लोकतंत्र में सत्ता परिवर्तन निहित है जहां यह लोकतंत्र की ताक़त बना हुआ है, वहीं आज युवा ग़ैर राजनैतिक विचार और चेतनाशीलता के अभाव में अपनी राजनैतिक बौखलाहट संभाल नहीं पा रहे हैं, जिसका सीधा प्रभाव आज के सन्दर्भ और हाल ही 2018 में कुछ राज्यों के चुनावी परिणामों के दौरान देखने को मिला. यह सिर्फ राजनैतिक सेहत को ही नहीं बल्कि समाज की सेहत पर ऐसा घुन है जिसने उन्हें मौत के मुहाने पर लाकर छोड़ने वाली स्थिति पैदा कर दी है. यह खतरनाक राजनैतिक उन्माद की स्थिति है जिसमें वे दिशाहीन होकर स्वयं के मानवीय संस्कार और दूसरों के मानवीय मूल्यों को भूल रहे हैं.
राजनैतिक चेतना से अनभिज्ञ युवा खुद को ईमानदार और सर्वश्रेष्ठ राजनेता या उनके पैरवीकार साबित करने की जद्दोज़हद में अपने वज़ूद से जुड़े उसूलों व सवालों को ताक पे रख कांग्रेस, भाजपाजैसे राजनैतिक पार्टियों के औजार बन हिंसक राजनीति पर उतर आये हैं. हमने ऐसे ही कुछ युवाओं से भोपाल में बात की.
18 वर्षीय एक युवक ने बताया कि वह किसी भी हाल में कमल को जीतते हुए देखना चाहता है. उसने बताया की आज कल सब जगह फूल की पहचान है. पार्टी कब शुरू हुई, किन— किन राज्यों में उसकी सरकार है, यह वह नहीं जानता. भोपाल में कुल कितनी विधानसभा सीट हैं, इसकी जानकारी उसे अभी नहीं है.
17 वर्षीय एक अन्य युवक का कहना है कि नेताओं के साथ अपने फोटो भी लगते हैं तब सब जगह नाम होगा. पार्टी के बारे में यही जानते हैं कि अभी जो जीतेगा उसकी ही सरकार बन जाएगी. हमारे नेता..जिंदाबाद.
19 वर्षीय एक अन्य युवक कहता है कि अगर कोई केस हो गया है तो अपन ने जिसको जितवाया है, वो भी अपन को मदद करते हैं. जब उनको भीड़ की ज़रूरत होती है तब अपन भी उनको मदद कर देते हैं. उनके लिए हम अपनी जान भी दे सकते हैं. भारत माता की जय..
एक अन्य युवक कहता है कि नेताओं के साथ में बैठने उठने से पहचान बनती है, अपन को तो बस टारगेट मिलता है, रैलियों और यात्राओं में कितने लोग लाने हैं, ये मेरा काम है पार्टी में. युवा दल का नेता हूँ.
यह कहना गलत नहीं होगा कि महत्वकांक्षी,और स्वार्थी राजनैतिक दल के लोग ही युवाओं का ग़लत तरीके से इस्तेमाल कर उन्हें अपने वास्तविक मुद्दों से भटका रहे हैं. युवा नैतिकता, शिक्षा और रोज़गार से पिछड़ते जा रहे हैं. वे प्रतिस्पर्धा , हवस और जलन की आग में सुलगते अंगारों पर तप रहे हैं. युवाओं को भी राजनेता और उनकी छांवदार पनाह दिनों दिन मोहने लगी है. वे बख़ूबी जानते हैं की उनके अपने राजनेताओं, छुटभैयों के इतिहास और उनके पाठ अपराधों से भरे पड़े हैं. वे आपराधिक गतिविधियों से तनिक भी घबराने के बजाए खुद को राजनीति के पहले
पायदान पर मानते हैं.
सवाल यह है कि, यह खतरनाक और मूल्यों के लिए विनाशकारी राजनीति युवाओं के भविष्य को कहाँ ले जाएगी? आज युवाओं को गुमराही के रास्ते पर ले जाने में बड़ी ज़िम्मेदारी उन सभी राजनेताओं की भी है जो उन्हें राजनीति से तो जोड़ते हैं, पर उनमें वाजिब, सैद्धांतिक वैचारिक राजनीती की समझ पैदा नहीं कर पाते हैं जिससे वे युवाओं को सामाजिक,नैतिक,संस्कार और मानवीय मूल्यों से बहुत दूर कर रहे हैं जो समाज के लिए अतिकारी है.