पांच राज्यों के चुनाव में तीन राज्यों में कांग्रेस ने जीत हासिल की. शेष दो राज्य तेलंगाना तथा मिजोरम में भी गैर भाजपायी दल जीते. इसीलिए सत्ता परिवर्तन की दृष्टि से इन पांच राज्यों के चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए उत्साह से भरे रहे, साथ ही कांग्रेस के अनुयायी तथा सत्ता परिवर्तन के आकांक्षी अन्य जन भी अति प्रसंन्न हुए. लोगों ने मिठाई खाई और आतिशबाजी भी की. सत्ता परिवर्तन की यह खुशी केवल कुछ दिनों की है या लंबे समय तक लोगों को प्रसंन्नता देगी, यह तो समय ही बतायेगा. एक तो सत्ता परिवर्तन का यह काम पूरे देश तथा केंद्र में नहीं हुआ है. दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि कांग्रेस का शासन भारत में नया नहीं है और न इसने आजाद भारत में वांक्षित परिवर्तन की दिशा में कोई ठोस काम ही किया है. इसलिए इस तरह के संदेहों का होना वाजिब है. हमारी इस शंका की पुष्टि चुनाव परिणाम के बाद आये कुछ चौंकाने वाले आंकड़े करते हैं.

राजस्थान, तेलंगाना तथा मिजोरम के ऐसे विधायक, जो 2013 के बाद 2018 में चुन कर आये हैं और उनके चल—अचल संपत्ति में जिस तरह से इजाफा हुआ है, वह हमे इस बात के संकेत देता है कि हमारा लोकतंत्र दिनों दिन अमीरों की तिजोरी में बंद होता जा रहा है. राजस्थान के 158 विधायक करोड़पति हैं, जो कुल विधायकों का 79 फीसदी हैं. 2013 में वे 73 फीसदी थे. इसका अर्थ यह हुआ कि औसतन विधायकों के पास 7.39 करोड़ की संपत्ति है.

इसी तरह तेलंगाना जैसे गरीब राज्य के 106 विधायक करोड़पति हैं, जो कुल विधायकों की संख्या का 89 फीसदी हैं, जो 2014 में मात्र 70 फीसदी थे. इस तरह तेलंगाना के विधायकों के पास औसतन 15.71 करोड़ की संपत्ति है.

मिजोरम जैसे उत्तर पूर्व के एक छोटे से राज्य में भी विधायकों की संपत्ति में तो 90 फीसदी की वृद्धि हुई है. यहां के 36 विधायक करोड़पति हैं जो 2013 में 75 फीसदी थे. यानी, औसतन हर विधायकों के पास 4.84 करोड़ की संपत्ति है.

राजस्थान के ढोर निर्वाचन क्षेत्र के कांग्रेस विधायक परसा राम मोररिया के पास 172.76 करोड़ की संपत्ति है. तेलंगाना कांग्रेस के विधायक कोमटी रेड्डी राजगोपाल रेड्डी के पास 314.31 करोड़ की संपत्ति है, तो मिजोरम के आईजवाल इस्टटू के एमएनएफ के विधायक के पास 44.74 करोड़ की संपत्ति है.

राजनीतिक दलों की संपत्ति् में भी इसी अनुपात में वृद्धि हुई है. राजस्थान बीजेपी के पास सबसे अधिक 5.51 करोड़ की संपत्ति है जो 2013 में 4.21 करोड़ थी. यानी, पांच साल में 33.87 फीसदी की वृद्धि हुई. तेलंगाना में टीआरएस के पास सबसे अधिक 16.24 करोड़ की संपत्ति है, जो 2013 में 9.13 करोड़ थी. यहां 77.85 फीसदी की वृद्धि हुई. इसी तरह मिजोरम में एमएनएफ के पास 2013 में 2.45 करोड़ की संपत्ति थी, जो 2018 में 3.67 करोड़ की हो गई. यानी, उनकी संपत्ति में 49 फीसदी वृद्धि.

राजनेता हो या राजनीतिक दल, संपत्ति बटोरेने में सभी बराबर ही रहे. ऐसा लगता है कि इस मामले में उनमें जबरदस्त मुकाबला था और हरेक की कोशिश रही कि वह अव्वल रहे. एक प्रजातांत्रिक देश में यह कैसे हो रहा है, इस पर अवश्य गौर किया जाना चाहिए.

प्रजातंत्र में अब प्रजा तंत्र से अलग हो चुकी है. उसकी भूमिका केवल वोट देना और अपने नेता के विजय पर नाच, गा कर या मिठाई खाने भर में सिमट कर रह गया है. अब तंत्र में राजनेता, विधायक,सांसद, ब्यूरोक्रेट,उद्वोगपति, कारपोरेट, ठेकेदार तथा दलाल रह गये हैं. सब का अपना अपना धंधा है, स्वार्थ है. देश के 90 फीसदी संसाधनों पर इनका कब्जा है. सिमित समय में सरकार तथा तंत्र से ज्यादा से ज्यादा कमाई करना ही इनका उद्देश्य रह गया है. देश,समाज, प्रजा के प्रति इनकी कोई जवाबदेही नहीं रह गई है.

अब रही प्रजा की बात, उपलब्ध जीविका को बचाये रखो, काम करो, काम नहीं तो भूखे रहो. कपड़ा मकान, स्वास्थ, शिक्षा की व्यवस्था स्वयं करो या फिर सरकार की लचर व्यवस्था में अपने को फिट करो. जाति, धर्म, लिंग आदि को लेकर जो परंपरागत भेद भाव हैं, उनके दंश को झेलते रहो. गौ तस्कर के नाम पर मारे जाओ. मॉब लिंचिंग का शिकार बनो. खराब सड़कों के गढ़ो में गिर कर मरो, क्योंकि प्रजा की सुनने वाला कोई नहीं है.

भारत कभी साने की चिड़िया थी, लेकिन अब गरीब देश कहलाता है. हम ऐसे भी कह सकते हैं कि कुछ लोगों के लिए भारत सोने की चिड़िया हैं, तो कुछ लोगों के लिए गरीब देश है. यह हुई विविधता में एकता का एक और आयाम.