विज्ञान का एक सामान्य छात्र भी यह जानता है कि मानव का पूर्वज चिंपैजी है- बदंर, रीछ, हनुमान जैसे चौपाये से मिलता जुलता जीव. फिर भाजपा नेताओं का यह कहना कि आदिवासियों और दलितों के पूर्वज हनुमान हैं, का मतलब क्या है? क्या वे यह कहना चाहते हैं कि आदिवासी और दलितों के पूर्वज तो हनुमान थे, जो बंदरों की ही एक प्रजाति है, और गैर आदिवासी या दलितों को छोड़ हिंदू वर्ण व्यवस्था की तथाकथित उंची अन्य जातियों के पूर्वज कोई और थे, या वे जैसे आज हैं वैसे ही सदियों पूर्व भी रहे थे? यदि ऐसा है तो यह उनके द्वारा पूरी दुनियां में अपनी मूढ़ता का ही प्रचार है.

वैसे, एक सामान्य तथ्य यह है कि अपने देश की एक बड़ी आबादी वैज्ञानिक जीवन दृष्टि से अब भी वंचित है. एक बड़ी आबादी यह मान कर चलती है कि मनुष्य की उत्पत्ति वर्तमान रूप में ही ईश्चरेच्छा से हुई थी. हर धर्म ग्रथ में यही बात कही गई है, चाहे वह हिंदू धर्म हो, या इस्लाम या ईसाई धर्म हो. आदिवासी समाज में भी एक आदि औरत और आदि मर्द की कल्पना है जिससे मानव जाति की उत्पत्ति हुई. लेकिन यह विज्ञान सम्मत नहीं. हर प्रबुद्ध व्यक्ति यह जानता है कि मानव क्रमिक विकास की उपज है और यह विकास का क्रम अब भी जारी है. इस क्रम में भौगोलिक स्थिति, वातावरण, तापमान आदि की भिन्नता से मनुष्यों के रूप-रंग में थोड़ी भिन्नता भी पैदा हुई है. अलग अलग कार्य-संस्कृति से अलग अलग संस्कृतियां और जीवन दर्शन भी पैदा हुए हैं, लेकिन इस बात से अब कोई मूढ़ व्यक्ति ही इंकार करेगा कि मानव चौपाया जानवर से ही विकास के क्रम में बना है.

फिर आदिवासियों और दलितों को हनुमान का वंशज बताने का मतलब? क्या वे मनुष्य नहीं? मनुष्येतर प्राणी हैं जो मनुष्यों जैसे दिखते मात्र हैं. उनके शरीर का कंकाल, उसकी मांस मज्जा, उनके रगों में बहता लहु सवर्णों से भिन्न है?

यहां एक बात और स्पष्ट कर देना जरूरी है कि आरएसएस आदिवासी इलाकों में वर्षों से यह प्रचारित करती रही है कि ‘हम राम के वंशज हैं, तुम सेवक हनुमान.’ यानी हम तो राम के वंशज हैं और आदिवासी राम के सेवक हनुमान के वंशज. चूंकि आदिवासी मनुवादी वर्ण व्यवस्था में कभी नहीं रहे, इसलिए उन्हें खुद से जोड़ने के लिए इस सूत्र वाक्य की इजाद हुई. लेकिन दलित तो उनकी वर्ण व्यवस्था के ही हिस्सा हैं, इसलिए उन्हें हनुमान का वंशज कभी नहीं कहा गया. वर्ण व्यवस्था में विभिन्न जातियों की उत्पत्ति के बारे में जरूर फर्क किया गया. कहा गया कि ब्राह्मण ब्रह्मा के सर से, क्षत्रिय बाजुओं से, वैश्य जंघाओं से और दलित की पैरों से उत्पत्ति है. लेकिन अब वह दलितों को भी हनुमान की वंशज बता रहे हैं.

इसका क्या मतलब?

मतलब यह कि आदिवासियों से एक रिश्ता बनाना, लेकिन उन्हें उनकी औकात भी बताना. यह सही है कि हनुमान की अब पूजा होती है. बड़ी-बड़ी प्रतिमाएं बनती है. तुलसीदास कहते हैं कि भगवान से बड़ा उसके भक्त हनुमान भी पूजनीय हैं. लेकिन है वह राम का सेवक ही. उन्हें कंधे पर लाद कर घूमने वाला. हमेशा उनके चरणों में बैठने वाला सेवक.

ब्राह्मणवादी व्यवस्था यही तो चाहती है आदिवासी और दलित से. वह उनका बन कर रहे. वोट की राजनीति में उनके काम आये और उनका सेवक भाव से सेवा करे, उनकी चाकरी करे और हनुमान की तरह उनका सच्चा स्वामिभक्त भी रहें.

यही है इस मूढ़ता का अर्थ.