नियमगिरि में वेदांता के खिलाफ जिन लोगों ने संघर्ष की मशाल जला रखी है, उनसे मुलाकात हुई दो दिन पहले. अवसर था समाजवादी जन परिषद का तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन. यह सम्मेलन नामकुम के बगईचा में 7, 8 और 9 जून को आयोजित किया गया. लिंगराज आजाद और उनके संघर्षशील टीम के कुछ सदस्य इस अवसर पर आये और अपनी उपस्थिति दर्ज कर लौट गये. यह शहर उनका नहीं. उन्हें अपना वनच्छादित परिवेश अच्छा लगता है. जो युवा हैं उन्होंने शहरों के अनुकूल कपड़े पहन लिए थे. लेकिन तेज धार वाली कुल्हारी जो अपने घर-संसार में उनके कंधों पर रहता है, हाथों में ले रखा था. टीम में शामिल दो लड़कियां परंपरागत तरीके से.सुसज्जित. फूलों से सजे विशिष्ट केश विन्यास, लेकिन एक के पैरों में चप्पल नहीं. वजह सिर्फ गरीबी नहीं, वे खाली पैर धरती पर विचरण करने की अभ्यस्त हैं.
इन्हें देख कर क्या आपको यकीन होगा कि ये वही लोग हैं जो दुनियां के एक शक्तिशाली कारपोरेट से पिछले एक दशक से लोहा ले रहे हैं और उस संघर्ष की दुनियां भर में चर्चा है. खासियत यह भी कि यह लड़ाई माओवादी तौर तरीके से नहीं लड़ा जा रहा, गांधी, लोहिया और जेपी के बताये तरीकों से लड़ा जा रहा है और उसकी ताकत है नियमगिरि से उनका प्रेम और उनकी आपसी एकजुटता. इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहा है समाजवादी जन परिषद जिसके नेता थे समाजवादी नेता किशन पटनायक. किशन पटनायक रहने वाले तो ओड़िसा के थे, लेकिन बिहार आंदोलन से उनका गहरा रिश्ता था और जेपी के गुजर जाने के बाद छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के साथ वे हमेशा बने रहे. समाजवादी जन परिषद का गठन 1995 में गैर राजनीतिक धारा के राजनीतिक दल के रूप में किया गया था. और नियमगिरि के डोंगरिया कंध आदिवासियों का संघर्ष उनके ही नेतृत्व में चल रहा है.
विडंबना यह कि शांतिमयता में पूरी तरह विश्वास करने वाली राजनीतिक-सामाजिक धारा के नेतृत्व में चल रहे इस संघर्ष को मोदी की सरकार माओवादियों से जोड़ने का षडयंत्र कर कुचलने के फिराक में लगी रहती है. लिंगराज आजाद के अनुसार अभी-अभी दधी कटारका नाम के एक आंदोलनकारी युवा को उग्रवादी कह कर ओड़िसा पुलिस ने गिरफ्तार कर रखा है. इसके पूर्व कुनी सिकोका नाम की एक युवती को पुलिस रात में उसके घर से उठा कर ले गई और प्रचारित यह किया कि एक माओवादी ने आत्म समर्पण किया है. बाद में संगठन की सक्रियता से उसे छोड़ा गया. लेकिन पुलिस ने उसे प्रलोभन यह दिया कि वह आत्मसमर्पण के लिए जो राशि सरकार ने फिक्स कर रखी है, वह ले ले.
लिंगराज बताते हैं - ‘वह मेरे पास आई और पूछा कि क्या मैं वह राशि ले लूं?’
लिंगराज ने उनसे कहा- ‘ यदि तुमने आत्मसर्पण किया है तो ले लो?’
उसने जवाब दिया -‘ नहीं, वे लोग तो मुझे मेरे घर से उठा कर ले गये थे. मैं पैसा नहीं लूंगी.’
और उसने लाखों रुपये कि सरकारी राशि ठुकरा दी.
हमारे बहुत सारे साथी नहीं जानते होंगे कि नियमगिरि और वहां चल रहा आंदोलन क्या है? उनके लिए संक्षिप्त जानकारी.
नियमगिरि एक जैव विविधता से भरा एक पर्वतमाला है जो आंध्र प्रदेश से शुरु हो कर ओड़िसा के कालाहंडी तक जाता है. नीचे से दिखने वाली इस तीक्ष्ण पहाड़ी पर उपर में जगह जगह चैरस मैदान हैं जहां कंध आदिवासियों के गांव हैं. वे झरने का पानी पीते हैं और ढ़लान की जमीन अन्नानास, शरीफा, अदरक, बैगन, हल्दी और अन्य तरह-तरह की सब्बिजयां उगा कर जीवन यापन करते हैं. उनके दुर्भाग्य से उन्हीं चैरस जगहों पर बाक्साईट के खान हैं, जिस पर पूरी दुनिया के कारपोरेट की नजर है. फिलहाल वेदांता कंपनी इस मुहिम में लगी है. नियमगिरि की तराई में रायगढ़ा के करीब लेस्लीगंज में उसने अपनाएक प्लांट भी बिठा लिया है. लेकिन वहां के आदिवासियों ने नियमगिरि में खनन कर बाॅक्साईट निकालने का प्रबल विरोध किया. उनके दबाव से मामला सर्वोच्च न्यायालय में गया. कोर्ट ने ओड़िसा सरकार से ग्राम सभाओं की अनुमति लेने के लिए कहां. 120 गांवों से रेंडम सरकार ने बारह गांव चुने. जिला जज की उपस्थिति में रायशुमारी कराई गई. सभी बारह गांव की ग्राम सभाओं ने सिरे से खनन को अस्वीकार कर दिया, यह कहते हुए कि नियमगिरि उनके प्राण हैं और भगवान हैं. उसे वे नष्ट करने नहीं देंगे.
लिंगराज बताते हैं कि हाल में ओड़िसा सरकार दुबारा रायशुमारी कराने की अनुमति लेने सर्वोच्च न्यायालय गई लेकिन कोर्ट ने इसकी अनुमति नहीं दी. अभी आंध्र प्रदेश से थोड़ा बहुत बाॅक्साईट लाकर वेदांता, यानी, अनिल अग्रवाल की कंपनी अपना कारखाना चला रही है और सरकार इस फिराक में कि किसी तरह आंदोलन को तोड़ कर या उसे उग्रवादी करार देकर आंदोलनकारियों का दमन कर सके. लेकिन हम उनकी साजिश को कामयाब होने नहीं देंगे.
मैंने उस टोली की रवानगी देखी और उनके हौसले को सलाम किया.