मार्क्स ने कहा था - ‘इतिहास की पुनरावृत्ति नहीं होती, होती है तो त्रासदी’. कर्नाटक में हुई परिघटना भाजपा और संघ परिवार के लिए त्रासदी ही तो है. वे अब धन बल काउपयोग कर सत्ता हड़प की कोई योजना बनाने के पहले कई बार सोचेंगे और कर्नाटक की त्रासदी उन्हें याद रहेगी. आप सबों को याद होगा कि 2005 में भाजपा ने कुछ निर्दलीय विधायकों का खरीद फरोख्त कर, उनका भयादोहन करके यही वही काम सफलता पूर्वक किया था, जो कर्नाटक में नहीं कर सकी. उस समय आडवानी राष्ट्रीय अध्यक्ष और राजनाथ झारखंड के प्रभारी थे. हालांकि उस समय उस समय उन्हें झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन के विश्वास मत को विफल करना था और इस बार कर्नाटक में यदुरप्पा के विश्वास मत को सफल करना था. झारखंड में तो वे अपने लक्ष्य में सफल रहे, लेकिन कर्नाटक में सही समय पर कोर्ट के हस्तक्षेप और जनता की जागरूकता की वजह से विफल हो गये.

उस चुनाव में भाजपा और जनता दल यूनाईटेड को 36 और झामुमो, कांग्रेस राजद गठजोड़ को 33 सीटें प्राप्त हुई. बहुमत के लिए लिए पांच निर्दलीय विधायक - एनोस एक्का, हरिनारायण राय, कमलेश सिंह, मधु कोड़ा, सुदेश महतो आदि का समर्थन जरूरी था. एनोस एक्का और हरिनारायण राय झामुमो के ही समर्थक थे, लेकिन उन्हें ले उड़ा गया. सिमडेगा के एक मैदान में हेलीकाप्टर उतरी और अर्जुन मुंडा खुद उसमें मौजूद थे और उन्हें लेकर किसी अज्ञात स्थान को पहुंचा दिया गया. हरिनारायण को भाजपा के प्रदीप यादव ले उनके क्षेत्र से.

तो हुआ यह कि दोनों पक्षों के दावों प्रतिदावों के बीच शिबू सोरेन को मुख्यमंत्रीपद की थपथ दिला दी गई और उन्हें राज्यपाल सिब्ते रजी ने एक सप्ताह के अंदर बहुमत साबित करने का निर्देश दिया जिसे कोर्ट ने हस्तक्षेप कर कुछ और कम कर दिया. सारा दारोमदार एनोस एक्का और हरिनारायण राय के समर्थन पर टिका था. लेकिन आरोप है कि उन्हें प्रलोभन और भयाक्रांत किया गया जिसमें गुंडों तक की मदद ली गई.

वह दृश्य बहुतों को याद होगा कि शपथ लेने के तुरंत बाद शिबू सोरेन और बंधु तिर्की भागे हवाई अड्डे की ओर जहां एक चार्टर विमान भाजपा विधायक को लेकर उड़ने वाला था. शिबू सोरेन तो बाहर ही रहे, लेकिन बंधु तिर्की भीतर गये. विमान के अंदर जाकर देख आये, लेकिन एनोस और हरिनारायण नहीं थे. कहते हैं कि सुदेश महतो उन्हें अपने साथ लेकर सड़क मार्ग से रफूचक्कर हो गये थे और सभी राजस्थान के किसी रिसार्ट में रुके. अवतरित हुए झारखंड में शिबू सोरेन के विश्वास मत वाले दिन. उस दिन शिबू सोरेन के समर्थक विधायक कमलेश सिंह रिम्स में भर्ती हो गये. एक दूसरी समर्थक मेनका की गाड़ी रास्ते में खराब हो गई. क्यों हो गई, यह समझना मुश्किल नहीं. और शिबू विश्वास मत हार गये.

कहते हैं, भाजपा ने ‘मिशन झारखंड’ को सफल बनाने के लिए साम, दाम, दंड, भेद, सबों का सहारा लिया. कारपोरेट ने पानी की तरह पैसा बहाया. और शिबू सोरेन के पराजय का जश्न मनाया. और शिबू को धोखा देने वाले तमाम विधायक भाजपा मंत्रिमंडल में शामिल किये गये. याद रखने वाली बात यह कि सुदेश महतो उस वक्त भी भाजपा के साथ थे और आज भी वे भाजपा के साथ हैं.

झारखंड भाजपा के लिए हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है, क्योंकि कारपोरेट जगत को यहां की खदानों से ही तो लौह अयस्क और कोयला चाहिए. इसके अलावा यहां से जीते सांसद केंद्र में सरकार बनाने के काम आते हैं.

तो, उसी कहानी को भाजपा कर्नाटक में दुहराना चाहती थी. उन्हें यकीन था कि खनन माफिया के सहयोग -धन-बल- से वे कांग्रेसया जनतादल युनाईटेड के पांच सात विधायक आसानी से तोड़ लेंगे. या कमलेश सिंह की तरह कुछ विधायक बीमार पड़ जायेंगे या मेनका की तरह कुछ की गाड़ी रास्ते में खराब हो जायेगी.

लेकिन वे भूल गये, काठ की हांडी बार-बार आग पर नहीं चढ़ती.