“वह हँसी बहुत कुछ कहती थी”, वह कोई गलती से निकल गया स्कूल गर्ल्स गिग्गल नहीं था, वह विरोध में किया गया अट्टहास था, एक झूठ का उपहास था, साफ दिख रहा था कि सुनाई पड़े इसके लिए जान बूझ कर हँसा जा रहा है. प्रधानमंत्री सदन के अंदर बाहर बहुत कुछ ऐसा अनर्गल और तथ्यात्मक रूप से गलत बोलते रहते हैं जिस पर हँसा जा सकता है. कुछ दिनों पहले खबर आई थी कि आकाशवाणी के दो कर्मचारियों पर प्रधानमंत्री के कार्यक्रम मन की बात की रिकॉर्डिंग के दौरान हँस पड़ने के कारण कार्यवाई हुई थी.
9 जनवरी को राज्यसभा में प्रधानमंत्री के भाषण के बीच विपक्ष की तेज तर्रार नेता रेणुका चौधरी हँस पड़ीं, एक तरह से यह हँसी नारेबाजी का ही एक रूप था, मगर यह हँसी सत्ता पक्ष को इतनी नागवार गुज़री कि सभापति, भाजपा के ही वेंकैया नायडू ने रेणुका चौधरी को डॉक्टर के पास जाने की सलाह दे डाली और प्रधानमंत्री ने तो अपने खास एनिमेटेड अंदाज़ में उनकी हँसी की तुलना रामायण सीरियल की हँसी से कर दी. उन्होंने पात्र का नाम नहीं बताया, मगर ज़ाहिर है सीता या रामायण की बाकी ‘अच्छी’ स्त्रियां कभी सीरियल में मंद मंद मुस्कुराने से ज़्यादा हँसती हुई नहीं देखी गयीं थीं. सत्ता पक्ष में प्रधानमंत्री की इस हाज़िरजवाब ‘चुटकी’ से हँसी का तूफान आ गया. थोड़ी ही देर बाद भाजपा के किरण रिजिजू ने ट्विटर पर रामायण सीरियल से ही हँसती हुई शूर्पणखा का वीडियो अपलोड कर दिया.
अब तर्क दिया जा रहा है कि रेणुका चौधरी का व्यवहार असंयत और सदन तथा प्रधानमंत्री की गरिमा के खिलाफ था और कि अगर हँसी मज़ाक में प्रधानमंत्री ने भी ‘चुटकी’ ले ली तो उसे तूल नहीं देना चाहिए. कमाल यह है कि ऐसा बोलने वाले वही लोग हैं जिन्होंने पिछली और उसकी पिछली सरकार के दौरान खुद न कभी सदन की और न ही प्रधानमंत्री की गरिमा का ख्याल रखा. सबसे बड़ी बात है कि हर तरह के असंसदीय आचरण (गाली गलौज, मारा पीटी और पॉर्न देखना) के बाद भी किसी सदस्य को आजतक डॉक्टर के पास जाने की सलाह नहीं मिली थी, न ही किसी पर ऐसी व्यक्तिगत टिप्पणी की गई थी. तो क्या बात फिर वहीं नहीं आ पहुंचती है कि मर्यादा की शर्तें औरतों और मर्दों के लिए अलग अलग है, और औरतों का खुलकर हँसना, खासकर पुरुष का मज़ाक उड़ाते हुए हँसना, हमारे समाज में स्वीकार्य नहीं.
महाभारत में द्रौपदी एक बार दुर्योधन पर हँस पड़ी थी, उस हँसी का बदला दुर्योधन ने भरी सभा में द्रौपदी के कपड़े खिंचवा कर लिया था. द्रौपदी पौराणिक महिलाओं में सबसे उन्मुक्त और साहसी है. सीता, या कोई और पात्र उस तरह से नहीं हँस पायी. द्रौपदी के अलावा वह उन्मुक्त हँसी, या अट्टहास शूर्पणखा जैसी ‘राक्षसियों’ के ही हिस्से आया. शूर्पणखा प्रणय निवेदन लेकर लक्ष्मण के पास पहुंची थी, हँसने के साथ साथ स्त्री का प्रेम प्रदर्शन भी निषिद्ध है, प्रेम का सर्वाधिकार पुरुषों के पास सुरक्षित रहा है.
मगर शूर्पणखा तो भिन्न थी, ‘राक्षसी’ थी, ‘सभ्यता’ के ढोंग उसे नहीं आते थे, वो पहुँच गयी लक्ष्मण के पास, लक्ष्मण ने उसे अपमानित करते हुए उसकी नाक काट दी.
शूर्पणखा कहा जाना किसी का अपमान वैसे तो नहीं है, मगर जब कहने वाले कि नीयत अपमान करने की हो तो आपत्ति होना स्वाभाविक है, और इसका चौतरफा विरोध शुरू हो गया. रेणुका चौधरी ने भी विशेषाधिकार हनन का नोटिस दे दिया. सोशल मीडिया पर भी लड़कियों ने प्रधानमंत्री, नायडू, और रिजिजू के जवाब में #शूर्पणखाहँसी जैसे हैशटैग्स के साथ अपनी खुलकर हँसती हुई तस्वीरों की बाढ़ ला दी. यह प्रतिकार है प्रधानमंत्री के झूठ के खिलाफ.