फासीवाद का भीषण खतरा देश पर मंडरा रहा है. मोदी की लोकप्रियता की हवा जिस तेजी से निकल रही है, उससे इस बात की भी आशंका बन रही है कि 2019 के चुनाव हो ही नहीं या हो तो वह आखिरी चुनाव हो. लेकिन विपक्षी दलों में विपक्षी एकता को लेकर वह गंभीरता दिखाई नहीं दे रही. झारखंड में तो वह सिरे से नदारत दिखाई देती है.
झामुमो नेता हेमंत सोरेन का वैसे कहना है कि भाजपा को सत्ता से बाहर करने के लिए विपक्षी दलों में सैद्धांतिक सहमति इस बात को लेकर है कि वे मिल कर चुनाव लड़ेंगे.
झारखंड में अभी 14 में से 12 लोकसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है. यह संभव इसलिए हुआ क्योंकि 2014 के चुनाव के वक्त मोदी प्रसिद्धि के शिखर पर थे और झारखंड में विपक्षी दलों के बीच एका नहीं था. कांग्रेस और झामुमो के बीच एक ढ़ीला-ढ़ाला चुनावी समझौता जरूर बना था. बावजूद इसके झामुमो दो सीटों- दुमका और राजमहल- में चुनाव जीत सकी यह बड़ी बात थी. इसका लाभ भी झामुमो को मिला है और हेमंत सोरेन निविर्वाद रूप से झारखंड में विपक्ष के सबसे बड़े नेता के रूप में स्वीकार्य हैं. जाहिर है, विपक्षी एकता को व्यवहार रूप में बनाने की जिम्मेदारी भी उन पर ही है.
सबसे पहला संकट तो खुद उनकी छवि है. वे भाजपा के साथ मिल कर सरकार बना चुके हैं और आम जनता के भीतर यह दुविधा बनी हुई है कि वे भविष्य में भी किसी आड़े वक्त में भाजपा के साथ मिल कर सरकार बनाने के लिए तत्पर न हो जाये. दूसरा संकट झारखंड विकास पार्टी के बाबूलाल लाल मरांडी के साथ उनके रिश्ते हैं. यह कहा जा रहा है कि बाबूलाल ने उन्हें भविष्य के मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें स्वीकार कर लिया है, लेकिन गांठ तो सार्वजनिक रूप से दिखाई देती है. सामान्यतः दोनों किसी एक मंच को शेयर करने से बचते हैं. हाल के दिनों में कई अवसरों पर यह देखा गया कि कांग्रेस नेता सुबोधकांत के साथ बाबूलाल और हेमंत सोरेन अलग-अलग तो दिखे, लेकिन बाबूलाल और हेमंत एक साथ भरसक नहीं दिखे.
सीटों के बंटवारे का एक सामान्य फार्मूला यह है कि पिछले चुनाव में भाजपा द्वारा जीती गई सीटों पर दूसरे नंबर पर जिस विपक्षी पार्टी का प्रत्याशी रहा, वह सीट उस पार्टी को दे दिया जाये. लेकिन कई ऐसी सीटें हैं जिस पर अभी से विवाद है. कोडरमा सीट पर दूसरे नंबर पर पिछले चुनाव में माले के राजकुमार यादव रहे थे. लेकिन उस सीट से इस बार बाबूलाल मरांडी चुनाव लड़ना चाहते हैं. माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य ने पिछली मुलाकात में यह स्पष्ट कर दिया कि यदि ऐसा हुआ तो माले विपक्षी दलों की एका में शामिल नहीं रहेगा.
इसी तरह भुवनेश्वर मेहता आसानी से हजारीबाग सीट नहीं छोड़ना चाहेंगे, हालांकि पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर कांग्रेस के सौरभ नारायण सिंह रहे थे. इसी तरह पिछले चुनाव में जमशेदपुर सीट पर बाबूलाल की पार्टी से अजय कुमार चुनाव लड़े थे और दूसरे नंबर पर थे. लेकिन उन्होंने पार्टी बदल ली और कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में इस सीट पर दावा करेंगे जो शायद बाबूलाल मरांडी को सहज रूप से स्वीकार न हो. इसी तरह चाईबासा और खूंटी सीटों पर विवाद की पूरी संभावना है जिन पर पिछले चुनाव में क्रमशः मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा और एनोस एक्का दूसरे नंबर पर रहे थे. इन सीटों पर यदि भाजपा को हराना है तो संयुक्त विपक्ष का मजबूत उम्मीदवार देना होगा. वर्तमान में खूंटी सीट पर कड़िया मुंडा और चाईबासा सीट पर लक्ष्मण गिलुआ का कब्जा है.
कुल मिला कर झारखंड में विपक्षी दलों की एकता बनाना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है.