एनडीए सरकार अपनी फासीवादी तरीकों से अब सोशल मीडिया पर ‘सच’ लिखने वालों और उनके झूठ का पर्दाफाश करने वालों की माॅब लिचिंग करवाने के अभियान में लग गई प्रतीत होती है. जिस सोशल मीडिया, यानी, फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप पर संघ परिवार से जुड़े टिड्ढी दल दिन रात झूठी खबरें फैला कर दिन-रात नफरत और सांप्रदायिकता का जहर फैलाते रहते हैं, उसी सोशल मीडिया पर आदिवासी-दलित हितों पर लिखने-बोलने वालों को देशद्रोही करार दिया जा रहा है. 26 जुलाई को एक माह पूर्व खूंटी भाजपा सांसद कड़िया मुंडा के बाॅडीगार्डो के अगवा किये जाने की घटना को आधार बना फेसबुक पर लिखने वाले बीस लोगों को देशद्रोह का अभियुक्त बना दिया जाता है और 27 जुलाई को यह खबर अखबार की सुर्खी बना दी जाती है.
देशद्रोह का मतलब सत्ता के खिलाफ विद्रोह. देश की प्रभुसत्ता के खिलाफ साजिश रचना. क्या फेसबुक कर अपनी संक्षिप्त टिप्पणियों के आधार पर इस तरह का गंभीर आरोप लगाया जा सकता है? लेकिन खूंटी थाना पुलिस ने यह कमाल कर दिखाया. आरोप यह लगाया गया है कि इन बीस लोगों ने फेसबुक पर जो लिखा उससे खूंटी के आंदोलनकारी उत्प्रेरित हुए और उन्होंने कड़िया मुंडा के बाॅडीगार्डो को अगवा कर लिया. जिन लोगों को देशद्रोह का अभियुक्त बनाया गया, उनके नाम हैं - बोलेसा बबीता कच्छप, सुकुमार सोरेन, बिरसा नाग, थाॅमस रुन्डा, वाल्टर कंडुलना, घनश्याम बिरुली, धरम किशोर कुल्लू, सामू टुडू, गुलशन टुडू, मुक्ति तिर्की, राकेश रौशन किड़ो, अजल कन्उुलना, अनुपम सुमित केरकेट्टा, अजुग्या बिरुआ, स्टेन स्वामी, जे विकास कोड़ा, विनोद केरकेट्टा, आलोका कुजूर, विनोद कुमार और थियोडर किड़ो.
इनमें से अधिकतर ईसाई आदिवासी हैं. यानी, वे यह कहना चाहते हैं कि मुंडा आदिवासियों को ईसाई आदिवासी प्रेरित कर रहे हैं. उन्हें लगता है कि ईसाई आदिवासियों को टारगेट कर वे सरना आदिवासियों को अपने पक्ष में गोलबंद करने में कामयाब होंगे.
सभी पर एक तरह की धारा लगा कर यह साबित करने की कोशिश की जा रही है जैसे वे सभी किसी एक गिरोह के सदस्य हैं. जबकि फेसबुक पर लिखने वाले इन लोगों में कुछ सरकारी कर्मचारी, कुछ अवकाशप्राप्त या कार्यरत बैंककर्मी, कुछ पत्रकार-लेखक, कुछ समाज कर्मी हैं. उनमें से अधिकतर ऐसे जिन्होंने एक दूसरे को पहले ‘रियल’ दुनिया में देखा भी नहीं था, हां ‘वर्चुअल’दुनिया में वे एक दूसरे को थोड़ा बहुत जानते हैं और फेसबुक की भाषा में ‘फ्रेंड’ हैं.
मजेदार बात यह कि खूंटी की जिस आदिवासी जनता को उसी एफआईआर में अशिक्षित करार दिया गया है, उनके बारे में कहा यह जा रहा है कि वे फेसबुक पढ़-पढ़ कर भ्रमित-परिचालित हो रहे थे.
एफआईआर के साथ संलग्न उन फेसबुक पोस्टों में लिखा क्या था या शेयर क्या किया गया था?
चर्चित समाजकर्मी स्टेन स्वामी ने अखबार की एक खबर को शेयर किया था जिसमें कहा गया था - ‘कैथोलिक चर्च यह मांग करता है की सरना आदिवासियों को सरना आदिवासी कोड दिया जाये-विशप’.
लेखिका और समाजकर्मी आलोका की पोस्ट महज एक पंक्ति की है - ‘खूंटी की जूलियानी तिड़ू खतरे में है. ऐसी सूचना मिली है.
उपन्यासकार विनोद कुमार ने लिखा था -‘वे कहते हैं उन्हें आधार कार्ड नहीं चाहिये, पत्थरगड़ी ही उनकी पहचान है.’
दिल्ली में रहने वाले बुद्धिजीवी और समाजकर्मी मुक्ति तिर्की का गुनाह बस इतना था कि उन्होंने विनोद कुमार के पोस्ट को शेयर किया था. कई और लोग सिर्फ अखबार की किसी खबर को शेयर कर देशद्रोह के अभियुक्त बना दिये गये.
शायद सत्ता के इस खौफनाक मंसूबों को भांप कर ही सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई फैसलों में स्पष्ट कर दिया है कि सोशल मीडिया पर लिखे जाने को आधार बना कर किसी को पुलिस गिरफ्तार नहीं कर सकती. उसने संविधान की आर्टिकल 19 ए, जो अभिव्यक्ति की आजादी को मौलिक अधिकार मानता है, को बहाल रखते हुए उसकी आईटी एक्ट धारा 66 ए को रद्द कर दिया है जिसके तहत तीन वर्ष तक के लिए सजा का प्रावधान किया गया था.
लेकिन खूंटी पुलिस ने तो उसी धारा के आधार पर एफआईआर दायर कर उन्हें देशद्रोह का अभियुक्त बना दिया.
दरअसल, झारखंड सरकार पत्थरगड़ी आंदोलन के द्वारा जल, जंगल, जमीन बचाओ के अभियान से खौफ खाती है इसलिए पत्थरगड़ी आंदोलन चलाने वालों को पहले बलात्कारी साबित करने की कोशिश हुई, उनके समर्थक ईसाई मिशन की संस्थाओं को बच्चा बेचने का अभियुक्त बना कर देश भर में प्रचारित किया गया और अब किसी भी तरह से फेसबुक पर पत्थरगड़ी आंदोलन का समर्थन करने वालों को ‘देशद्रोही’ साबित करने पर तुली है.
लेकिन भक्तों को छोड़ कर उनके फरेब में कोई नहीं आने वाला. सरकार की इस साजिश का विरोध कानूनी तरीकों से और जन अभियान के द्वारा भी शुरु हो चुका है. इसके तहत 3 अगस्त को विपक्षी दलों की प्रेस कंफ्रेंस हुई जिसमें पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल ने कहा कि यदि ये लोग देशद्रोही हैं तो हम सब प्रतिपक्ष के नेता भी देशद्रोही हैं. विपक्ष की मांग है कि सरकार इस एफआईआर को उठाये.
इसके अलावा गृह सचिव को ज्ञापन देने की कार्रवाई हुई है, दिल्ली में प्रदर्शन आदि हो रहे हैं. आठ अगस्त को रांची के एलवर्ट एक्का चैक पर मानव श्रृंखला बनाने की तैयारी है.
‘देखना है जोर कितना बाजू ए कातिल में है.’