अगले कुछ रोज भारतीय समाज देवी पूजा करेगा, महिषासुर को मारेगा, रावण जलायेगा. विडंबना यह कि भारत दुनिया का चैथा ऐसा देश है जहां सबसे अधिक कन्या भ्रूण की हत्या होती है. कन्या भ्रूण हत्या का अर्थ हुआ, कोख में ही जन्म के पहले कन्या भ्रूण का पता करना और उसे मार डालना. एक अनुमान के अनुसार अब तक 63 मिलियन कन्या भ्रूण की हत्या भारत में हो चुकी है. द गार्जियन में 30 जनवरी 2018 को प्रकाशित रपट के अनुसार भारत में 63 मिलियन औरतें गुम हो चुकी हैं दुनिया के नक्शे से. आपको यकीन न हो तो जान लीजिये, भारत में सेक्स रेशियो/ लिंगानुपात घट कर 914 हो चुका है. यानी, प्रति हजार पुरुष पर महज 914 स्त्रियां रह गई हैं. इस मान्यता के बावजूद कि भारत मातृपूजक देश है.
यह भी स्पष्ट हो लें कि भ्रूण हत्या हो या 0 से 6 वर्ष की बच्चियों में कमी का शिकार मूलतः वे प्रदेश हैं जहां सबसे ज्यादा देवी पूजा होती है. नवरात्रि मनाया जाता है, गरबा खेला जाता है. और यह दिनों दिन बढ़ता जा रहा है.
सामान्यतः स्त्री और पुरुषों के जन्म में एक संतुलन प्रकृति बना कर रखती है. फिर भी प्रति सौ बालिका पर 101 बालक के जन्म को भी सहज मान लिया जा सकता है. अपने देश में यह अनुपात 1961 में 102.4, 1980 में 104.2 था, जो 2001 में बढ़ कर 107.5 तक पहुंच गया. उसमें निरंतर वृद्धि हो रही है. वैसे, पूरी दुनियां में सबसे खराब स्थिति एक छोटे से यूरोपीय देश लिंचटेस्टीन की है जहां 100 बालिका पर 126 बालक, चाईना में 100 बालिका पर 115 बालक, अरमेनिया में 100 बालिका पर 113 बालक हैं. चौथा नंबर भारत का आता है. अन्य देश हैं अजेरबैजन, वियतनाम, अलबेनिया, जार्जिया, ट्यूनिसिया, नाईजेरिया, पाकिस्तान और नेपाल हैं.
यानी, इस सूची में अधिकतर विकसित राज्य नहीं. चीन है, वह इसलिए कि 1980 में चीन ने जनसंख्या नियंत्रण के लिए ‘एक बच्चा नीति’ को लागू किया. परिणाम यह हुआ कि पुत्र की लालसा में लोगों ने कन्या भ्रूण की हत्या शुरु कर दी जिस वजह से चीन में स्थिति भयावह हो उठी. भारत का पाखंड यह है कि यह शताब्दियों से मातृपूजक देश माना जाता है. अभी तो देवी पूजा का ही पर्व चल रहा है. उत्तर भारत के अलग अलग हिस्सों में, अलग-अलग रूपों में.
वैसे, सभी देशों ने कन्या भ्रूण की हत्या को रोकने के लिए कानून बना रखे हैं. भारत में भी ‘प्रोविहिसन आॅफ सेक्स सेलेक्शन एक्ट’ 1994 में लागू किया गया और जिसे 2003 में संशोधित कर कुछ और कठोर बनाया गया. लेकिन कन्या भ्रूण की हत्या का सिलसिला जारी है. बच्ची के जन्म लेने पर उसे नमक चटा कर मार डालना जैसी घटनाएं तो अब पुरानी हो चुकी. अब तो टेकनालाजी विकसित हो चुकी है. गली मोहल्ले में अल्ट्रासाउंड सुलभ है और मां के पेट में ही इस बात का पता लगा लिया जा सकता है कि पेट में पल रहे बच्चे का लिंग क्या है.
और बच्चे के लिंग का पता लगाना तो उच्च तकनीक का मामला है, लेकिन उसे मारने का तरीका बेहद भोथा और खौफनाक होता है. यानी, सिद्धहस्थ हाथ नस्तर चुभा कर उसे मार डालते हैं.
यह भी गांठ बांध लीजिये कि यह क्रूरतम अपराध सर्वाधिक उत्तर भारत में होता है. जम्मू कश्मीर, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल आदि राज्यों में. वह भी मध्यम वर्ग में. अब तो इस तरह के विज्ञापन दिखाई नहीं देते जिसमें कहा जाता था - ‘पचास हजार का दहेज देने के बजाय 500 रुपये में कन्या से छुटकारा पाईये’, लेकिन पहले इस तरह के विज्ञापन तक लगाये जाते थे. अब इतने खुले रूप में यह काम नहीं होता,लेकिन यह सिलसिला खत्म नहीं हुआ है.