सर्वोच्च अदालत, अर्थात सुप्रीम कोर्ट (एस सी) के अंदर के भ्रष्टाचार के मामलों को मैं गंभीरता के साथ समझने कि कोशिश कर रहा था. सबसे पहले (कुछ साल पहले) मैंने प्रशांत भूषण के ही द्वारा आठ पूर्व चीफ जस्टिस के खिलाफ ली गई भूमिका में दिलचस्पी लिया था. तब प्रशांत ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि पूर्व के इन जजों के सर्वोच्च पद पर रहते हुए परिवार की परिसंपत्ति में अनुपात से बहुत ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई थी. एस सी (सुप्रीम कोर्ट) ने जांच कराने की मांग को दरकिनार किया था. प्रशांत को मानहानि के नाम पर धमकाया भी. पर वे ना तो झुके और ना ही आगे कभी रुके.

अभी दीपक मिश्रा ( एस सी के मुख्य न्यायाधीश) एक जांच में संलग्न माने जा रहे हैं, जिसमें आरोप है कि लखनऊ के एक मेडिकल कॉलेज मामले में उन्होंने घूस खाया है. उन्होंने इस मामले में कामिनी जायसवाल, प्रशांत, उनके पिता शांति भूषण की अवमानना कर इस रिट को खारिज कर दिया, कि विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित कर सीबीआई से मामला ले लिया जाय.

दीपक मिश्रा खुद अनुकूल बेंच बनवा कर प्रशांत की अपील खारिज ना करा लें, इस हेतु पहले ही इन्होंने यह रिट भी किया था कि वे ( दीपक मिश्रा) इस मामले को ना तो खुद देखें और ना प्रशासनिक स्तर पर कोई दखल डालें. जस्टिस जे चेलमेश्वर ने प्रशांत और मित्रों को राहत दी थी. उनके साथ एक जज (दो) के बेंच का फैसला था कि एसआईटी के गठन की अपील पांच कि बेंच में सुनी जाए. तबही (नवंबर में) दीपक मिश्रा ने प्रशांत भूषण की अपील पर सुनवाई के दौरान हुड़दंगो को जुटा कर बखेड़ा खड़ा किया. प्रशांत को बोलने से रोका. प्रशांत भूषण तीखा होकर निकाल गए थे. आगे एक बेंच बना कर उससे एसआईटी की अपील ठुकरा दी. इस तरह बेंच बनाने के मनमौजीपन से एससी में भी शीर्ष स्तर पर असंतोष तीखा हो रहा था. कलिजियम की बैठकों में कुछ होता नहीं, यह सवाल चेलमेश्वर ने है उठाया था. यह बहस भी था कि जितनी गरिमा बची है उसमे तीव्र गिरावट आ रही है.

पहले एससी के जज जगन्नाथ मिश्रा को बचा कर अवकाश के बाद असम से कांग्रेस एमपी बन कर आ चुके हैं. उक्त घूस कांड के मामले की बहस में कहा गया कि प्रशानिक मामले में चीफ जस्टिस मास्टर ऑफ द रोस्टर होता है.

आगे जब १२ जनवरी, २०१८ को जस्टिस गण जे चेलमेश्वर, रंजन गोगोई, कुरियन जोसेफ और मदन बी लोकुर ने प्रेस से जो कहा उसमे गंभीरता है. वे कह रहे हैं कि एपेक्स कोर्ट में ऊपर के वरिष्ठ जज मिल कर नेतृत्व करें. मैनेजरी के मामले में भी सीजे की स्वेक्षाचारिता ना रहे. दीपक मिश्रा (सीजे) ने बेंच बनाने में खुली बेईमानी कर सुप्रीम कोर्ट की गरिमा को बट्टा लगाया है. यही वजह है कि दूसरे दिन १३ जनवरी को एड्वोकेट एसोसिएशन इस प्रस्ताव के साथ आगे आयी है कि रिट, पीआईएल मामलों में स्वेक्षचारिता की जगह इनमें वरिष्ठ जज ही रहें.

बात निकली है तो दूर तक जाय, इसमें हम सब की भलाई है. न्याय की प्रक्रिया ऊपर से और ढहने लगे तो यह बात कहां जा कर खत्म होगी. इस समय इस बहस में काफी दिलचस्पी ली जानी चाहिए. जस्टिस गण श्री चेलमेश्वर, श्री गोगोई इत्यादि ने सुधारों को ही हवा दी है।