हम पत्रकार लेखक या आज की भाषा में ‘मीडिया कर्मी’ ऐसे हैं जो उम्र की साठ की सीमा पार कर चुके हैं. अपनी जवानी में हमने ‘पत्रकारिता’ करना कैसे सीखा, इसकी एक बानगी यहां प्रस्तुत है.

बीसवीं सदी में, 70 के दशक में पत्रकारिता के पेशे में उस पीढ़ी का पर्दापण हुआ, जो आजादी- 1947- के बाद पैदा हुई. उसमें से अधिसंख्य युवाओं ने उस समय तक प्रकाशित किताबों’ को पढ़ कर लिखना सीखा - खास कर साहित्य की किताबें. साहित्य में भी कहानी और उपन्यास की किताबें और पत्रिकाएं. ‘लिखने की कला’ सीखते हुए कुछ कृतियों- कुछ उपन्यासों और कुछ कहानियों- से इस पीढ़ी ने पत्रकारिता की विद्या, यानी पत्रकारिता करने की क्रिया-प्रक्रिया- के विज्ञान व तकनीक की जानकारी हासिल की और उसके प्रयोग- उपयोग और अभ्यास से ‘पत्रकार’ बनने की राह अपनाई.

20 वीं सदी के युवा पत्रकारों ने जिन लेखकों और कृतियों को पढ़ कर लिखना सीखा- पत्रकारिता को अपनाया- आजीविका के लिए यानी, पत्रकार बने, अखबारी लेखन करते- करते लेखक बने और फिर साहित्यकार बने, उनमें से एक थे 19 वीं सदी के उपन्यासकार बाल्जाक.

20 वीं सदी की पत्र-पत्रिकाओं में वे लोग संपादक बन कर स्थापित होते थे जो साहित्यकार के रूप में या लेखक के रूप में पहले से प्रतिष्ठित होते थे. लेकिन उस समयकी आम धारणा यह थी कि पत्रकारिता अपने आप में स्वतंत्र विधा नहीं है. यह साहित्यकारिता की अनुषंगी- पुछल्ला- है. इसलिए कोई भी साहित्यकार पत्रकार बनने को तैयार नहीं होता था. ऐसे वक्त में युवा पीढ़ी में ऐसे पत्रकार उमड़े जिन्होंने पत्रकारिता की स्वतंत्र विधा के रूप में नींव रखी.

होनोरे दे बाल्जाक 19 वीं सदी का विश्वविख्यात फ्रेंच लेखक था.

बाल्जाक लगभग 1828 ई. तक जासूसी उपन्यास और कहानियां नकली नामों से लिखता रहा. 1828 में ही उसका पहला उपन्यास उसके असली नाम से प्रकाशित हुआ. पाठकों ने उसे पसंद किया. साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों में उसकी खूब चर्चा हुई.

सन् 1834 में ‘बूढ़ा गोरियो’ पहले धारावाहिक के रूप में प्रकाशित हुआ.

बाल्जाक उस समय तक अपने उपन्यासों के लिए एक नाम- ‘19वीं शताब्दी के लोक व्यवहार का अध्ययन’ -स्टडीज आॅफ नाईनटीन्थ सेंचुरी मैनर्स- का प्रयाग करता था.

सन् 1842 में वह योजना परिपक्व हुई. बाल्जाक ने अपने उपन्यासों का पहला नाम बदल कर ‘द ह्यूमेन कामेडी’ कर दिया.

तय हुआ कि अपने अब तक जितने उपन्यास लिखे हैं, उन सबका एक संग्रह इस नाम से प्रकाशित हो. इस संग्रह के लिए बाल्जाक ने खुद ‘भूमिका’ लिखी जिसमें इस बात की व्याख्या थी कि वह जो उपन्यास लिख रहा है अथवा लिखना चाहता है, उनका नाम ‘ह्यूमेन कामेडी’ रखना कैसे उचित है?

बाल्जाक ने 1845 में अपने उपन्यासों की जो योजना बनाई थी, उसकी एक सूची तैयार की. इस सूची के अनुसार उसका इरादा 144 उपन्यास लिखने का था. उसका इरादा था कि अपनी इन कृतियों में वह तीन-चार हजार पात्र प्रस्तुत करे और ये पात्र उस समय के समाज के प्रत्येक वर्ग, प्रत्येक स्तर, प्रत्येक धंधे और प्रत्येक व्यापार से लिए जायें. ताकि इन उपन्यासों द्वारा 19वीं सदी के समूचे मानव इतिहास को समझने में मदद मिले. इसमें मानव चरित्र का गहरा अध्ययन हो.

लेकिन बाल्जाक की यह योजना अधूरी रह गई. इसके पांच साल बाद यानी, 1850 में बाल्जाक का देहांत हो गया. बाल्जाक अकाल मृत्यु का शिकार हुआ क्यों ? इसकी अलग ही कहानी है. बाल्जाक ने बड़े-छोटे कुल 99 उपन्यास लिखे. इन उपन्यासों में 35 साहित्यिक दृष्टि से उच्च कोटि के माने जाते हैं. उनमें भी ‘बूढ़ा गोरियो’ उपन्यास को सर्वश्रेष्ठ कहा जाता है. ‘बूढ़ा गारियो’ का हिंदी अनुवाद किया हंसराज रहबर ने. उसका प्रथम संस्करण 1977 में निकला. इसका नाम था- ‘खंडहर’. इसे प्रकाशित की ‘शिक्षा भारती’, कश्मीरी गेट, दिल्ली-6 ने. किताब 288 पेज की थी. मूल्य 15 रुपये.

बाल्जाक ने खुद प्रकाशन का काम शुरु किया. टाईप फाउंडरी स्थापित की. लेकिन वह अपने इस व्यापारिक प्रयास में असफल रहा. लेकिन इससे उसने जीवन का वास्तविक चित्रण करने का अनुभव प्राप्त किया और उस अनुभव को अपनी औपन्यासिक कृतियों में पिरोया और संजोया.

बाल्जाक ने अपने समय के बड़े-बड़े विचारकों को प्रभावित किया. माक्र्स ने अपनी प्रसिद्ध कृति ‘पूंजी’ में इसका उल्लेख किया. अपने पत्रों में उसके उपन्यासों के वाक्य उधृत किये और उन्हें पढ़ने की सलाह दी. गोर्की ने अपने एक लेख ‘मैंने लिखना कैसे सीखा’ में बाल्जाक की बहुत प्रसंशा की. गोर्की को बाल्जाक का ‘बूढ़ा गारियो’ उपन्यास खासतौर पर पसंद था और वह एक धार्मिक ग्रंथ की तरह इसे अपने थैले में रखता था.

बाल्जाक की कृतियों को पढ़ कर कोई भी पाठक यह समझ सकता है कि उसकी समझ लेखक बाल्जाक की मूल मान्यता थी. वह मूल मान्यता यह थी कि साहित्यकार और साहित्य की कोई भौगोलिक सीमा नहीं होती. मानव स्वभाव दुनिया भर में एक जैसा होता है. यह मानव स्वभाव विज्ञान के नियमों के सदृश्य परिस्थितियों के अधीन होता है.

बाल्जाक अकाल मृत्यु का शिकार हुआ. उसने बहुत ही दरिद्रता का जीवन बिताया था. इससे उसका स्वास्थ बिगड़ गया था. वह अपनी योजना को पूरा करने के लिए 16-16, 18-18 घंटे रोज काम करता था. उसे पेरिस के ऐसे इलाके में रहना पड़ता था जहां दिन भर शोर रहता था. इसलिए वह रात को लिखता था और जागते रहने के लिए ब्लैक काफी पीता था. परिणामतः वह अकाल मृत्यु का शिकार हुआ.