मण ने जिनको मारा, वे कौन थे?
  • राम तो आर्यपुत्र थे, यह रावण, विभीषण और कुंभकरण, जिनका विरूपित चित्रण रामायण में किया गया है, वे कौन थे?
  • द्रोणाचार्य ने एकलव्य का अंगूठा क्यों गुरु दक्षिणा में मांगा और वह एकलव्य कौन था?
  • लक्षागृह से बच कर भागने वाले पांडवों में से एक भीम ने अपने वनवास के दिनों में जिसके साथ सहवास किया वह कौन थी? घटोत्कच किसका बेटा था जिसे पांडवों ने महाभारत युद्ध में कुर्बान कर दिया?
  • भारत में जब अंग्रेज आये तो हिंदू राजाओं ने उनकी चिरौरी की, जार्ज पंचम के दरबार में सज धज कर कोर्निस बजाने गये, अंग्रेजों से लड़ने वाले और हजारों हजार की संख्या में शहादत देने वाले कौन थे?
  • संपूर्ण हिूंदू धार्मिक पुस्तकों में, दास, दस्यु, दानव, राक्षस, असुर आदि शब्दों से किसे संबोधित किया गया है?
  • हिंदू वर्ण व्यवस्था के चार वर्ण- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र के अलावा कोई और वर्ण भी है?
  • गुवा, खरसावा, तपकारा, कलिंगनगर, में कारपोरेट का दलाल बनी सत्ता के दलालो ने गोली चलाई, इनमें मारे जाने वाले कौन थें?
  • आपके मोदी तो अदानी, अंबानी के यार हैं. अपना जल, जंगल, जमीन बचाने के लिए निरंतर संघर्ष करने वाले कौन हैं?

इस तरह के अनगिनत सवाल हैं जिनका जवाब वे अपनी क्षुद्र राजनीति की वजह से भूल गये हैं. लेकिन हम यहां स्पष्ट कर दें कि संपूर्ण हिंदू वांगमय में जिसे दास, दस्यु, असुर, राक्षस, दानव जैसे मनुष्येतर प्राणी के रूप में संबोधित किया गया है, वे आदिवासी ही हैं. अब हालात बदल रहे हैं. वे चुनावी राजनीति और आदिवासी क्षेत्रों में संकेंद्रति विपुल खनिज व वन संपदा से आकर्षित हो एक साजिश के तहत सरना और सनातन एक हैं का नारा वे दे रहे हैं.

इस तथ्य को समझना जरूरी है कि सनातन ने हमेशा सरना का संहार किया है, वरना आदिवासी समाज अपनी अस्मिता और पहचान खो देगा.