26 मई, 2018 को नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में गठित केन्द्रीय सरकार के 4 साल पूरे हो चुके हैं। इस अवधि के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की जनता से ढेर सारे वादे किये, जिन्हें आम तौर पर पूरा नहीं किया गया। लेकिन भाजपा ने मोदी सरकार की उपलब्धियों के व्यापक प्रचार-प्रसार के लिए एक देशव्यापी अभियान चला रखा है। मोदी सरकार तो मीडिया एवं अन्य प्रचार माध्यमों के जरिये अरबों रूपये खर्च कर अपनी उपलब्धियों का गुणगान कर ही रही है,लेकिन भाजपा के इस अभियान का एक खास मकसद है। आगे कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं और 2019 का चुनौतीपूर्ण लोक सभा चुनाव सामने है।
इसलिए भाजपा के प्रचार अभियान का असली मकसद भावी चुनावों में मतदाताओं का दिल जीतना है और उन्हें किसी प्रकार अपने पक्ष में लाना है।
भाजपा ने अपने प्रचार अभियान के तहत विभिन्न भाषाओं में बुकलेट, पम्पलेट, पर्चे आदि छपवाये हैं और अखबारों में बड़े-बड़े
विज्ञापन जारी किये हैं। इसी सिलसिले में इसने एक काफी कीमती कागज पर 68 पेजी चार रंगी बुकलेट जारी किया है जिसका शीर्षक है- ‘साफ नीयत सही विकास’। इस बुकलेट में समृद्ध किसान-सशक्त भारत, नये भारत, नारी शक्ति-देश की तरक्की, स्वच्छ भारत मिशन, युवा शक्ति-देश की तरक्की, स्वस्थ एवं आयुष्मान भारत, सामजिक न्याय के लिए प्रतिबद्ध सरकार, हर एक के लिए विकास एवं बेहतर जीवन, नये भारत के लिए नया बुनियादी ढांचा, तेजगति से बढ़ती अर्थव्यवस्था, भ्रष्टाचार पर वार ईमानदार और पारदर्शी व्यवस्था, नई गति एवं नये आयाम के साथ आगे बढ़ता भारत जैसे उपशीर्षकों के जरिये मोदी सरकार के विगत 4 साल की उपलब्धियों से सम्बंधित आंकड़ों का एक भ्रमजाल फैलाया गया है।
आइये, हम गौर करें कि मोदी सरकार की उपर्युक्त उपलब्धियों के बारे में चलाये जा रहे प्रचार अभियान कितने खोखले हैं और भाजपा के बुकलेट में दिए गए आंकड़े कितने भ्रामक हैं।
सशक्त भारत की असलियत
सबसे पहले सशक्त भारत, नये भारत और नई गति एवं नए आयाम के साथ आगे बढ़ता भारत की जुमलेबाजी को लें। यह सच है कि फिलहाल भारत का आर्थिक विकास दर दुनिया के सभी विकसित देशों— चीन समेत— से तेज है, लेकिन यह विकास कहीं से भी समावेशी एवं न्यायसंगत नहीं है। हमारे देश में अरबपतियों की संख्या सबसे तेज गति से बढ़ रही है, लेकिन साथ-साथ अमीरी-गरीबी की खाई भी लगातार गहरी हो रही है। आॅक्सफेम के अनुसार देश की कुल सम्पत्ति का 58 प्रतिशत हिस्सा 1 प्रतिशत अमीरों के पास है। 2017 में देश में जो सम्पत्ति अर्जित की गई उसका 73 प्रतिशत हिस्सा 1 प्रतिशत अमीरों के खजाने में चला गया। ‘ग्लोबल रिच लिस्ट’ के मुताबिक 2017 में भारत में 101 अरबपति थे जो 2018 में बढ़कर 131 हो गये।
देश के सबसे धनवान उद्योगपति मुकेश अम्बानी की सम्पत्ति में विगत 4 सालों के दौरान 67 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि गौतम अदानी, बाबा रामदेव, अमितशाह एवं अमित शाह के बेटे जय शाह की सम्पत्तियों में क्रमशः 66 प्रतिशत, 173 प्रतिशत 300 प्रतिशत एवं 16,000 प्रतिशत की वृद्धि। एक हलिया आंकड़ा के मुताबिक मुकेश अम्बानी की सम्पत्ति जो 2017 में 16.9 अरब डाॅलर थी वह 2018 में बढ़कर 40.1 अरब डाॅलर हो गई। दूसरी ओर देश के करीब 50 करोड़ लोग गरीबी और फटेहाली में अपना जीवन-यापन कर रहे हैं। यहां भूखमरी के शिकार लोगों की संख्या में भी वृद्धि हो रही है। वैश्विक भूख सूचकांक में भारत का स्थान 2016 में कुल 116 देशों में 97 वां था जो 2017 में बढ़कर 100 वां हो गया। यहां तक कि इस सूचकांक में नेपाल, श्रीलंका एवं बांग्लादेश के स्थान से भी भारत का स्थान पीछे हो गया है।
इसी तरह खुशिहाली के मामले भी भारत अपने तमाम पड़ोसी देशों
से पीछे है। संयुक्त राष्टं संघ द्वारा जारी ‘विश्व खुशियाली रिपोर्ट’ के अनुसार 2017 में भारत का स्थान 128 वां था जो 2018 में फिसल कर 133 वां हो गया है। इसी प्रकार मानव विकास सूचकांक में 2016 में भारत का स्थान 130 वां था जो 2017 में एक स्थान फिसल कर 131 वां हो गया है। ‘स्थायी विकास लक्ष्य’ के मामले में भारत का स्थान 116 वां है जो नेपाल भूटान
एवं श्रीलंका से भी पीछे है। ‘समावेशी विकास सूचकांक’ में भारत का स्थान 60 वां है, जबकि पाकिस्तान, बंग्लादेश एवं नेपाल का स्थान क्रमशः 52वां, 36वां एवं 27वां, यानी आगे है। फिर वैश्विक पूंजी सूचकांक में भारत का स्थान 103 वां, यानी काफी पीछे हैं। उपर्युक्त आंकड़े बताते हैं कि मोदी के सशक्त और नये भारत की असली हालत कितनी खराब है।