24 नवंबर भारत के खेल जगत के लिए एक स्वर्णिम दिवस बन गया जब मेरी काॅम ने बाॅक्सिंग के विश्व कप प्रतियोगिता में अपनी प्रतिद्वंदी युक्रेन की हन्ना ओखोटा को 5-0 से हरा कर इतिहास बनाया. 35 वर्षीया तीन बच्चों की मां मेरी काॅम ने जीत के बाद आंखों में आंसू भर कर कहा कि उसकी मेहनत तथा अनुभव काम आई और उसने देश को स्वर्ण पदक देकर अपने को उऋण किया. इससे अधिक देने को उसके पास और कुछ नहीं है.
बाॅक्सिंग के क्षेत्र में 2002 से जीतती आई मेरी का यह सफर आसान नहीं रहा. साधारण आर्थिक स्थिति वाली मेरी काॅम ने तीन बच्चों की परवरिश करते हुए अपने अभ्यास को कायम रखा. साथ ही पारिवारिक जिम्मेदारियों का वहन करते हुए उसने विजयी होने की इच्छाशक्ति और ललक को भी बचाये रखा. और बाॅक्सिंग में छह बार विश्वपदक जीतने वाली पहली महिला बनी. उसकी जीत पर भारतीय टीम के कोच रफायल बेरगामाॅस्को ने कहा कि मेरे लिए तो वह बाॅक्सिंग की मेराडोना है.
उत्तरपूर्वी राज्य मणिपुर की रहने वाली मेरी काॅम बहुत पुरातन कोमरेम पहाड़ी जाति की हैं जिनकी जन संख्या मणिपुर की कुल जनसंख्या की एक फीसदी है. मेरी की इस विश्वख्याति से कोमरेम जाति अपने को गौरवान्वित महसूस कर रही है. इस जाति के प्रधान ने कहाकि मेरी काॅम हमारे लिए वरदान स्वरूप है. मणिपुर से बाहर के लोग हमे पहचानते भी नहीं. मेरी ने हमे पहचान दिलायी है.
बाॅक्सिंग की दुनियां में 2002 से पदक जीतने वाली मेरी काम लगातार बनी रही तो यह उसका साहस ही कहा जायेगा. लोग कहते हैं कि जिस हन्ना को उसने अभी हराया है, वह 2002 में मात्र छह वर्ष की रही होगी, धोनी अभी अपने खेल जीवन से दो वर्ष पीछे ही थे, दिल्ली में मेट्रो नहीं शुरु हुआ था, जीमेल, फेसबुक, आईफोन वगैरह बहुत दूर थे. मेरी काॅम हमेशा 51 केजी की प्रतियोगिता की तैयारी में रहती थी. 2012 के लंदन ओलंपिक में उसने स्वर्णपदक इसी में जीता, लेकिन 2016 के रियो ओलंपिक के लिए वह अयोग्य घोषित हुई जो उसके लिए बहुत बड़ा आघात था. फिर उसने 2018 के विश्व कप के लिए 48 केजी की प्रतियोगिता के लिए खुद को तैयार किया. 51 केजी से 48 केजी तक आना और इसके लिए अपने को तैयार करना कठिन था, लेकिन उसने इसे कर दिखाया. अगला ओलंपिक 2020 में होने वाला है जिसके लिए वह फिर 51 केजी की प्रतियोगिता के लिए तैयार होने और जीतने की आशा रखती है.
छठी बार विश्व स्वर्ण पदक जीत कर मेरी काॅम ने अपने देश, राज्य तथा अपनी जाति का गौरव तो बढ़ाया ही है, साथ ही उसने कई मिथ भी तोड़े हैं. पहला यह कि शादी और तीन बच्चों के बाद भी बाॅक्सिंग जैसे खेल में अपनी उपस्थिति दर्ज किये रहना संभव है. दूसरा, क्रिकेट या फुटबाॅल जैसे खेलों के समकक्ष बाॅक्सिंग को खड़ा कर उसमें विश्व विजयी होकर नाम कमाया जा सकता है. तीसरी बात, प्रतिभा बड़े शहरों और उन्नत राज्यों की ही बपौती नहीं होती है. मणिपुर जैसा छोटे अनाम राज्य में भी प्रतिभा विकसित हो सकती है जो स्वतः प्रकट होती है. महिला सशक्तिकरण का खोखला नारा देने वालों के लिए मेरी काॅम एक उदाहरण बनती है. मेरी काॅम हम सब की बधाई की पात्र है.