घाटशिला के प्रखंड के एक गांव में बच्चों के लिए अनाथालय चलता है, जिसमें उस इलाके के अनाथ बच्चों का भरण-पोषण और उनकी पढ़ाई लिखाई होती है. इस अनाथलय को कण्टा सिंह नाम के एक कर्मठ समासेवी चलाते हैं. रांची के लिए तो वे आदिवासी हैं लेकिन सिंहभूम में ओबीसी. दरअसल, वे एक लोहार हैं. लोहार या लोहरा रांची जिले में आदिवासी सूची में रखा गया है, जबकि सिंहभूम में ओबीसी सूची में.
उस गांव का नाम भी अजीब है. लेदा डाईन डुंगरी. प्रखंड काड़ा डूबा. कई वर्षों से यह अनाथलय चल रहा है. एक व्यक्तिगत प्रयास से. अब जा कर कण्टा सिंह को सराहना और सम्मान मिला है राष्ट्रपति पुरस्कार के रूप में. सरकार ने दो कमरे का एक भवन उन बच्चों के लिये बनवा दिया है. एक में बच्चे रहते हैं. दूसरे में पढ़ते हैं. हम उनके इस व्यक्तिगत प्रयास की सराहना करते हैं. उनका काम प्रेरणादायक है.