मैं जिस समुदाय से आता हूं वो पारधी समुदाय है, जो आदिवासी समुदाय मे से एक है. एक समय था जब पारधी समुदाय जंगल से शिकार करने का काम करता था, मध्य भारत, महाराष्ट्र के कई राजे रजवाडो के यहां उनके सुरक्षा सलहकार हुआ करते थे. राजा महाराजो के लिए शिकार किया करते थे. राजा जिस जंगल में शिकार के लिए जाता, उस जंगल की जानकारी पारधी समुदाय के लोगो के पास हुआ करती थी. आज भी कई गांवों की रखवाली पारधी जनजाति के लोग ही करते आ रहे है. उनके बदले गांव के लोग उन्हें हर घर से आनाज देते हैं.
आज मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में पारधी समुदाय गरीबी और भुखमरी के कारण मर रहा है. सरकार भी उनकी कोई मदद नहीं कर रही है. समाज में पारधी की पहचान पहले सामुदायिक सुरक्षा कर्मी,और शिकारी के रूप में हुआ करती थी. लेकिन आज का ये बाहरी समाज पारधी समुदाय के लोगो को अपने करीब देखना भी नहीं चाहता है. प्रशासन और समाज ने पारधी समुदाय को अपराधी जातियों में से एक मानती है, जिनका पेशा ही अपराध करना ठहरती है.पुलिस और समाज ने पारधी को शक के नजरिये से देखते हैं. मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र के कई जिलो में पारधी समुदाय की कई सारी बसाहट है, जिसमें भोपाल भी एक है. भोपाल में पारधी समुदाय अलग अलग बस्तियों में रहता है. चाहे हम आज महाराष्ट्र की बात करें या मध्य प्रदेश की, सभी जगह पर्धियो का एक ही जैसा हाल है. भोपाल में पारधी समुदाय कचरा बीनने का काम करता है. भोपाल में रह रहे पारधी समाज के लोग लगभग 30 सालों से कचरा बीनने का काम करते आ रह हैं. सरकार ने देश आजाद होने से अब तब पारधी समुदाय को कोई भी रोजगार नहीं दिया, बल्कि उनका निजी रोजगार छुड़ाकर उन्हें जंगल से बे दखल कर दिया. आज समुदाय दर दर की ठोकरें खा रह हैं.
पारधी समुदाय कचरा बीनता है भी तो समाज का कहना है की कचरे की आड़ में चोरी करता है पारधी समाज. समुदाय के लोग अगर हाट-बाजार में कोई समान खरीदने जाया करता है तो उन्हें पुलिस जबरन परेशान करती है. उन्हें बाजार से उठाकर ठाणे बंद कर देती है. उनके साथ मारपीट करके यह पूछा जाता है की तुम बाजार मैं क्या करने आए हो? उनके ऊपर झूटे केस लगाकर उन्हें जेल भेज देना, नहीं तो रिश्वत मांगकर उन्हें भगा देना. पुलिस वालों का रिश्वत लेने का चलन बहुत ज्यादा है. पारधी बसहटो में वे कभी भी बिना सर्च वोरेंट के आ जाते हैं. उनका कोई समय नहीं होता आने का. जब आए, तब लोगो को उठाकर ले जायेंगे. चाहे दिन हो या रात. घरों से जानवरों की तरह उठाकर ले जाते हैं. लोगों को बिना कार्रवाई किये 8 से 10 दिन पुलिस थानों में बंद करना, उन्हें मारना, आये दिन पारधी समुदाय को ऐसे प्रताड़ित करना जैसे उन्होंने कोई घोर आपराध कर दिया हो. महिलाओ को, बच्चो को, किसी को नहीं बक्शते ये लोग. अगर आपने पुलिस के ऊपर कार्रवाई करने की कोशिश की तो वो बस्तियों में आकर लोगो को धमकाते हैं, मारते हैं. बस्तियों में आकर दारु पीकर लोगों के घरों को तोड़ दिया जाता है. घर के सामान को तोड़ दिया जाता है. ऐसी गुंडा गर्दी करते हैं, मानों उन्हें कहीं से लाइसेंस मिल गया हो. आए दिन पारधी बसाहटो में एसी किस्म की घटना घटित होना आम बात हो गई है. ना सरकार सुनती है हमारी, ना ही पुलिस अफसर. और वो हमारी सुनेगा भी क्यों? शहर में कहीं भी चोरी हुई, और पुलिस वालों पर ऊपर से दवाब बनता है कि तुम लोग क्या कर रहे हो. तो पुलिस पारधी बस्तियों में आकर किसी को भी उठाकर अदालत में पेश कर देती है. आरोप लगाती है कि इन्हीं ने शहर में होने वाली चोरियों को अंजाम दिया है और हमारे न्यायलयो में बैठे जज आराम से पुलिस वालों पर विशवास कर लेते है..पारधी को पकड़ कर लाया है, पक्का उसी ने चोरी करी होगी. अदालतों में इतने सारे मामलों के केस दर्ज है पारधी समुदाय पर की कोई इस समुदाय की बातो पर विशवास, भरोसा नहीं करता? समाज भी कहता है, तुम तो चोरी करते होगे?
उदाहरण तो बहुत सारे हैं. अभी ही कुछ दिन पहले की जुडी हुई एक पारधी बस्ती की घटना.सितम्बर महीने में गाँधी नगर बस्ती में एक पारधी बसाहट से दो युवक को पुलिस द्वारा पकड़ा गया. वे दोनों पारधी युवक फेरी लगाने का काम करते हैं जिसमें वे प्लास्टिक का सामान घर-घर जाकर बेचते हैं. वे दोनों सुबह 10 बजे करीब अपने काम पर निकले हुए थे अपनी मोटर साईकिल से. उन्हें भोपाल पुलिस द्वारा पकड़ कर ठाणे ले जाया गया. ठाणे में उनके साथ मार - पीट खूब की गई. वे बार-बार पुलिस से बोल रहे थे — सर धंधा करने वाले लोग हैं, पर पुलिस वाले उनकी एक ना सुनी. उन्हें ठाणे में दो दिनों तक रखा गया. उन दोनों युवक को जिस हवालात में रखा गया उसमे दो लोग पहले से ही अवेध शराब बेचने के मामले में बंद थे.जिसमे से एक दलित और एक आदिवासी भिलाला समुदाय से था. उन पर चार्ट शीट फ़ाइल की गई तो इन चारों पर एक ही किस्म की धाराएं लगा कर केस बना दिया. जबकि दो लोगों पर तो नियम अनुसार अवैध शराब बेचने का केश दर्ज होना चाहिए? पर ऐसा नहीं किया गया. गाँधी नगर में रहने वाले राज आनंद पारधी व लूम राज पारधी, कालापीपल में रहने वाला अर्जुन जातव व सुजालपुर में रहने वाला राजू भिलाल के ऊपर झूठा केस में एक कट्टा, एक जिन्दा कारतूस, 7 चोरी के मोबाईल, एक चाकू,एक मिर्ची पाउडर और साथ में एक मोटर साईकिल, जो रंगे हाथों पकड़ने के दोरान पुलिस द्वारा बरामद किया गया है, जो मोटर साईकिल लूम राज की अपनी स्वयं की थी, जिसकी चोरी का आरोप भी उन्ही पर थोपा गया. वे जबरन जेल की सजा भुगत कर आए. राज आनंद लूम 18 के अन्दर होने के बावजूद भी उन पुलिस वालों ने उनके साथ बड़ों जैसा सुलूक किया. उनके साथ भारतीय दंड सहिंता के दौरान केस बनाकर बड़ी जेल भेजा गया, जिसकी उन्होंने सजा भुगती. उन पर कानून के अनुसार किशोर न्याय अधिनियम के तहत मामला दर्ज होना चाहिए था. पर हमारी पुलिस ने ऐसा नहीं किया, क्योंकि वो एक खास जन जातीय पारधी समुदाय का था. उन्होंने तीन महीने बड़ो की तरह भोपाल केन्द्रीय जेल में सजा काटी.