कई साथियों का कहना है कि कठुआ में बर्बरता की शिकार हुई आसिफा की तस्वीर पोस्ट नहीं की जानी चाहिए. प्यारी सी मासूम लड़की की तस्वीर उन्हें परेशान करती है. विचलित करती है. मेरा मानना है कि आसिफा की तस्वीर बार -बार पोस्ट की जानी चाहिए.
अब नहीं तो कब विचलित होंगे? होइए विचलित. दिल और दिमाग पर चोट लगनी चाहिए. आत्मा कचोटनी चाहिए. आसिफा के साथ हुई बर्बरता शूल की तरह आपके वजूद को चुभनी चाहिए. मैं तो कहता हूं कि बार -बार आसिफा की तस्वीरें पोस्ट करिए. बार -बार. तमाचे की तरह. वहशी सोच को खत्म करना तो मुमकिन नहीं लेकिन शायद उस सोच का दायरा कुछ सीमित हो जाए.
इस मासूम की तस्वीर को बार -बार देखिए. कभी बेटी की तरह. कभी नातिन की तरह. कभी पोती की तरह. कभी बहन की तरह. इसके साथ हुई बर्बरता के बारे में बार -बार सोचिए. बौखलाइए. कांपिए. गुस्सा कीजिए. सोचिए कि ये लड़की अगर आपकी होती तो आप पर क्या गुजरती? सोचिए कि आसिफा के साथ जो हुआ, वो आपकी लाडली के साथ होता तो आप क्या करते? आप किस हाल में होते? आप आसिफा की तस्वीर में इंसान को हैवान बनने के ट्रांसफारमेशन को देखिए. फिर सोचिए. बार -बार सोचिए कि कैसी दुनिया हम बनाना चाहते हैं.
जब तक आप सोचेंगे नहीं, तब तक आपके भीतर हलचल नहीं होगी. आप सोचेंगे नहीं तो रेपिस्टों को बचाने वाले कठुआ के तिरंगाधारियों पर आपको कोफ्त नहीं होगी. आसिफा की मां उसके कपड़ों को देखकर रोती है. उसकी किताबें देखकर रोती है. उसके चप्पल देखकर रोती है. उसके पिता अपनी बेटी के साथ हुई दरिंदगी के बारे में सोचकर आधी रात को उठ बैठते हैं. सिहरते रहते हैं. आप तो सिर्फ तस्वीर देखकर सिहर रहे हैं. सिहरिए कि हम कैसे समाज में रहते हैं. मासूम आसिफा में जिन्हें मुसलमान और बलात्कारियों में जिन्हें हिन्दू नजर आता है, वो भी इस बेटी की तस्वीर देखें. बार -बार देखें. शायद उनके भीतर का इंसान जाग जाए.
बलात्कार चाहे कठुआ की आसिफा के साथ हो या फिर देश के किसी हिस्से में रहने वाली किसी भी मासूम बच्ची या लड़की के साथ. बलात्कार इंसानों द्वारा किया जाना वाले जघन्यतम अपराध है. हैरत तो ये है कि इस अपराध में भी अपराधियों का धर्म देखकर उसे बचाने के लिए गोलबंदी हो रही है. सोशल मीडिया पर बहुत से भाई लोग यूपी - बिहार में हुई दूसरी घटनाओं की खबरें निकालकर पूछ रहे हैं कि आसिफा पर बोल रहे हैं तो इस पर बोलिए. आसिफा पर हंगामा क्यों, इस पर क्यों नहीं. उनकी सोच ही उनकी जेहनी हालत का सबूत है. मैं ऐसे लोगों पर वक्त खर्च नहीं करना चाहता. मैंने बीते छह महीनों में ही मासूमों के साथ बलात्कार की घटनाओं पर कम से कम बीस पोस्ट लिखी है. दिल्ली में आठ महीने से लेकर दो साल की मासूम बच्चियों के साथ दरिंदगी हुई. तब भी मैंने कई बार लिखा. यूपी, हरियाणा, एमपी से लेकर देश के कई राज्यों में मासूमों के साथ हर रोज दरिंदगी होती है. मैं हर ऐसी खबर पर विचलित होता हूं. लिखता रहता हूं. आसिफा के साथ जो हुआ, वो आप पहले जान लीजिए. चार्जशीट पढ़ लीजिए. अगर आपके भीतर थोड़ी भी इंसानियत होगी तो आप जरुर कांप जाएंगे.
लिहाजा अभी बात आसिफा ही करूंगा क्योंकि आप बात आसिफा की ही नहीं करना चाहते. आपने तब भी बात उन मासूमों के साथ हुई घटनाओं पर नहीं की थी. आज आप रिसर्चर बने हैं, ताकि हर उस शख्स से सवाल पूछ सकें, जो आसिफा का सवाल उठा रहे हैं.