गुज्जर तथा भाखरेवाल जम्मु कश्मीर की दो पहाड़ी जातियां हैं. भाखरेवाल राज्य की कुल जनसंख्या का 11.9 फीसदी और गुज्जर 4 से 5 फीसदी. इन दोनों जातियों के लोग गोजरी तथा पहाड़ी भाषा बोलते हैं, जो कश्मीरी और डांेगरी भाषा के बाद सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है. गुज्जर लोग एक जगह बस कर खेती करते हैं या दूध देने वाली पशुओं को पाल कर दूध का व्यापार भी करते हैं. लेकिन भाखड़ेवाल लोग ठंढ के दिनों में जम्मू के सुंदरबानी जंगलों में अपने पशुओं के साथ बसते हैं. वे मुख्य रूप से पशुपालक होते हैं और पशुओं की चारागाह के लिए जंगलों में बसते हैं. जैसे ही गर्मी के दिन शुरु होते हैं, वे कश्मीर घाटी की ओर अपने परिवार तथा पशुओं को लेकर चल पड़ते हैं. वहां तक पहुंचने में उन्हें 550 किमी का रास्ता तय करना पड़ता है. लगभग दो महीने तक उपर तक बढ़ते हैं और कश्मीर घाटी में फैल जाते हैं. आसिफा इसी भाखरेवाल समुदाय की बेटी थी.
ठंढ़ के दिन शुरु होते ही फिर जम्मू के मैदानी भाग का सफर शुरु हो जाता है. भाखड़ेवालों के अनुसार जम्मु के वनों में उसी समय तक रह पाते हैं जब तक कि मक्के की खेती शुरु न हो. जैसे ही मक्के के पौधे बढ़ने शुरु होते हैं, उन्हें अपने पशुओं को चराना उनके लिए असंभव हो जाता है. एक परिवार के पास लगभग 200 या उससे अधिक पशु होते हैं जिनमें भेड़, खच्चर आदि प्रमुख हैं. ईद के समय कश्मीर घाटी में उनके भेड़ उंचे दामों में बिकते हैं. उनके पास खाना बनाने के दो चार बर्तन, मकई का आटा तथा नमकीन चाय बनाने के लिए कुछ जड़ी बूटियां रहती है.
भाखरेवाल खुद को प्रकृति की संतान बताते हैं. उन्हें अपने जन्म की तिथि का पता नहीं होता है. वे मौसम के कलेंडर से चलते हैं और वही उनके स्मरण रहता है. वे सुन्नी मुसलमान होते हैं. साल में दो बार कठिन यात्रायें करने के कारण वे परिश्रमी और जीवट होते हैं. प्राकृतिक विपदाओं का सामना करना उन्हें आता है. लेकिन कभी- कभी वे सीमाओं पर चलने वाले गोला-बाड़ी में फंस भी जाते हैं. कहा जाता है कि उन्होंने अपने साहस का परिचय देते हुए आतंकवादियों को पकड़ाने में सेना की मदद भी की है. इसी जज्बे के कारण इन्होंने गृहमंत्री से गुज्जर भाखड़ेवाल रेजीमेंट बनाने की भी मांग की है. जम्मु के समतल भाग में हों या कश्मीर की घाटियों में, ये मिट्टी की झोपड़ियां बनाकर रहते हैं, जिन्हें डोक कहा जाता है. यात्रा पर निकलते समय वे अपनी डोक में ताला लगाकर उस पर किसी धातु का चमकता हुआ टुकड़ा लगा देते हैं, जो इस बात का सूचक होता है कि वे इस डोक में लौट कर आयेंगे.
शोध में पाया गया कि कठिन यात्राओं के कारण भाखरेवाल स्त्रियां मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर होती हैं. 88.1 प्रतिशत 13 वर्ष उम्र की लड़कियों का उनकी उम्र के अनुकूल शारीरिक विकास नहीं होता. वे कमजोर होती हैं. उनकी शिक्षा का प्रतिशत मात्र 25.5 है. प्रत्येक वर्ष भाखड़ेवालों को आपनी यात्रा के पहले उस जगह के उपायुक्त को यात्रा की अनुमति के लिए आवेदन पत्र देना होता है जिसमें परिवार के सदस्यों की सख्या, पशुओं की संख्या और उस स्थान का नाम देना होता है जहां वे जाना चाहते हैं.
भाखरेवालों की इतनी चर्चा यहां इसलिए की जा रही है क्योंकि इसी वर्ष जनवरी माह में भाखरेवाल परिवार की एक आठ वर्षीया लड़की का अपहरण होता है और सामूहिक बलात्कार के बाद उसे मार दिया जाता है. यह घटना केवल बलात्कार की घटना न हो कर यह भी स्पष्ट करता है कि जम्मु के अतिवादी हिंदू संगठन यह मानते हैं कि हिंदू बहुल जम्मु में गुज्जर तथा भाखड़ेवाल अपनी संख्या बढ़ाकर इसे मुस्लिमबहुल बनाना चाहते हैं. समय समय पर पाकिस्तानी समर्थक या गो तस्कर के नाम पर इनपर हमले भी होते रहे हैं. बलात्कार की घटना के बाद जम्मु में हिंदुओं तथा मुस्लिमों के बीच जो सहज संबंध था, वह बदल गया है. जंगलों में रहने वाले इन भाखरेवालों को लोग शक की नजर से देखने लगे हैं.
यहां एक बात और उल्लेखनीय है कि जम्मु कश्मीर में जंगल अधिकार काननू 2006 लागू नहीं है. इसके कारण जंगल में रहने वाले भाखरेवाल लोग जंगल में अपने निवास पर अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं. उन्हें परंपरागत रूप से प्राप्त अधिकार के तहत इन जंगलों में अस्थाई रूप से रहने तथा पशुओं को चराने का अधिकार प्राप्त है. इसी का लाभ उठाते हुए बीजेपी नेता चैधरीलाल सिंह ने भाखरेवालों को अवैध निवासी कह कर इन्हें जंगलों से हटाने की कोशिश की. इस पहाड़ी जाति को अब केवल महबूबा मुफ्ती की सरकार से आशा है कि उन्हें जंगल में निवास का अधिकार मिलेगा.
भाखरेवाल लोग जो एक घुमंतू जाति है, मौसम के अनुसार अपने निवास को बदलने वाले इन लोगों के पास कोई स्थाई या अचल संपत्ति नहीं होती है. हिंदू बहुल जम्मु में केवल उनके धर्म के कारण उनपर शक करना या बदले की भावना से उनकी बेटियों के साथ बलात्कार करना, मारना और भयभीत करना मानवता के खिलाफ किया गया जघन्य अपराध है.