भारत के प्रधानमंत्री को ‘चैंपियन आॅफ द अर्थ’ के पुरस्कार से नवाजा गया. यह पुरस्कार प्रति वर्ष प्रर्यावरण के क्षेत्र में सफलतापूर्वक नेतृत्व करने वाले व्यक्ति या संस्था को संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से दिया जाता है. यह एक प्रतिष्ठित पुरस्कार है. आधी ही सही, इस पुरस्कार को प्राप्त कर मोदी जी ने देश का गौरव बढ़ाया है. ऐसा लोग कह रहे हैं. शेष आधे पुरस्कार का हकदार फ्रांस के राष्ट्रपति बने. विडंबना यह कि दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित तीस शहरों में फ्रांस का कोई शहर नहीं, लेकिन भारत के 14 शहर हैं.

विश्व स्वास्थ संगठन की ओर से सन् 16 में विश्व के 30 सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों की सूची जारी की गई थी. इसमें 14 शहर भारत में हैं. चीन की जनसंख्या भारत से अधिक है और उद्योग धंधे भी वहां भारत से ज्यादा ही हैं. फिर भी वहां के सिर्फ छह शहर ही प्रदूषित शहर माने गये हैं.

एक चिंतनीय बात यह भी कि इस सूचि में शामिल अन्य देश दक्षिण पूर्व एशिया के ही हैं. और तीस में से चौदह शहर जो भारत में हैं, उनके नाम हैं- ग्वालियर, इलाहाबाद, पटना, रायपुर, दिल्ली, लुधियाना, कानपुर, कान्हा, फिरोजाबाद, लखनउ, अमृतसर, मंडी गोविंदगढ़, आगरा और जोधपुर.

गौर से देखें तो भारत के प्रदूषित अधिकतर शहरों में प्रदूषण की वजह कोई बड़ी इंडस्ट्री नहीं, छोटे मोटे उद्योग, बेतरतीब शहरीकरण और वाहन प्रदूषण है. हमारे देश की अधिकांश नदियां भीषण प्रदूषण की शिकार हैं, चाहे वह गंगा और यमुना हो या फिर दामोदर या सुवर्णरेखा. बड़े- बड़े बांधों से नदियों का स्वाभाविक प्रवाह रुक गया है और साल के अधिकांश महीनों में वे महज शहरों के गंदे पानी और औद्योगिक कचड़ों को ढ़ोने की वजह से गंदे नाले सदृश्य दिखती हैं. आजादी के बाद सार्वजनिक क्षेत्र में बड़े पैमाने पर उद्योग लगे. लेकिन उनमें से अधिकतर अब ढ़लान पर हैं और नये उद्योग कुछ खास लगे भी नहीं. लेकिन उद्योग के नाम पर बेतरतीब खनन और आधुनिकीकरण के लिए वृक्षों की बड़े पैमाने पर कटाई जारी है और पर्यावरण के संतुलन को बिगाड़ रहा है.

भारत में औद्योगीकरण, शहरीकरण आदि को ही विकास का आधार मान लिया गया है. जंगलों की कटाई लगातार हो रही है जो भूमिगत जल स्रोत को तो कम कर ही रहा है, वर्षा की कमी और बढ़ते तापक्रम का भी कारण बनता जा रहा है. अधिक उत्पादन के लालच में कृषि में रासायनिक खादों का प्रयोग कर हम खाद्यान्न और भूमिगत जल स्रोतों को भी प्रदूषित कर रहे हैं. परिणाम यह कि प्रदूषित वायु, जल और अन्न के चलते हर वर्ष लाखों लोग प्राणघातक बिमारियों के शिकार हो रहे हैं.

विश्व स्वास्थ संगठन के आकड़ों के अनुसार प्रति वर्ष 2 मिलियन लोग भारत में मलेरिया से पीड़ित हैं और हजारों लोग इस रोग से मर रहे हैं, जबकि भारत ने खुद को मलेरिया मुक्त घोषित कर रखा है. दमा से 17.23 मीलियन लोग ग्रसित हैं और निमोनिया से भारत में हर घंटे 45 बच्चों की मौत होती है और करीबन 43 मीलियन लोग इस रोग से पीड़ित हैं. शुद्धजल, स्वस्थ हवा और रौशनी पर अब कुछ गणमान्य लोगों या धनी लोगों का ही अधिकार है. बहुसंख्यक लोग जीने के लिए जरूरी न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति के बिना ही जीवन बिताते है. सबका साथ सबका विकास महज एक खोखला नारा ही है.