उच्च्तम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई पर वहीं काम करती रही पूर्व महिला कर्मचारी ने यौन उत्पीड़न का दोषारोपण किया है. महिला को तथा दिल्ली पुलिस में सिपाही रहे उसके पति को तथा विकलांग देवर, जो उच्चतम न्यायालय में ही अस्थाई रूप से काम कर रहा था, को काम से निलंबित कर दिया गया, क्योंकि उनपर दिल्ली के किसी थाने में आपराधिक मामला दर्ज है. जैसे आम तौर पर होता है, किसी महिला के द्वारा यौन शोषण का आरोप लगाने पर कोई पुरुष स्वीकार नहीं करता है, गोगोई साहब जैसे प्रतिष्ठित व्यक्ति तो कभी भी यह स्वीकार नहीं कर सकते. इसके विपरीत उन्होंने अपने विरुद्ध रचे गये किसी षडयंत्र की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह पूरी न्यायपालिका के प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने और उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला षडयंत्र है. उनके समर्थन में अधिवक्ता उत्सव बैंस ने स्पष्टता से इसमें साजिश की बात कही है.
उच्चतम न्यायालय के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि वहां के मुख्य न्यायाधीश पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा. रंजन गोगोई को सुप्रीम कोर्ट में आये अभी एक वर्ष भी नहीं हुआ और उनके विरुद्ध इतनी बड़ी साजिश रच दी गई. पीड़ित महिला का आरोप पत्र किसी भी थाने में दाखिल नहीं हो सका, इसलिए उसने सुप्रीम कोर्ट के अन्य जजों तथा मीडिया तक अपनी बात पहुंचाई. आश्चर्यजनक बात तो यह है कि कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायत के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कोई समिति अब तक गठित नहीं की गई थी, जबकि विशाखा गाईड लाईन के तहत हर संस्था को एक ऐसी समिति गठित करने की सलाह सर्वोच्च न्यायालय ने ही दी थी, जहां कोई पीड़ित महिला अपनी शिकायत दर्ज कर सके. लोगों ने महिला पर यह आरोप लगाया कि वह अपनी बात को ज्यादा सनसनीखेज बनाने के लिए इसे मीडिया तक पहुंचाया, जबकि हकीकत यह थी कि सवोच्च न्यायालय में ऐसी कोई कमेटी ही नहीं थी जहां महिला अपनी शिकायत दर्ज करवाती. इस घटना के बाद अब इस तरह की कमेटी का गठन किया जा रहा है.
मीडिया में आई खबरों के अनुसार महिला मुख्य न्यायाधीश के आवासीय कार्यालय में 2016 से ही काम कर रही थी. रंजन गोगोई उसके काम से प्रभावित थे और उन्होंने उसके कार्य की प्रशंसा की. फिर उन्होंने उदारता का परिचय देते हुए उसके परिवार की भी जानकारी ली. बेकार बैठे हुए उसके अपंग देवर को सर्वोच्च न्यायालय में अस्थाई नौकरी दिलवाई. अपनी आत्मीयता और उपकार के बदले उन्होंने उस महिला से निकटता बनाने की कोशिश की. लेकिन महिला ने इंकार कर दिया. उसके बाद से ही महिला के उपर कष्टों का पहाड़ टूट पड़ा.
इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच जरूरी है. क्योंकि यदि यह न्यायपालिका की गरिमा को धूमिल करने का षडयंत्र है तो उसका भी पर्दाफाश होना चाहिए, लेकिन साथ ही यह संदेश भी नहीं जाना चाहिए की न्यायपालिका में बैठा व्यक्ति सामान्य न्यायिक प्रक्रिया और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्मित कानूनी प्रावधानों से उपर है.