रांची स्थित निर्मल हृदय नामक संस्था की दो ननों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. उन पर आरोप है कि उन्होंने अपनी संस्था के चार बच्चों को बेचा है. निर्मल हृदय या मिशनरी आॅफ चाईरिटी, मदर टेरेसा द्वारा स्थापित संस्था है जो अविवाहित गर्भवति महिलाओं को अपनी संस्था में रख कर उनकी देख भाल करती है, उनके नवजात बच्चों को निःसंतान माता-पिता को पालने के लिए देती है. पुलिस का दावा है कि दोनों गिरफ्तार ननों ने बच्चा बेचने की बात कबूल कर ली है. लेकिन इस दावे की उस वक्त तक कोई अहमियत नहीं जबतक कि कोर्ट में ये आरोप प्रमाणित नहीं हो जाते हैं. झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने पुलिसिया कार्रवाई की निंदा की है और इस संस्था के कार्यों की सराहना की है. उन्होंने सरकार से इस घटना की मीडिया ट्रायल बंद करने और सीबीआई जांच कराने की मांग की है. ममता बनर्जी तथा भाकपा नेता एचूरी आदि ने मिशनरी आॅफ चैरिटी की तरफदारी की और इस संस्था पर इस तरह की पुलिसिया कार्रवाई को वर्तमान सरकार की धार्मिक असहिष्णुता बताई है. दूसरी और बीजेपी के झारखंड प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव का कहना है कि मिशनरी संस्था पर यू ही कार्रवाई नहीं हो रही है. इन्हें बच्चों को गैर कानूनी ढंग से बेचते हुए पाया गया तो ननो की गिरफ्तारी हुई. विश्व हिंदू परिषद के जेनरल सेक्रेटरी सुरेंद्र जैन के अनुसार तो चर्च तथा उसके अधीन काम करने वाली ये सारी सामाजिक संस्थाएं धर्म परिवर्तन तथा अन्य कई तरह के गैर कानूनी और अनैतिक कार्यों के अड्डे हैं. अतः इनकी जांच होनी चाहिये. यह संघी नजरिया है.
हिंदू बहुसंख्यक भारत वर्ष में अल्पसंख्यक धार्मिक संस्थाओं को लेकर जिस सोच के साथ राजनीति हो रही है और शासन चलाया जा रहा है, वह इस तरह के बयानों से ही साबित हो जाता है. इसी का नतीजा है कि सड़क पर चलते किसी व्यक्ति को गौ तस्कर कह कर मार दिया जाता है, बच्चा चोरी के नाम पर किसी आदमी की पिटाई कर मौत के घाट उतार दिया जाता है. गौमांस होने के शक पर किसी आदमी के घर में घुस कर उसे मार दिया जाता है या किसी चर्च के सामने गौमांस के अफवाह मात्र से पत्थरबाजी शुरु हो जाती है. यह केवल घृणा की राजनीति है.
यहां यह बताना जरूरी है कि मदर टरेसा के नामसे जुड़ी यह संस्था वह काम करती है जिसे न सरकार कर सकती है, न हमारा हिंदू समाज. खुद को मातृ पूजक कहने वाले इस इस देश में स्त्री का भी कोई सम्मान नहीं है. जन्म से लेकर मृत्यु तक उसे अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ती है. वह समाज में असुरक्षित है. समाज उसको एक सम्मान जनक जीवन भी नहीं दे सकता है. वह पुरुष के अधीन है. यदि उसने अपनी इच्छा से विवाह किया तो परिवार की इज्जत चली जाती है. उसके साथ बलात्कार हो तो वह अपवित्र हो जाती है. विधवा या परित्यक्ता स्त्री को परिवार सहारा नहीं देता है. वह अपने पैरों पर खड़ी है तो ठीक, वरना वृंदावन या काशी जा कर भीख से गजारा करना होगा. ऐसे समाज में यदि कोई अविवाहित लड़की गर्भवती हो जाती है तो वह समाज के लिए कलंकित और उसका बच्चा नाजायज होता है. वैसी स्थिति में खुद को मार देने के अलावा उसके लिए कोई दूसरा रास्ता नहीं रह जाता है.
ऐसे समय में कोई संस्था आगे बढ़ कर उसे शरण देती है, उसकी देखभाल करती है और सुरक्षित प्रजनन की व्यवस्था करती है, तो वह प्रशंसनीय काम है. अविवाहित गर्भधारण करना कोई पाप या अपराध नहीं होता है, न इससे समाज कलुषित ही होता है. औरत की इस असहज स्थिति का कारण जो पुरुष है, उसे सजा मिलनी चाहिये. लेकिन हमारा समाज इतना असहिष्णु है कि ऐसी अविवाहिताओं के साथ दुव्र्यवहार करता है. और ऐसे समय में कोई संस्था इनको आश्रय देकर उनमें आत्म विश्वास बढ़ाता है, जीने का आधार प्रदान करता है तो यह प्रशंसनीय काम है, दंडनीय नहीं. हमारा समाज, सरकार या प्रशासन औरतों को जो सुरक्षा नहीं दे पा रही है, ये संस्थाएं उन औरतों और उनके बच्चों को वह सुरक्षा और अच्छा जीवन दे रही हैं, तो उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिये. धार्मिक या संकरी राजनीतिक सोच को लेकर संस्था पर इस तरह का आक्रमण निंदनीय है.
हमारी जानकारी के अनुसार रोमन कैथलिक चर्च की अलबेनियन नन मदर टेरेसा ने भारत आकर 7 अक्तूबर 1950 में एक धार्मिक संस्था बनाई जिसका नाम मिशनरी आफ चैरिटी रखा. कोलकाता में इसका मुख्यालय है तथा भारत के विभिन्न शहरों में इसकी कई शाखाएं हैं. इनका काम है, गरीब,रोगी और पीड़ित लोगों को शरण देकर उनकी सेवा करना. संस्था के सिस्टर और ब्रदर्स के काम बंटे होते हैं. संस्था में प्रवेश के पहले इन्हें इनके कार्यों का प्रशिक्षण दिया जाता है. इनके पास अपने जीवन यापन के लिए न्यूनतम सामान होते हैं जो उनके झोले में उनके कंधे पर लटके होते हैं.उनका लक्ष्य ही होता है- सदगीपूर्ण जीवन जीते हुए दुखियों की सेवा करना. कलकत्ता में रहते हुए मदर टरेसा ने गरीबों के बीच रह कर उनके लिए जो काम किया, उसे पूरी दुनिया ने देखा और सराहा है. मरणोपरांत जब उन्हें रोम में संत की उपाधी दी गई तो भारत भी गौरवान्वित हुआ.
दूसरी ओर हमे यह भी स्वीकार करना चाहिए कि सभी धर्मों में, उनकी संस्थाओं में मानव ही काम कर रहे होते हैं जिनमें मानवीय कमजोरियों का होना असंभव नहीं है. ऐसे किसी भी संस्था में कोई गलत काम हुआ तो बिना पूर्वाग्रह के उसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिये. कुछ एक की गलती से, यदि गलती हुई हो, तो पूरी संस्था को गलत नहीं ठहराया जा सकता. इस बात से शायद ही कोई इंकार करे कि मदर टरेसा इस टुच्ची राजनीति से उपर की हस्ती रही हैं और उनकी संस्थाओं ने मानवता की महान सेवा की है.