सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने टीवी चैनलों के मुख्य समय में कंडोम के प्रचार पर रोक लगा दी है. राजस्थान उच्च न्यायालय द्वारा इन प्रचारों पर पूछे गये स्पष्टीकरण के कारण सरकार को यह कदम उठाना पड़ा. हालांकि उच्च न्यायालय ने उन सारे प्रचारों पर प्रश्नचिन्ह लगाया था, जिसमें ऐसी अश्लीलता दिखने की बात कही जाती है. कहा जाता है कि ऐसे विज्ञापनों के कारण परिचार के सभी सदस्य टीवी कार्यक्रमों को एक साथ देख नहीं पाते हैं. टीवी चैनलों का सारा व्यापार-व्यवहार ही प्रचार तंत्र पर निर्भर है. प्रचार भी अपने आप में लोगों के मनोरंजन के साधन बन जाते हैं. वैसे, सन्नी लियोन का जल का विज्ञापन हो या फिर बाथरूम में लगने वाले साजो सामान के प्रचार में अर्द्धनग्न महिला शरीर का प्रदर्शन भी कम अश्लील नहीं है. फिर भी सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने केवल कंडोम के प्रचार पर, वह भी मुख्य समय में रोक लगा दी है.

कई लोगों ने इस प्रचार के रोक को हास्यास्पद माना है. कंडोम का प्रचार मुख्य रूप् से परिवार नियोजन या जन स्वास्थ्य से जुड़ा हुआ है. सेक्स रोग या अवांछित गर्भ से लोगों को सचेत करने के लिये ही इस प्रचार को दिखाया जाना चाहिये. दूसरा, युवा पीढ़ी को इस अश्लीलता से बचाने का प्रयास माना जाये तो यह भी बेमतलब है. क्योंकि आज का युवा सेक्स से संबंधित जानकारियों को नेट के माध्यम से आसानी से देख या सुन सकता है. जरूरी है कि उन्हें विश्वसनीय तरीके से ये सारी जानकारी दी जायें. टीवी में गाड़ियों, डीओड्रेंड या पुरुष अंतरवस्त्र तक में महिलाओं की नंगी तस्वीरें पर्याप्त अश्लीलता परोसती ही हैं.

प्रचार प्रसार की यह प्रवृत्ति भारतीय टीवी चैनलों पर ही नहीं, विश्व के कई देशों के चैनलों पर भी देखी जा सकती है. गर्भ निरोधक साधन संबंधी किसी प्रचार में अमेरिका या ब्रिटेन तक में सावधानी बरती जाती है, क्योंकि इससे वहां की ईसाई धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचने का डर रहता है. भारत में तो कंडोम का प्रचार लिंगभेद तथा पुरुषवादी प्रवृत्ति को ही बढ़ावा देता है. साठ के दशक में जब निरोध का प्रचार शुरु हुआ, तो यह परिवार नियोजन या रोग से बचाव के साधन के रूप में ही प्रचारित होता था. स्वास्थ केंद्रों में इसे मुफ्त बांटा जाता था या कम कीमत में बेचा जाता था. नब्बे के दशक में जब भारतीय बाजार मुक्त व्यापार की ओर बढ़ा तो सारे प्रचार तंत्र में भी उन्मुक्तता आ गई. उस समय पूजा बेदी द्वारा प्रचारित कंडोम लिंटस कामसूत्र का विज्ञापन एक ऐसी आजाद महिला का चित्रण करता था जो अपने शरीर पर पूरा अधिकार रखती है, न कि केवल एक बच्चा पैदा करने वाली मशीन के रूप में दिखती है. इसे औरत की आजादी का एक कदम माना गया, फिर भी पुरुष उपयोगी वस्तुओं के विज्ञापन में महिला शरीर का अतिशय प्रयोग भी होता रहा.

कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि कंडोम का प्रचार परिवार नियोजन के साधन के रूप में नहीं, बल्कि शारीरिक उपभोग और आनंद को ही प्रदर्शित करता है. उत्तरप्रदेश के एक राजनेता ने तो यहां तक कह डाला कि सन्नी लियोन का कंडोम प्रचार बलात्कार के लिए प्रेरित करता है.

परिवार नियोजन की जिम्मेदारी स्त्री और पुरुष दोनों पर है. आंकड़े बताते हैं कि मात्र 5.6 फीसदी पुरुष ही इस साधन का प्रयोग करते हैं. जिसके लिये इतना प्रचार होता है. औरतें गर्भ निरोधक गोलियां या दूसरे साधनों का प्रयोग कर परिवार नियोजन की सारी जिम्मेदारी अपनी सेहत को दांव पर लगा कर लेती हैं. स्त्री उपयोगी साधनों का प्रचार केवल स्त्री द्वारा एक रहस्यमय मुस्कान के साथ मां, सास या बहन के द्वारा बातचीत करते हुये दिखाया जाता है. परिवार नियोजन के किसी भी साधन में पुरुष और स्त्री के आपसी सलाह का कहीं भी प्रचार नहीं दिखाया जाता है. इन साधनों का प्रयोग ज्यादातर स्त्रियां ही करती हैं, जो उनके लिए छिपाने की वस्तु होती है. इसलिये इसमें पुरुष की कोई भूमिका ही नहीं होती है.

कंडोम के प्रचार पर रोक लगा कर सरकार ने अपनी स्थिति को हास्यास्पद ही बनाया है, क्योंकि इसके प्रचार पर नहीं, इसके प्रचार के तरीके पर आपत्ति उठाई गई है. जन स्वास्थ या परिवार नियोजन के साधन के रूप् में इसका प्रचार किस तरह मर्यादित रूप में हो, इस पर ध्यान देना चाहिये, केवल कंडोम के प्रचार को रोकने से ही टीवी प्रचारों की अश्लीलता खत्म नहीं होती है.