आदिवासियों का सबसे बड़ा पर्व सरहुल आ रहा है. कुछ लोग इसे पूजा भी कहते हैं. पूजा की तरह के कुछ विधान होते हैं. लेकिन यह किसी सगुण या निर्गुण ईश्वर की पूजा नहीं, बल्कि एक तरह से वसंतोत्सव है. विराट प्रकृति की अभ्यर्थना. उसके प्रति अपनी रागात्मकता की अभिव्यक्ति.उसमें अपने लिए, व्यक्ति केंद्रीत परिवार के लिए धन, संपत्ति या संतान की मांग नहीं होती, एक आह्वान होता है.

उनकी उदात्त जीवन दृष्टि को समझने के लिए चार पंक्तियां प्रस्तुत हैं :

देश से भूख—गरीबी धरती से मूर्ख—बुद्धि जड़ से उखड़ जायें समूल नष्ट हो जायें..

स्रोत आदि धर्म