अमेरिका एवं चीन जैसे दो ताकतवार साम्राज्यवादी देशों के बीच बढ़ते व्यापारिक टकराव से विश्व की तमाम संस्थायें एवं विश्व व्यापार में शामिल देश चिन्तित हो उठे हैं. सबसे ज्यादा चिन्तित विश्व व्यापार संगठन एवं उसके पदाधिकारी हो गए हैं. एक अजीब विडम्बना है! जिस अमेरिका ने 1994-95 में विश्व व्यापार संगठन के गठन में प्रमुख भूमिका अदा की थी, आज वह इसे शक्तिहीन कर रहा है और इससे बाहर आने की धमकी दे रहा है. दूसरी ओर चीन, जो इस वैश्विक व्यापारिक संस्था में 2001 में शामिल हुआ था, इसे बचाने की कोशिश कर रहा है. विश्व व्यापार संगठन के डायरेक्टर जेनरल रोबर्टाे अजवेदों ने सितम्बर के तीसरे सप्ताह में रियो दे जनेरियो के एक कार्यक्रम में बोलते हुए यह आगाह किया है कि इस व्यापारिक विवाद को जल्द से जल्द सुलझाया जाये, अन्यथा दूसरे क्षेत्रों में इसके विस्तार को रोका नहीं जा सकता. उन्होंने अपने सभी 164 सदस्य देशों से अपील की कि अगर अमेरिका विश्व व्यापार संगठन को छोड़ता है तो उसके बिना भी इस संगठन को चलाने की उन्हें कोशिश करनी चाहिए.

आईएमएफ ने भी चेतावनी दी है कि अगर यह व्यापार युद्ध पूर्ण रूप से आकार ग्रहण कर लेगा तो वैश्विक विकास के सैकड़ों अरब डाॅलर स्वाहा हो जायेंगे और वैश्विक अर्थव्यवस्था 2020 तक 0.5 प्रतिशत छोटी हो जायेगी.

यूरोपीय संघ, जिसमें 28 देश शामिल हैं, के अध्यक्ष डोनाल्ड टस्क ने टिप्पणी की है कि इस व्यापारिक टकराव को रोकना चाहिए ताकि यह अराजकता एवं हिंसक विवाद का रूप न ले ले. उन्होंने याद दिलाया कि इतिहास में ऐसा कई बार हो चुका है. जी 20 की अर्जेन्टीना में 14 सितम्बर को हुई बैठक में इस व्यापारिक टकराव पर चिंता जाहिर की गई और इसे हल करने के लिए तत्काल विश्व व्यापार संगठन के व्यापारिक नियमों में अपेक्षित बदलाव लाने पर जोर दिया गया.

हाल में ब्रिक्स देशों, ब्राजील, रूस, भारत, चीन एवं दक्षिण अमेरिका का शिखर सम्मेलन 25-27 जुलाई को जोहान्सबर्ग में हुआ, जिसमें अमेरिकी व्यापार संरक्षणवाद से निबटने और विश्व व्यापार संगठन के स्थापित नियमों के आधार पर वैश्विक बहुपक्षीय व्यापार को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया गया.

विश्व प्रसिद्ध पत्रिका ‘द इकोनाॅमिस्ट’ ने भी अमेरिकी संरक्षणवाद की नीति को गलत बताया और आशंका जाहिर की कि इससे बड़ी पूंजीवादी ताकतों के बीच कलह बढ़ेगा.

इस सम्बंध में अमेरिकी खुफिया संस्था सीआईए की प्रतिक्रिया को जानना जरूरी है. इसके एशिया विशेषज्ञ का मानना है कि अमेरिका की विश्व की नेतृत्वकारी भूमिका को बदलने के लिए चीन अपनी सभी संसाधनों का उपयोग करते हुए यह ‘शीत युद्ध’ चला रहा है. उसकी दूसरी खुफिया संस्था एफबीआई के डायरेक्टर का कहना है कि अभी चीन अमेरिका के समक्ष एक व्यापक एवं महत्वपूर्ण खतरा बन गया है और वह दक्षिण अफ्रीका के द्वीपों पर सैनिक चैकियों का निर्माण कर

रहा है. इस तरह अमेरिकी खुफिया एजेन्सियों की प्रतिक्रियाओं से जाहिर होता है कि अगर अमेरिका-चीन के बीच यह व्यापार युद्ध तीव्रतर होता रहा तो इसका नतीजा सैनिक टकराव के रूप में भी सामने आ सकता है.