उन्नाव तथा कठुआ रेप कांड के बाद देश में एक बार फिर निर्भया कांड जैसा दृश्य उपस्थित हो गया है. अखबारों में लिखा गया, टीवी चैनलों पर पार्टियों के प्रवक्ता बैठ कर घटना की व्याख्या अपने अपने पार्टी लाईन पर करते रहे और इस कोशिश में लगे रहे कि इसका कुछ राजनीतिक लाभ उन्हें मिल जाये. मीडिया वालों को यह भी चिंता होने लगी कि इन घटनाओं पर प्रधानमंत्री का कोई बयान नहीं आया. मानो, उनके बयान मात्र से पीड़ितों को न्याय मिल जाता और इन घटनाओं की पुनरावृत्ति थम जाती. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. मोदी के बयान के बाद भी लगातार इस तरह की घटनाएं हो रही हैं. एटा, सूरत, कवर्धा, झारखंड इसके गवाह हैं.

कठुआ की घटना के तीन महीने के बाद मोदी का मौन टूटा और उन्होंने भारत में पहला बयान यह दिया- ‘‘किसी भी अपराधी को बख्शा नहीं जायेगा. पीड़ितों को न्याय अवश्य मिलेगा.’’ यह एक रटा- रटाया बयान था. दूसरा बयान ब्रिटेन के प्रवासी भारतियों के सामने देते हुए उन्होंने कहा - ‘‘ छोटी बच्चियों के साथ हुआ रेप समाज के साथ अपराध है. बलात्कार बलात्कार होता है. देश की लड़कियों का बलात्कार स्वीकार नहीं, और यह पूरे देश के लिए चिंता का विषय है.’’

सामान्यतः इस तरह की कोई घटना घटती है तो पूरा देश बेचैन हो जाता है, लेकिन उन्नाव तथा कठुआ की घटनाओं में दृश्य कुछ भिन्न था. उन्नाव की घटना पिछले वर्ष जून महीने की है. पीड़ित लड़की ने थाना में शिकायत दर्ज करनी चाही तो पुलिस ने नहीं किया. क्योंकि बलात्कारी उत्तर प्रदेश का एक विधायक है. इस वर्ष जनवरी में न्याय की गुहार लगाते जब पीड़िता के परिवार ने मुख्यमंत्री आवास के सामने धरना दिया तो पुलिस की उपस्थिति में ही विधायक के भाई ने लड़की के पिता को बुरी तरह पीटा और पुलिस ने उसे ही अपराधी बनाकर जेल में डाल दिया, जहां बाद में पुलिस टार्चर से उसकी मौत हो गई. इस तरह बीजेपी विधायक को बचाने के लिए सारा पुलिस तंत्र लग गया.

कठुआ में एक आठ साल की लड़की के साथ बलात्कार हुआ. यह बलात्कार एक सोची समझी योजना लगती है, क्योंकि जम्मु की हिंदुत्ववादी विचाधारा और वहां की राजनीति हमेशा से ही गुज्जर तथा बाखरेवाल आदिवासी समुदाय को जम्मु में एक स्थाई बसाहट देने के विरोध में है. बाखरेवाल समुदाय एक घुमंतु आदिवासी समुदाय है, जो मुख्यतः पशुपालन का काम करता है. गर्मियों में ये लोग पशुओं के साथ ही लद्दाख तक चले जाते हैं. फिर ठंढ़ के दिनों में पहाड़ के नीचे जम्मू के जंगलों में रहने के लिए चले आते हैं. वे इस्लाम धर्म को मानने वाले लोग हैं. बाखरेवाल जाति की आठ साल की लड़की 10 जनवरी को गायब हो जाती है. 12 जनवरी को उसके पिता उसके गायब होने की शिकायत थाना में करते हैं. 17 जनवरी को उसका शव जंगल में मिलता है. छह व्यक्ति पकड़े जाते हैं. उनमें से एक स्पेशल पुलिस का इंसपेक्टर है, एक रिटायर्ड रेवेन्यू अफसर तथा अन्य चार उसके परिवार के व्यक्ति. उनमें से एक नाबालिग. बाद में दो सिपाही भी पकड़े जाते हैं, जिन्होंने सबूतों को मिटाने का काम किया था.

तीन महीने बाद 9 अप्रैल को जम्मू पुलिस की अपराध शाखा ने कोर्ट में इन लोगों के विरुद्ध चार्जशीट दाखिल किया. उससे ही बलात्कार और हत्या की क्रूरता सामने आती है. देश के विभिन्न भागों में लोगों ने अपने अपने तरीके से विरोध प्रकट किया, लेकिन जम्मू में भाजपा पोषित हिंदू एकता मंच ने अभियुक्तों के बचाव के लिए लोगों को गोलबंद करना शुरु किया, कोर्ट में आरोप पत्र प्रस्तुत करने में अड़ंगा डाली, सारे वकीलों ने इस चार्जशीट का विरोध किया, पीड़िता के पक्ष में खड़ी वकील को धमकाया. जम्मू कश्मीर सरकार के दो मंत्रियों ने एक विरोध मार्च का नेतृत्व कर बलात्कारियों का साथ दिया.

इन दोनों घटनाओं से यह बात स्पष्ट है कि बलात्कार जैसे जघन्य अपराध को भी सत्ताशीन पार्टी और शासन तंत्र की स्वीकृति है. सत्ता मद में लिप्त विधायक मंत्री कुछ भी कर सकते हैं. इसके पीछे उनका छुपा एजंडा भी हो सकता है. इन बलात्कार की घटनाओं को उस कड़ी में हम शामिल कर सकते हैं जब एक अफवाह मात्र से मुज्जफरनगर में दंगे करवा कर अल्पसंख्यकों का सफाया कर दिया गया. गौरक्षक बन कर लोगों ने सड़कों पर नृशंस हत्यायें की. गौमांस रखने के शक में किसी अल्पसंख्यक के घर में घुसकर उसकी हत्या कर दी. बीजेपी शासित कुछ राज्यों की सरकारों ने बूचड़खानो को बंद कर या गौमांस पर पाबंदी लगाकर लोगों की जीविका छीन ली. ये सारी घटनाएं यही बताती हैं कि अतिवादी हिंदू विचारधारा के चलते जो जघन्य अपराध हो रहे हैं, उसे पार्टी तथा सरकार का संरक्षण प्राप्त है.

प्रधानमंत्री देश में हों या विदेश में, यह कहते रहे हैं कि पिछले साठ पैसठ वर्षों से पिछड़ा हमारा देश विकास के पथ पर दौड़ पड़ा है. बच्ची के साथ बलात्कार, नृशंस हत्याये विकास का तो परिचायक नहीं? चिंता का विषय यह कि सत्तारूढ़ पार्टी और सरकार बलात्कार की इन घटनाओं को लेकर न चिंतित है न शर्मसार.