रोमन कैथोलिक चर्च में जब कोई महिला नन या साध्वी बनती है तो उसे तीन तरह के वचन देने पड़ते हैं. पहला, वह सादगी भरा जीवन व्यतीत करेगी. दूसरा, शारीरिक तथा मानसिक शुचिता का पालन करेगी और एक पवित्र जीवन बितायेगी. तीसरा, वह अपने गुरुजनों को भगवान के समकक्ष रख कर उनकी इच्छापूर्ति के लिए संपूर्ण रूप से समर्पित रहेगी. ये सारे नियम चर्च के ननों के प्रत्येक समूह के लिए सामान्यतः एक ही तरह के होते हैं.

चर्च की संरचना में सबसे उंचा स्थान विशप का होता है. वह चर्च की अकूत संपत्ति का भी मालिक होता है. अपने काम में पूर्ण रूप से प्रशिक्षित ये विशप बाईबल के आधार पर लोगों को उपदेश देकर उनके जीवन के मार्गदर्शन का काम करते हैं. परमार्थ के लिए जीने वाले विशप एक सुविधापूर्ण और एक सुख-संपन्न जीवन भी जीते हैं.

केरल में ईसाई धर्म को मानने वाले लोगों में 61 प्रतिशत कैथलिक चर्च के हैं. सायरो मलबार चर्च विश्व के उन बाईस चर्चों में से एक है जो सीधे रोम के वेटिकन चर्च के अन्तर्गत आते हैं. जालंधर के ऐसे ही चर्च के विशप हैं फ्रैंको मलक्कार. इन पर चर्च की एक वरिष्ठ नन के साथ बलात्कार का आरोप लगा है. इस घटनाक्रम की शुरुआत 23 जून 2018 से हुई. जालंधर के विशप ने ही पीड़ित नन के भाई पर आपराधिक घटना का इल्जाम लगाते हुए केरल के क्कोटायम पुलिस थाने में शिकायत दर्ज की. 28 जून को पीड़िता नन ने पुलिस में यह शिकायत दर्ज करवाई की विशप ने मई 5, 2014 से 23 सितंबर 2016 तक उसके साथ 13 बार बलात्कार किया. प्रारंभ में चर्च ने नन के इन आरोपों पर ध्यान न देकर उस पर ही कई तरह के चारित्रिक दोष लगाकर मिशन होम से उन्हें हटाने की कोशिश की. पीड़िता सिस्टर ने अपनी व्यथा को रोम के भारतीय प्रतिनिधि को पत्र के द्वारा बताया और न्याय की गुहार लगाई. लेकिन नतीजा शून्य रहा. अंत में 8 सितंबर से आठ स्वतंत्र चर्चों के लोगों ने मिल कर ‘सेव अवर सिस्टर्स एक्शन कौंसिल’ बना कर इस अन्याय के विरुद्ध आवाज बुलंद की. मिशन होम से साठ किमी दूर इस धरना स्थल पर पांच नन अपने नारे लिखे तख्तों के साथ दिन भर वहां बैठी रहती. इस आंदोलन में केरल के नामी गिरामी लोग शामिल हुए और धरनास्थल पर लगातार लोग ननों के लिए अपनी संवेदनाएं प्रकट करते रहे और न्यायकी मांग करते रहे.

चर्च के प्रति वचनबद्ध होते हुए भी ननों ने मीडिया के सामने अपना बयान दिया. उनका कहना था कि पुरुष प्रधान चर्च की व्यवस्था में सारे नियम-कानून पुरुष के पक्ष को ही मजबूत करते हैं. नन स्त्री होने के कारण हर अन्याय को चुपचाप सहती हैं. विशप का स्थान भगवान की तरह होता है. उनके भोजन के समय ननो को उनकी सेवा में लगा रहना पड़ता है. उनको पानी देना पड़ता है. उनके कपड़े तक धोने पड़ते हैं. चर्च की संपत्ति का कोई हिसाब किताब नहीं होता है और इसका मालिक एक मात्र विशप ही होता है. उसके कीमती पोशाक, सर का मुकुट ही उनके श्रेष्ठता का सूचक हैं. ननों को महीने में केवल पांच सौ रुपये दिये जाते हैं. अब चूंकि नन शिक्षिका या दूसरे तरह के चर्च के सामाजिक कार्यों में लग रही हैं, तो उन्हें अब लगता है कि विशप की आज्ञा का आंख मूंद कर पालन करना मूर्खता है, क्योंकि उनकी अंतरआत्मा इनका विरोध करती है. ननो ने यह भी कहा है कि उनके इस आंदोलन का तात्कालिक उद्देश्य पीड़िता नन को न्याय दिलाना है, लेकिन इसके बाद भी उनका यह आंदोलन जारी रहेगा. वे चर्च की सारी अनियमितताओं और ज्यादतियों को खत्म करना चाहती हैं. चर्च आध्यात्मिकता के केंद्र हैं, न कि धनबल तथा शारीरिक बल के प्रयोग के केंद्र?

अगस्त 13 को ही जालंधर में विशप से पुलिस ने पूछताछ की. जिसमें विशप ने बलात्कार से इंकार किया. बाद में केरल पुलिस ने 19 सितंबर को उन्हें थाने में उपस्थित होने का सम्मन भेजा. विशप अपने पद से इस्तीफा देकर केरल चले आये. लगातार पुलिस पूछताछ के बाद भी विशप ने अपने अपराध को स्वीकार नहीं किया. अंत में सबूतों के आधार पर पुलिस ने उनको गिरफ्तार कर लिया.

चर्चों को अब अपने गिरते साख की भी चिंता हो गई है. वे भी अब पीड़िता ननों का साथ देकर अपने प्रतिष्ठा को बचाने में लगे हैं. रोमन चर्च के इतिहास में इस तरह की घटनाएं नई नहीं हैं. आंकड़े बताते हैं कि जर्मनी में कैथलिक चर्च के सात दशक के इतिहास में 1670 पादरियों पर यह आरोप लगा है कि उन्होंने तीन हजार छह सौ बच्चों के साथ गलत व्यवहार किया है. पोप फ्रांसिस पर भी एक बच्ची के साथ यौन शोषण का आरोप लगा. कैथलिक चर्च की हजारों महिलाओं ने खुला पत्र लिखकर इसका जवाब मांगा. भारत में भी 2014 से 2018 के बीच कई पादरियों पर महिलाओं के साथ यौन शोषण का आरोप लगा और उन्हें सजा भी हुई.

अन्य धर्मो में भी पुजारी, साधु-संत, मठाधीश और बाबाओं पर महिला भक्तों के साथ यौनचार के आरोप लगते रहे हैं. कईयों को सजा भी हुई है. धर्म की आड़ में विलासितापूर्ण जीवन बिताते हुए दुष्कर्म करने वाले इन धर्मगुरुओं की अनैतिक आचरण को देखा जाये तो यह बात स्पष्ट होती है कि उनका एक असहज जीवन होता है. धर्मांध लोग इनको भगवान बना कर मुफ्त में उन्हें सुख-संपन्न बनाते हैं जो अंततोगत्वा उन्हें विलासी और भ्रष्टाचारी बना देता है. यह असहज जीवन ही मानवीय विकृतियों को प्रगट करता है. कर्महीन जीवन जीने वाले अधिकतर विलासी धर्म गुरु या तो विक्षिप्त होते हैं या व्याभिचारी.