अभी तक तीन तलाक़ मामले में अलग अलग जगहों पर तरह तरह के सवाल खड़े हुए हैं. तमाम समूह, राजनेतिक अराजनैतिक संगठनों ने अलग अलग बयान दिए, लेकिन ख़ास स्वयं उन महिलाओं को क्या लगता है जिन महिलाओं के लिए ये बिल पारित किया, हम यह जानने की कोशिश करेंगे. भोपाल में 11 सितम्बर की सुबह 10 बजे से इकबाल मैदान में चार घंटे के लिए जैसे महिलाओ का जन सैलाब उमड़ आया घरो से. महिलाएं बाहार आयी तीन तलाक़ मसले पर अपनी बात रखने के लिए. इसमें लगभग 5000 महिलाये शामिल हुई. महिलाओं ने इसका पुरजोर विरोध किया, इसलिए नहीं की वे तीन तलाक़ से मुक्ति नहीं चाहती, बल्कि इसलिए की उनको लगता है कि यह बिल सिर्फ राजनीति के खेल का हिस्सा है, जिसमे तीन तलाक़ मामले को इसका मोहरा बनाया. इससे महिलाओ की ज़िन्दगी में कोई फर्क नहीं आने वाला है,बल्कि उनके अपने निजी जीवन की मुश्किलें आगे और बढ़ने ही वाली हैं.
शाहिदा बी, उम्र 40 वर्ष, ने कहा कि किस घर में शौहर और बीवी के झगडे नहीं होते.. या अभी ताकि इतनी बड़ी मुस्लिम आबादी वाले भोपाल शहर में कितने शौहरों ने अपनी बीवियों को बोल बोल कर तलाक़ दे दिया है. “ इस तरह के कायदे कानून बनाकर ये सरकार तोहमत लगाना चाहती है मुस्लिम समुदाय के मर्दों पर की वे रोज औरतों को तलाक़ दे रहे हैं. सरकार को चाहिए की वह इस मसले की गणना कराए और खुद देखे की किस समुदाय में ज्यदटर ओरतो के साथ ज्यादती हुई है.
आयशा बी कहती हैं कि बलात्कार जो इतनी बड़ी तादाद में हो रहे हैं इंडिया में, उसको रोकने के पर्याप्त तरीके तो ये खोज नहीं पाये या इसमें उनकी रुचि ही नहीं, और चले आये मुस्लिम महिलाओं की चिंता के बहाने उनके निजी मामलों में दख़ल देनें.
सोशल एक्टिविस्ट रुबीना खान का कहना है कि वे महिलाओं की आजादी को लेकर हमेशा से चिंतित रही हैं. वे कहती हैं कि उन्हें चिंता है मुस्लिम महिलाओं में बढ़ते अशिक्षा केआंकड़ो की, राजनीति में महिलाओं की हिस्सेदारी न होना, और भी उन तमाम मसलो से जुडी चिंताए हैं जिन पर वाजिब है सरकार को भी अपनी चिंता दिखाना और उसके प्रति पहल लेना. साथ ही वे यह भी कहती हैं कि सरकार को आसान लगा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के साथ हस्तक्षेप करना, जब वे पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप कर कानून को बदल सकते हैं, तो क्या वे मुस्लिम समुदाय में लडकियों की शिक्षा को कम्पलसरी करने का आह्वान नहीं कर सकते? वे न मुस्लिम महिलाओं को अधिकार दिलाना चाहते हैं, न वे मुस्लिम महिलाओं का भला चाहती हैं. वे तो बस वोट की राजनीति कर रहे हैं.
जो तरक्की पसंद लोग है उनको एक तरफ़ा तलाक का विरोध करना चाहिए. यदि औरतों को इस तरह तलाक़ देने का हक्क नहीं है तो मर्दों को भी नहीं होना चाहिए. मैं जेंडर जस्टिस के पक्ष में हूँ. महिला आंदोलन जेंडर जस्टिस के पक्ष में है. जो अधिकार औरत को है, वही हक्क मर्द को होने चाहिए.
लेकिन, फिर भी कोई शौहर बीवी को ट्रिपल तलाक़ देता है, तो उसको जेल में डालना हमें मंजूर नहीं. शादी एक सिविल (civil) कॉन्ट्रैक्ट है. इस में criminal लॉ डालना हमें मंजूर नहीं. जज यह कर सकते है की जो civil रेमेडीज (उपाय) औरतों को मिलनी चाहिए, वह देना मर्द की जिम्मेदारी है. और इस के लिए क्या रास्ते ढूंढ सकते हैं, वो ढूँढने चाहिए और फिर भी ना जिम्मेदारी ले तो उसकी प्रॉपर्टी या वेतन औरत को देना, इस किसम के तरीके सोच सकते है.
और यदि ट्रिपल तलाक को गुनाह बना दें, तो बीबी को छोड़ देना यह भी गुनाह होना चाहिए. पूरे भारत देश में करोडों ऐसी औरते हैं जिनको उनके पति ने छोड़ दिया है. ये औरतें ना दूसरी शादी कर सकती हैं, ना अपनी ज़िन्दगी अपने शर्तों पर जी सकती हैं. इनमें बहुत सारी हिन्दू धर्म की है. उसमें एक जशोदाबेन भी हैं. इन सब के शौहरों को जेल में बंद करना पडेगा.