सुप्रीम कोर्ट ने आज एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए टिप्पणी की कि असहमति लोकतंत्र के लिए सेफ्टी वाल्व के समान है. साथ ही उन्होंने पांच गिरफ्तार समाजकर्मियों और बुद्धिजीवियों को पुलिस रिमार्ड में देने के बजाय अगली सुनवाई तक उनके घरों में ही नजरबंद रखने का निर्देश दिया. अगली सुनवाई 6 सितंबर को तय की गई है.
मालूम हो कि मंगलवार को देश के कई शहरों में सुबह—सुबह छापा मार कर पांच ऐसे लोगों को गिरफ्तार किया गया था जिन पर माओवादियों से संबंध रखने का अनुमान है. तत्काल तो उन पर यह आरोप लगाया गया था कि इन लोगों का संबंध भीमा कोरेगाँव में दंगा भड़काने वाले संगठन ‘एलगार परिषद’ से है. इन्हें ‘शहरी माओवादी’ नाम से नवाजा गया हैं और इनके नाम हैं गौतम नवलखा, सुधा भारद्वाज, पी वारवरा राव, वर्नोन गोंजाल्विस और अरुण फेरारिया.
6 जून 2018 को भीमा कोरेगाँव केस में संलिप्त बड़े माओवादी नेता सुरेंद्र गाडलिंग, सुधीर धावले, सोमा सेन, रोना विलसन, महेश राउत गिरफ्तार हुए किये गये थे. सुधीर धावले एलगार परिषद के आयोजक व मुम्बई बेस्ड रिपब्लिकन पैंथर्स जाती अंटाची चळवळ का नेता थे. रोना विलसन दिल्ली में कमिटी फ़ॉर द रिलीज ऑफ पोलिटिकल प्रिजनर्स (CRPP) नामक संगठन चलाते थे. CRPP संसद हमले का अभियुक्त रहे दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर गिलानी चलाते हैं जिनका प्रमुख सहयोगी थे रोना विलसन. नागपुर के अधिवक्ता सुरेंद्र गाडलिंग इंडियन असोसिएशन ऑफ पीपुल्स लायर्स नाम का संगठन चलाते थे. सोमा सेन नागपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेजी की प्रोफेसर थीं. महेश राउत प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास कार्यक्रम की पूर्व में फेलो थीं. इन पांचों की गिरफ्तारी आईपीसी की विभिन्न धाराओं और यूएपीए एक्ट के अंतर्गत साम्प्रदायिक शत्रुता बढ़ाने और हिंसा भड़काने के आरोप में हुई थी. उनसे पूछताछ के बाद मंगलवार को यह छापामारी और गिरफ्तारियां हुई.